
#बेतला #वन्यजीव_संरक्षण : एनआई सभागार में वनकर्मियों को ट्रांजेक्ट विधि, कैमरा ट्रैपिंग और पगमार्क पहचान सहित टाइगर एस्टीमेशन की उन्नत तकनीकों का प्रशिक्षण दिया गया
- बेतला एनआई सभागार में टाइगर एस्टीमेशन 2026 फेज-1 का विशेष प्रशिक्षण आयोजित किया गया।
- मनीष बक्शी और शहजाद इकबाल ने वनकर्मियों को व्याघ्र गणना का प्रशिक्षण दिया।
- ट्रांजेक्ट पद्धति, कैमरा ट्रैपिंग, पगमार्क, मल-सैंपल और GPS मैपिंग की जानकारी साझा की गई।
- पीके जेना, नोडल पदाधिकारी, ने 15–22 दिसंबर के बीच राज्य के 36 डिविज़नों में फर्स्ट फेज शुरू होने की घोषणा की।
- प्रशिक्षण में वनपाल, वनरक्षी एवं कई अन्य कर्मी शामिल रहे।
गुरुवार को बेतला के एनआई सभागार में राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण की गाइडलाइन के तहत टाइगर एस्टीमेशन 2026 फेज-1 के लिए विशेष प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया। इस प्रशिक्षण में पीटीआर के वनकर्मियों को वन्यजीव विशेषज्ञ मनीष बक्शी तथा राज्य वन्यजीव संरक्षण बोर्ड के सदस्य शहजाद इकबाल ने विस्तृत रूप से व्याघ्र गणना की वैज्ञानिक तकनीकों का ज्ञान कराया। प्रशिक्षकों ने बताया कि सटीक आंकड़ों पर आधारित टाइगर एस्टीमेशन से भविष्य की संरक्षण योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकता है।
प्रशिक्षण में दी गई आधुनिक तकनीकों की जानकारी
प्रशिक्षकों ने वनकर्मियों को व्याघ्र गणना की विभिन्न प्रक्रियाओं—ट्रांजेक्ट पद्धति, कैमरा ट्रैपिंग, पगमार्क पहचान, मल-नमूना संग्रह तथा जीपीएस आधारित मैपिंग—के उपयोग व महत्व के बारे में समझाया। इसके अलावा बाघों के साथ-साथ शिकार प्रजातियों और अन्य वन्यजीवों के पगमार्क की पहचान करने की आधुनिक तकनीकों पर भी विस्तार से चर्चा की गई। उन्होंने बताया कि एस्टीमेशन के पहले चरण में क्षेत्रवार सर्वे कर वनकर्मियों द्वारा संकेतों को इकट्ठा किया जाएगा, जबकि दूसरे चरण में जंगल के महत्वपूर्ण स्थानों पर कैमरा ट्रैप लगाए जाएंगे।
डेटा संग्रहण से संरक्षण योजनाओं को मिलेगा मजबूत आधार
प्रशिक्षकों ने स्पष्ट किया कि डेटा संग्रह न केवल बाघों की वास्तविक संख्या का अनुमान लगाने में मदद करता है, बल्कि संरक्षण रणनीतियों को वैज्ञानिक आधार भी प्रदान करता है। इस दौरान नोडल पदाधिकारी सह डिप्टी डायरेक्टर पीके जेना ने जानकारी दी कि 15 से 22 दिसंबर तक झारखंड के सभी 36 डिविज़नों में टाइगर एस्टीमेशन के फर्स्ट फेज को अंजाम दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया में बाघों के साथ-साथ हाथी, गिद्ध और अन्य वन्य प्राणियों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी जुटाई जाएंगी। जेना के अनुसार, प्रशिक्षण से वनकर्मियों की दक्षता बढ़ेगी और एस्टीमेशन अधिक सटीक व वैज्ञानिक रूप से पूरा किया जा सकेगा।
बड़ी संख्या में वनकर्मियों ने लिया भाग
प्रशिक्षण शिविर में प्रभारी वनपाल संतोष सिंह, नंदलाल साहू, रामकुमार, शशांक शेखर पांडेय, वनरक्षी धीरज कुमार, दीपक मिश्रा, सुभाष कुमार, रजनीश सिंह, ओमप्रकाश, देवपाल भगत, गुलशन सुरीन, इमरान हुसैन, मुकेश मिंज, अविनाश एक्का, रजनीश कुमार, निरंजन, नवीन सहित कई वनकर्मी उपस्थित रहे।

न्यूज़ देखो: वैज्ञानिक तकनीकों से संरक्षण को नई दिशा
यह प्रशिक्षण कार्यक्रम स्पष्ट संकेत देता है कि झारखंड में वन्यजीव संरक्षण को लेकर प्रयास अब अधिक वैज्ञानिक और व्यवस्थित दिशा में बढ़ रहे हैं। प्रशिक्षित वनकर्मी आने वाले एस्टीमेशन को अधिक सटीकता प्रदान करेंगे, जिससे संरक्षण योजनाओं का क्रियान्वयन और मजबूत होगा।
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