
#जमशेदपुर #आक्रोश_प्रदर्शन : बांग्लादेश की घटनाओं पर विरोध दर्ज कराने साकची गोलचक्कर पर जुटे पूर्व सैनिक।
बांग्लादेश में हालिया घटनाओं को लेकर देशभर में बढ़ते आक्रोश के बीच जमशेदपुर में अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद के नेतृत्व में 28 दिसंबर को आक्रोश प्रदर्शन आयोजित किया गया। यह प्रदर्शन साकची गोलचक्कर पर संध्या चार बजे शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से किया गया। पूर्व सैनिकों और राष्ट्रवादी संगठनों ने इसे मानवता और राष्ट्रीय चेतना से जुड़ा विषय बताया। प्रदर्शन का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ सशक्त विरोध दर्ज कराना रहा।
- अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद जमशेदपुर के नेतृत्व में आक्रोश प्रदर्शन।
- 28 दिसंबर को साकची गोलचक्कर पर संध्या 04:00 बजे आयोजन।
- बांग्लादेश की घटनाओं पर चुप्पी को बताया अस्वीकार्य।
- शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक और अनुशासित प्रदर्शन का आह्वान।
- झारखंड महामंत्री सिद्धनाथ सिंह सहित कई पूर्व सैनिकों के तीखे बयान।
बांग्लादेश में घटित हालिया घटनाओं को लेकर देशभर में गहरी चिंता और रोष का माहौल है। इन्हीं परिस्थितियों के बीच झारखंड के औद्योगिक शहर जमशेदपुर में अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद द्वारा एक संगठित और अनुशासित आक्रोश प्रदर्शन आयोजित किया गया। साकची गोलचक्कर पर आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पूर्व सैनिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राष्ट्रवादी विचारधारा से जुड़े लोगों ने भाग लिया। आयोजन का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों पर मौन तोड़ना और राष्ट्रीय चेतना को जागृत करना रहा।
राष्ट्रीय चेतना की पुकार बताया गया प्रदर्शन
परिषद के पदाधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह कार्यक्रम केवल एक प्रतीकात्मक विरोध नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा की आवाज़ है। उन्होंने कहा कि जब किसी भी देश में मानवता पर आघात होता है, तो भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र के नागरिकों का मौन रहना स्वीकार्य नहीं हो सकता। पूर्व सैनिकों ने अपने अनुभवों का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने देश की सीमाओं पर सेवा दी है और अब समाज के प्रति नैतिक दायित्व निभा रहे हैं।
सिद्धनाथ सिंह का तीखा वक्तव्य
अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद झारखंड के महामंत्री सिद्धनाथ सिंह ने अपने संबोधन में स्पष्ट शब्दों में कहा—
सिद्धनाथ सिंह ने कहा: “बांग्लादेश की घटनाओं पर चुप रहना कायरता होगी। जब मानवता पर हमला होता है, तब पूर्व सैनिक और राष्ट्रवादी समाज मूक दर्शक नहीं बन सकते।”
उनके इस बयान ने उपस्थित लोगों में गहरी संवेदना और आक्रोश का भाव पैदा किया।
अन्य पदाधिकारियों के विचार
परिषद के वरिष्ठ सदस्य अवधेश कुमार ने कहा—
अवधेश कुमार ने कहा: “हमने देश की सीमाओं की रक्षा की है, अब हमारा दायित्व है कि अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाएँ। यह आक्रोश प्रदर्शन राष्ट्र की आत्मा की अभिव्यक्ति है।”
वहीं मनोज कुमार सिंह ने इस आयोजन को समाजव्यापी आह्वान बताते हुए कहा—
मनोज कुमार सिंह ने कहा: “यह किसी एक संगठन का कार्यक्रम नहीं, बल्कि समस्त राष्ट्रवादी समाज का आह्वान है। अत्याचार चाहे कहीं भी हो, उसका विरोध हर भारतवासी का कर्तव्य है।”
जयप्रकाश नौसेना ने भी अपने वक्तव्य में चेतावनी भरे शब्दों का प्रयोग किया—
जयप्रकाश नौसेना ने कहा: “अगर आज हमने आवाज़ नहीं उठाई, तो कल इतिहास हमसे सवाल करेगा। यह प्रदर्शन चेतावनी है कि भारत का समाज अन्याय सहने वाला नहीं है।”
शांतिपूर्ण और अनुशासित आयोजन पर जोर
अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि यह आक्रोश प्रदर्शन पूरी तरह शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक और अनुशासित रहेगा। प्रतिभागियों के लिए ड्रेस कोड CAP निर्धारित किया गया था, जिससे कार्यक्रम की एकरूपता और अनुशासन स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। परिषद ने सभी प्रतिभागियों से संयम और मर्यादा बनाए रखने की अपील की।
सामाजिक और राष्ट्रवादी संगठनों से सहभागिता की अपील
परिषद की ओर से समस्त हिन्दू समाज, विभिन्न धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रवादी संगठनों से बड़ी संख्या में उपस्थित होने की अपील की गई थी। आयोजन में यह स्पष्ट संदेश दिया गया कि अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर जागरूकता और प्रतिक्रिया केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग की नैतिक जिम्मेदारी है।
कार्यक्रम में उपस्थित प्रमुख पदाधिकारी
इस आक्रोश प्रदर्शन में जसवीर सिंह, एस. के. सतीश प्रसाद, शशि भूषण सिंह, आमोद कुमार, नवीन के., राजेन्द्र कुमार, नवल किशोर पाठक, एल. बी. सिंह, शिव शंकर, अमरनाथ धोके, दीपक गुप्ता, मोहन दुबे, डी. एन. सिंह, कुन्दन सिंह, जय प्रकाश, देव नारायण सिंह, अवधेश कुमार, आर. कुमार और पी. के. झा सहित अनेक पूर्व सैनिक एवं पदाधिकारी उपस्थित रहे।



न्यूज़ देखो: अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर समाज की भूमिका
यह खबर दर्शाती है कि अंतरराष्ट्रीय घटनाओं को लेकर भारत का नागरिक समाज अब अधिक मुखर हो रहा है। पूर्व सैनिकों की यह पहल यह सवाल भी उठाती है कि वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के उल्लंघन पर किस तरह सामूहिक प्रतिक्रिया होनी चाहिए। यह प्रदर्शन लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रयोग का उदाहरण है। अब देखना होगा कि इस आवाज़ का आगे क्या प्रभाव पड़ता है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
जब अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठती है, तभी समाज मजबूत होता है
लोकतंत्र की मजबूती तभी संभव है जब नागरिक अन्याय के खिलाफ सजग और सक्रिय रहें। शांतिपूर्ण विरोध न केवल अधिकार है, बल्कि जिम्मेदारी भी है। इस तरह के आयोजन समाज को यह याद दिलाते हैं कि मानवता और नैतिकता सीमाओं से परे होती है।
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