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नाइजर में छह माह से लापता गिरिडीह के पांच प्रवासी मजदूरों का अब तक नहीं मिला सुराग, परिवारों में गहरी बेचैनी

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#गिरिडीह #प्रवासी_मजदूर : छह माह बाद भी नाइजर में अपहृत पांच मजदूरों की रिहाई नहीं – परिजनों ने सरकार से त्वरित हस्तक्षेप की मांग की
  • नाइजर में अप्रैल 2025 में अपहृत हुए गिरिडीह जिले के पांच प्रवासी मजदूरों का अब तक कोई सुराग नहीं मिला।
  • सभी मजदूर कल्पतरु ट्रांसमिशन कंपनी में कार्यरत थे और हथियारबंद हमले के दौरान उठाए गए थे।
  • 25 अप्रैल 2025 को हुए हमले में 12 सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई थी।
  • दूसरी घटना में बोकारो के गणेश करमाली सहित सात लोगों की हत्या हुई और एक व्यक्ति का अपहरण किया गया।
  • सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली ने सरकार से कूटनीतिक प्रयास तेज करने की मांग की।
  • परिजन लगातार सरकार से अपील कर रहे हैं, परंतु अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

अप्रैल 2025 में पश्चिम अफ्रीका के नाइजर में हुए सशस्त्र हमले में झारखंड के गिरिडीह जिले के बगोदर प्रखंड के पांच प्रवासी मजदूरों का अपहरण कर लिया गया था। छह माह बीत जाने के बाद भी उनकी रिहाई नहीं हो सकी है। मजदूरों के परिवार अब निराशा और भय के बीच दिन काट रहे हैं। परिजनों ने केंद्र और राज्य सरकार से तत्काल हस्तक्षेप कर उन्हें सुरक्षित वापस लाने की मांग की है।

हथियारबंद गिरोह ने कंपनी कैंप पर बोला था हमला

जानकारी के अनुसार, 25 अप्रैल 2025 को नाइजर में कार्यरत कल्पतरु ट्रांसमिशन कंपनी के कैंप पर हथियारबंद अपराधियों के एक जत्थे ने धावा बोला था। इस हमले में 12 सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई थी और पांच भारतीय मजदूरों को बंदी बना लिया गया था। अपहृत मजदूरों में संजय महतो, चंद्रिका महतो, राजू महतो, फलजीत महतो और उतम महतो शामिल हैं, जो गिरिडीह जिले के बगोदर और मुंडरो गांव के रहने वाले बताए गए हैं।

हमले के बाद से ही भारतीय दूतावास और संबंधित कंपनी की ओर से मजदूरों की रिहाई को लेकर प्रयासों की बातें की गईं, लेकिन कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया। छह महीने बीत जाने के बाद भी नाइजर सरकार या अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की ओर से कोई पुष्टि नहीं की गई कि मजदूर जीवित हैं या नहीं।

एक और हमला और नई चिंता

इसी बीच 15 जुलाई 2025 को नाइजर में ही एक अन्य भारतीय कंपनी ट्रांसरेल लाइटिंग लिमिटेड पर दूसरा हमला हुआ। इस हमले में बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड के गणेश करमाली और उत्तर प्रदेश के कृष्णा गुप्ता समेत सात सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी गई, जबकि जम्मू-कश्मीर के रंजीत सिंह का अपहरण कर लिया गया। यह घटना झारखंड के सैकड़ों प्रवासी मजदूरों के परिवारों के लिए नई चिंता लेकर आई। अब विदेश में काम कर रहे मजदूरों के परिजन सुरक्षा को लेकर डर में हैं।

सऊदी अरब में मारे गए एक अन्य प्रवासी की कहानी

इधर, झारखंड के डुमरी प्रखंड की मधगोपाली पंचायत के दूधपनिया गांव निवासी विजय कुमार महतो की सऊदी अरब में पुलिस मुठभेड़ के दौरान मौत हो गई। इलाज के दौरान उनकी मृत्यु के बाद शव अब तक सऊदी में ही पड़ा है। परिवार लगातार शासन-प्रशासन से मदद की गुहार लगा रहा है। मृतक के रिश्तेदारों ने कहा कि विभागों के बीच तालमेल की कमी के कारण शव को भारत लाने में अनावश्यक देरी हो रही है।

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उठाई आवाज

प्रवासी मजदूरों की समस्याओं को लेकर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली ने कहा कि सरकार को अब सिर्फ बयानबाजी नहीं बल्कि ठोस कूटनीतिक पहल करनी चाहिए।

सिकंदर अली ने कहा: “नाइजर में अपहृत मजदूरों की रिहाई के लिए भारत सरकार को संयुक्त राष्ट्र और अफ्रीकी यूनियन के सहयोग से बातचीत तेज करनी चाहिए। साथ ही, सऊदी अरब में मारे गए विजय कुमार महतो के शव को जल्द से जल्द भारत लाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।”

उन्होंने कहा कि प्रवासी मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए राज्य और केंद्र स्तर पर विशेष नोडल एजेंसी का गठन आवश्यक है ताकि विदेशों में काम करने वालों की समस्याओं का समाधान तत्काल हो सके।

सरकार से बढ़ती उम्मीदें और परिवारों का दर्द

बगोदर और आसपास के गांवों में अपहृत मजदूरों के घरों में सन्नाटा पसरा है। परिवारजन रोज किसी फोन कॉल या संदेश की उम्मीद में जी रहे हैं। मजदूरों की पत्नियां और मांएं सरकार से बार-बार अपील कर रही हैं कि उनके प्रियजनों को सुरक्षित घर लाया जाए। परिवारों का कहना है कि छह माह में केंद्र या राज्य सरकार ने कोई ठोस जानकारी साझा नहीं की, जिससे उनका भरोसा डगमगाने लगा है।

ग्रामीणों ने कहा कि अगर सरकार प्रभावी तरीके से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहल करे तो मजदूरों की रिहाई संभव है। वहीं प्रवासी संगठनों ने भी इस मामले को विदेश मंत्रालय तक पहुंचाया है और उच्च स्तरीय हस्तक्षेप की मांग की है।

प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल

इन घटनाओं ने प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। झारखंड से हर साल हजारों लोग आजीविका के लिए अफ्रीकी और खाड़ी देशों में जाते हैं, लेकिन वहां की सुरक्षा व्यवस्था पर सरकार का नियंत्रण सीमित होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि विदेश मंत्रालय को अब ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए एक स्थायी संकट प्रबंधन तंत्र तैयार करना चाहिए ताकि भविष्य में किसी भी भारतीय नागरिक के जीवन पर खतरा आने पर तत्काल प्रतिक्रिया दी जा सके।

न्यूज़ देखो: प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल

यह खबर विदेशों में काम करने वाले भारतीय मजदूरों की सुरक्षा व्यवस्था पर गहरी चिंता जताती है। छह महीने से अपहृत मजदूरों की कोई जानकारी न मिलना कूटनीतिक असफलता को दर्शाता है। सरकार को चाहिए कि वह नाइजर में अपहृत मजदूरों की रिहाई के लिए उच्च स्तरीय टीम गठित करे और सऊदी अरब में मारे गए प्रवासी के परिजनों को सहायता प्रदान करे।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

जागरूकता और जिम्मेदारी से ही मिलेगा समाधान

प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा केवल सरकार की नहीं, बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी है। अब समय है कि हम विदेशों में काम करने वाले श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवाज उठाएं। देश की प्रगति में इनका योगदान अमूल्य है, और इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य।
सजग रहें, सक्रिय बनें। अपने विचार कमेंट करें, इस खबर को साझा करें और उन परिवारों तक आवाज पहुंचाएं जो न्याय की प्रतीक्षा में हैं।

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Surendra Verma

डुमरी, गिरिडीह

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