Ranchi

पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन हाउस अरेस्ट रिम्स-2 जमीन विवाद को लेकर प्रशासन सतर्क

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#रांची #जमीनविवाद : नगड़ी जाने से पहले पुलिस ने सोरेन को रोका, विपक्ष ने सरकार पर साधा निशाना
  • पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन को रविवार सुबह से रखा गया हाउस अरेस्ट।
  • सोरेन बोले – “आदिवासी/मूलवासी किसानों की आवाज दबाने की कोशिश।”
  • रिम्स-2 जमीन विवाद को लेकर नगड़ी में प्रस्तावित था बड़ा प्रदर्शन।
  • प्रशासन ने क्षेत्र में निषेधाज्ञा लागू कर सुरक्षा कड़ी की
  • बाबूलाल मरांडी ने कहा – “यह लोकतंत्र की हत्या है।”

पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने रविवार सुबह सोशल मीडिया मंच एक्स पर पोस्ट कर जानकारी दी कि उन्हें नगड़ी जाने से रोक दिया गया है और पुलिस ने उनके घर को घेरकर उन्हें हाउस अरेस्ट कर लिया है। उन्होंने लिखा कि यह कार्रवाई सरकार की दमनकारी नीति का हिस्सा है, ताकि वे नगड़ी के आदिवासी/मूलवासी किसानों की आवाज न उठा सकें।

सोरेन रविवार को नगड़ी जाकर किसानों के साथ हल चलाने का कार्यक्रम करने वाले थे। रिम्स-2 अस्पताल निर्माण के लिए प्रस्तावित भूमि को लेकर किसानों और ग्रामीणों का कहना है कि यह उपजाऊ खेती की जमीन है, और इसके बदले स्मार्ट सिटी या बंजर भूमि का उपयोग होना चाहिए।

प्रशासन की सख्ती और सुरक्षा व्यवस्था

रांची जिला प्रशासन ने कांके अंचल स्थित मौजा नगड़ी में प्रस्तावित रिम्स-2 परियोजना स्थल के 200 मीटर परिधि में निषेधाज्ञा लागू कर दी है। पूरे इलाके में बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई है, ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी या विरोध प्रदर्शन को नियंत्रित किया जा सके।

विपक्ष का सरकार पर हमला

नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने भी एक्स पर पोस्ट कर सरकार की इस कार्रवाई की आलोचना की। उन्होंने लिखा:

बाबूलाल मरांडी: “पूर्व मुख्यमंत्री श्री @ChampaiSoren जी को घर में पुलिस द्वारा नज़रबंद किए जाने की सूचना है। यह सरासर लोकतंत्र की हत्या है। विपक्ष का धर्म है कि वह जनता के साथ खड़ा हो और उनके अधिकारों की रक्षा करे। भाजपा हर परिस्थिति में आदिवासी समाज के अधिकार और उनकी जमीन की रक्षा करेगी।”

उन्होंने हेमंत सोरेन सरकार को चेतावनी दी कि आदिवासियों की जमीन किसी भी हाल में छिनी नहीं जाएगी।

न्यूज़ देखो: जमीन की जंग और राजनीतिक टकराव

रिम्स-2 परियोजना झारखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं को विस्तार देने की बड़ी पहल है, लेकिन जिस जमीन पर इसे लेकर विवाद खड़ा हुआ है, वह अब एक सियासी संघर्ष का मैदान बन चुका है। एक ओर सरकार परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध दिख रही है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष और किसान इसे जीविका और अस्तित्व की लड़ाई मान रहे हैं। आने वाले दिनों में यह मुद्दा राज्य की राजनीति में और ज्यादा गर्मा सकता है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

लोकतंत्र और अधिकार की रक्षा जरूरी

यह मामला केवल एक अस्पताल निर्माण या जमीन अधिग्रहण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह किसानों और आदिवासियों के अधिकार एवं अस्तित्व से जुड़ा है। लोकतंत्र में जरूरी है कि हर पक्ष की आवाज सुनी जाए। अब समय है कि हम सब इस मुद्दे पर सजग रहें। अपनी राय कॉमेंट करें और इस खबर को शेयर करें ताकि लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा हो सके।

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