
#बोकारो #प्रवासीमजदूर : ट्रांसमिशन लाइन परियोजना में कार्यरत युवक की अफ्रीकी देश नाइजर में संदिग्ध हालात में मौत
- कारिपानी गांव निवासी गणेश करमाली की नाइजर में गोली लगने से मौत।
- 16 महीने पहले ट्रांसमिशन लाइन निर्माण कार्य के लिए गए थे विदेश।
- पत्नी यशोदा देवी और तीन मासूम बच्चों पर टूटा दुखों का पहाड़।
- परिजनों ने भारत और झारखंड सरकार से पार्थिव शरीर मंगाने और मुआवजे की मांग की।
- गांव में शोक और आक्रोश का माहौल, प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल।
विदेश में मजदूरी कर रहे थे, लौटे ताबूत में
बोकारो जिले के जगेश्वर बिहार थाना क्षेत्र अंतर्गत तिलैया पंचायत के कारिपानी गांव निवासी गणेश करमाली की अफ्रीकी देश नाइजर में गोली लगने से मौत हो गई। वे लगभग 16 महीने पहले अपने जीजा के साथ नाइजर गए थे, जहाँ वे ट्रांसमिशन लाइन निर्माण कार्य में बतौर मजदूर काम कर रहे थे। इस खबर के आते ही गांव और परिवार में कोहराम मच गया है।
मौत की सूचना ने मचाई सनसनी
गणेश करमाली के परिजनों को विदेश से फोन पर यह जानकारी मिली कि गणेश को गोली मार दी गई, और उनकी मौके पर ही मौत हो गई। हालांकि गोली किन परिस्थितियों में चली, यह अब तक स्पष्ट नहीं है। घटना की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को देखते हुए स्थानीय प्रशासन और सरकार से त्वरित हस्तक्षेप की मांग की जा रही है।
ग्राम प्रधान लक्ष्मण उरांव ने कहा: “सरकार को चाहिए कि तत्काल कार्रवाई कर पार्थिव शरीर भारत मंगवाए और पीड़ित परिवार को मुआवजा दे।”
परिवार का रो-रोकर बुरा हाल
गणेश करमाली की मौत की सूचना मिलने के बाद से ही उनके घर में सन्नाटा पसरा हुआ है। पत्नी यशोदा देवी और तीन छोटे बच्चे विलाप कर रहे हैं। गांव के लोग ढांढस बंधा रहे हैं, लेकिन इस अकल्पनीय दुख का कोई मोल नहीं।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता राजू सिंह ने कहा: “यह घटना प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा पर सवाल उठाती है। सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए।”
सरकार से उठ रही है मदद की गुहार
परिजनों ने भारत सरकार और झारखंड सरकार से मांग की है कि:
- गणेश करमाली का पार्थिव शरीर जल्द भारत लाया जाए।
- परिवार को आर्थिक मुआवजा और सरकारी सहायता दी जाए।
- नाइजर स्थित भारतीय दूतावास तत्काल इस विषय में कार्रवाई सुनिश्चित करे।
गांव में लोगों का कहना है कि यदि जल्द पहल नहीं हुई तो वे सड़क पर उतरने को मजबूर होंगे।
न्यूज़ देखो: प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल
गणेश करमाली की अफ्रीका में गोली लगने से हुई मौत न सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि यह प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा, निगरानी और सरकारी जिम्मेदारी पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न भी है। हर साल सैकड़ों युवा रोजगार के लिए विदेश जाते हैं, लेकिन कई बार जान जोखिम में डालकर काम करना पड़ता है। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह इन प्रवासी मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए ठोस नीति बनाए और आपात स्थिति में मदद करने की क्षमता विकसित करे।
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संवेदनशील नागरिकता ही सबसे बड़ी ताकत
एक मजदूर की विदेश में हुई मौत ने एक पूरे गांव को झकझोर दिया है। हमें न केवल संवेदनशील नागरिक बनना होगा, बल्कि ऐसी घटनाओं में पीड़ित परिवार के साथ खड़े होने का साहस भी दिखाना होगा। इस खबर को शेयर करें, टिप्पणी करें, और इसे उन तक पहुंचाएं जो सरकारी सहायता दिलाने में मदद कर सकते हैं।