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आदिवासी अस्मिता से आतंकवाद तक: झारखंड की बदलती पहचान पर गंभीर सवाल

#रांची #झारखंड : पलाश और संस्कृति की धरती पर आतंकवाद के साये से उठे सवाल, सरकार की चुप्पी पर नाराज़गी

झारखंड, जो कभी अपनी आदिवासी अस्मिता, पलाश के फूलों, लोककला और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता था, आज एक नए और चिंताजनक कारण से राष्ट्रीय सुर्खियों में है। राष्ट्रीय मीडिया और सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्टों में लगातार यह सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों यह राज्य आतंकवाद और इस्लामिक जिहाद के नेटवर्क का अड्डा बनता जा रहा है।

सांस्कृतिक पहचान पर सवालिया निशान

झारखंड की छवि हमेशा एक आदिवासी अस्मिता और प्राकृतिक सौंदर्य वाले राज्य की रही है। यहां की लोकसंस्कृति, नृत्य, गीत और त्योहार पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। लेकिन हाल के वर्षों में जिस तरह से यह इलाका आतंकी गतिविधियों से जोड़ा जाने लगा है, उसने इस छवि को गहरी चोट पहुँचाई है।

आतंकवाद को पनाह देने के आरोप

स्थानीय लोगों का आरोप है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में आतंकियों को आश्रय मिलता है। कई बार धार्मिक जुलूसों में पाकिस्तान और फ़िलिस्तीन के झंडे लहराए जाते हैं और भारत विरोधी नारे लगाए जाते हैं। लेकिन पुलिस इन घटनाओं पर सख्ती करने के बजाय चुप्पी साध लेती है। इस रवैये ने आम नागरिकों में असुरक्षा और गुस्सा दोनों पैदा किया है।

सरकार पर वोट बैंक की राजनीति का आरोप

राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार और उनका गठबंधन वोट बैंक की राजनीति में इतने उलझे हैं कि आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर भी ठोस कदम नहीं उठा पा रहे। हाल ही में स्वास्थ्य मंत्री इरफ़ान अंसारी ने संदिग्धों को “बच्चे” कहकर उनका बचाव किया, जिससे विवाद और तेज़ हो गया। विपक्ष का कहना है कि यह बयान सरकार की ढिलाई और समझौता नीति का सबूत है।

एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा: “झारखंड की अस्मिता और सुरक्षा दोनों दांव पर हैं। अगर अभी सख्ती नहीं हुई तो आने वाले समय में हालात और गंभीर हो सकते हैं।”

स्थानीय पुलिस की भूमिका पर सवाल

कई मामलों में देखा गया है कि आतंकियों की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली पुलिस और राष्ट्रीय एजेंसियाँ झारखंड पहुंचती हैं, लेकिन स्थानीय पुलिस की सक्रियता नदारद रहती है। यह स्थिति सवाल खड़ा करती है कि आखिर राज्य पुलिस की भूमिका क्या है और क्यों वह निर्णायक कार्रवाई नहीं करती।

सुरक्षा और भविष्य पर खतरा

विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर राज्य सरकार समय रहते सख्त कदम नहीं उठाती, तो झारखंड की पहचान, सुरक्षा और भविष्य तीनों खतरे में पड़ सकते हैं। यहां की आदिवासी संस्कृति और सामाजिक सौहार्द को बचाए रखना ही असली चुनौती है।

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न्यूज़ देखो: पहचान या पनाहगार – झारखंड किस राह पर?

झारखंड के सामने आज सबसे बड़ा सवाल है कि वह अपनी पहचान एक सांस्कृतिक और आदिवासी अस्मिता वाले राज्य के रूप में बनाए रखेगा या फिर आतंकियों का पनाहगार बनकर अपनी छवि खो देगा। सरकार और पुलिस की जवाबदेही अब और टाली नहीं जा सकती।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

समय रहते कदम उठाना ज़रूरी

झारखंड को अपनी अस्मिता और संस्कृति बचाने के लिए निर्णायक कदम उठाने होंगे। युवाओं और समाज को भी सतर्क रहकर सरकार से जवाब मांगना होगा। अब समय है कि हम सब इस बदलाव में योगदान दें। अपनी राय कॉमेंट करें और इस खबर को दोस्तों के साथ शेयर करें ताकि जागरूकता फैले।

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