#लातेहार #वन्यजीव_संरक्षण : बेतला नेशनल पार्क के पास खेत में मिला हाथी का शव – पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलेंगे राज
- बेतला नेशनल पार्क के समीप बुचीदाड़ी गांव में पांच वर्षीय जंगली हाथी का शव बरामद हुआ।
- वन विभाग की टीम ने मौके पर पहुंचकर शव को जब्त कर पोस्टमार्टम के बाद दफनाया।
- हाथी की मौत के कारणों की अभी पुष्टि नहीं, रिपोर्ट आने के बाद ही खुलासा संभव।
- मृत हाथी बिना दांत वाली प्रजाति का था, जो बेतला क्षेत्र में प्रचलित पाई जाती है।
- झारखंड में 8 वर्षों में हाथियों की संख्या 600 से घटकर 217 रह गई, लगातार मौतों से बढ़ी चिंता।
बरवाडीह (लातेहार)। बेतला नेशनल पार्क के सटे बुचीदाड़ी गांव में बुधवार सुबह एक पांच वर्षीय जंगली हाथी का शव मिलने से पूरे इलाके में हड़कंप मच गया। खेतों के पास मृत पड़े हाथी को देखने के लिए स्थानीय ग्रामीणों की भीड़ जुट गई। सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और पूरे क्षेत्र को सील कर जांच शुरू की।
वन विभाग ने संभाला मोर्चा, किया पोस्टमार्टम
सूचना मिलने के बाद डिप्टी डायरेक्टर पी.के. जेना के निर्देश पर वन विभाग की टीम बुचीदाड़ी गांव पहुंची। वहां खेत के किनारे मृत हाथी पड़ा मिला। अधिकारियों ने बताया कि पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पूरी कर शव को दफना दिया गया है।
डिप्टी डायरेक्टर पी.के. जेना ने कहा: “हाथी की मौत का कारण फिलहाल स्पष्ट नहीं है। मेडिकल टीम द्वारा पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार की जा रही है। रिपोर्ट आने के बाद ही वास्तविक कारणों का पता चल सकेगा।”
खेत के पास शव मिलने से उठे कई सवाल
मृत हाथी के धान के खेत के किनारे मिलने से कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। स्थानीय लोगों ने आशंका जताई है कि हाथी की मौत बिजली के झटके या ज़हर के सेवन से भी हो सकती है। फिलहाल वन विभाग ने इस संबंध में कोई ठोस बयान नहीं दिया है। विभाग ने कहा है कि सभी पहलुओं की जांच की जा रही है ताकि किसी भी तरह की लापरवाही या अवैध गतिविधि का पता लगाया जा सके।
बिना दांत वाली दुर्लभ प्रजाति का था हाथी
वन अधिकारियों ने बताया कि मृत हाथी बिना दांत वाली प्रजाति का था। बेतला और आसपास के जंगलों में इस प्रकार की प्रजाति के हाथी पाए जाते हैं। ये प्रजातियां शांत स्वभाव की होती हैं और सामान्यतः झुंड में रहना पसंद करती हैं।
घटती आबादी से बढ़ी वन विभाग की चिंता
झारखंड में हाथियों की संख्या लगातार घट रही है। वर्ष 2017 में जहां हाथियों की संख्या 600 से अधिक थी, वहीं 2025 में यह घटकर मात्र 217 रह गई है। पलामू टाइगर रिजर्व सहित पूरे पलामू प्रमंडल में फिलहाल लगभग 130 हाथी बचे हैं।
वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में लातेहार जिले में ही छह से अधिक हाथियों की मौत विभिन्न घटनाओं में हो चुकी है। बार-बार होने वाली इन मौतों ने वन्यजीव संरक्षण को लेकर वन विभाग की नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
बेतला क्षेत्र में बढ़ती घटनाएं, संरक्षण की जरूरत
बेतला नेशनल पार्क राज्य का सबसे पुराना और प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्य है, जहां हाथी, बाघ और अन्य दुर्लभ प्रजातियों का निवास है। ऐसे में हाथियों की लगातार मौतें पर्यावरण संरक्षण के लिए गंभीर खतरा हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर संरक्षण और सुरक्षा उपायों को मजबूत नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में झारखंड में हाथियों की उपस्थिति केवल इतिहास बनकर रह जाएगी।
न्यूज़ देखो: वन्यजीव संरक्षण की चेतावनी
यह घटना बताती है कि झारखंड में वन्यजीव सुरक्षा व्यवस्था कमजोर होती जा रही है। हाथियों जैसी संरक्षित प्रजातियों की लगातार मौतें न केवल जैव विविधता के लिए बल्कि राज्य की पर्यावरणीय पहचान के लिए भी खतरा हैं। वन विभाग को अब “जांच” से आगे बढ़कर व्यवहारिक संरक्षण उपाय अपनाने होंगे।
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प्रकृति हमारी पहचान, संरक्षण हमारी जिम्मेदारी
हाथियों की घटती संख्या सिर्फ आंकड़ा नहीं, यह प्रकृति से जुड़ी हमारी जिम्मेदारी का आईना है। हमें मिलकर जंगलों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने होंगे। पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार का नहीं, हर नागरिक का कर्तव्य है।
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