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रांची में कचरे का संकट: सफाई व्यवस्था ध्वस्त, निगम के दावों की खुली पोल

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#रांची #स्वच्छता_संकट : गली-गली कचरे का ढेर, बदबू और बीमारियों से लोग बेहाल
  • रांची में सफाई एजेंसी का फेल सिस्टम, हफ्तेभर से नहीं उठा घरेलू कचरा
  • नगर निगम को प्रति टन ₹2394 का भुगतान, फिर भी काम में भारी लापरवाही
  • मुख्य सड़कों की दिखावे वाली सफाई, अंदरूनी मोहल्लों में गंदगी का अंबार
  • MRF और वॉशिंग यूनिट नहीं, डंपिंग यार्ड में भी कुप्रबंधन
  • जनता परेशान, प्रशासन के पास समाधान नहीं, एजेंसी को सिर्फ चेतावनी

जमीनी हकीकत: स्वच्छ रांची सिर्फ नारों में

राजधानी रांची में सफाई व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है। नगर निगम के स्वच्छता के तमाम दावों के बावजूद पिछले एक सप्ताह से कई इलाकों में घरों का कचरा नहीं उठाया गया है। नतीजतन लोग बदबू और गंदगी से त्रस्त होकर सड़क किनारे कचरा फेंकने को मजबूर हैं। बीमारियों का खतरा भी मंडराने लगा है।

शहर की सफाई व्यवस्था एक निजी एजेंसी को प्रति टन ₹2394 की दर से ठेके पर सौंपी गई है। इतना ऊंचा भुगतान इसलिए तय हुआ था ताकि बेहतर संसाधन और सेवा मिले, लेकिन एजेंसी की गाड़ियाँ कॉलोनियों और स्लम इलाकों तक पहुंच ही नहीं रही हैं।

दिखावे की सफाई, गंदगी में दम तोड़ती कॉलोनियां

नगर निगम की प्राथमिकता केवल मुख्य मार्गों की सफाई तक सिमट गई है। वीआईपी मूवमेंट या निरीक्षण को ध्यान में रखकर सिर्फ मुख्य सड़कों पर कचरा उठाया जाता है, जबकि आंतरिक मोहल्ले, स्लम और बस्तियां गंदगी से सड़ रही हैं। नालियां जाम हो चुकी हैं, और बारिश ने हालात और बदतर कर दिए हैं।

“हमारी गली में एक हफ्ते से कचरा नहीं उठा। बच्चे बीमार हो रहे हैं, लेकिन निगम सुनता नहीं।”
राजकुमारी देवी, निवासी हिनू बस्ती

डंपिंग यार्ड और निस्तारण व्यवस्था में भी भारी लापरवाही

शर्तों के अनुसार, एजेंसी को मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (MRF) और वॉशिंग यूनिट बनानी थी ताकि कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान हो सके। लेकिन अब तक कोई MRF सेंटर शुरू नहीं हुआ है। कचरा गाड़ियाँ भी बिना गैरेज और वॉशिंग सुविधा के आधी खराब हो चुकी हैं, जिससे कचरा उठ ही नहीं पा रहा।

निगम की चेतावनी, लेकिन नतीजा शून्य

हमारी टीम ने इस गंभीर मुद्दे पर रांची नगर निगम के अपर प्रशासक संजय कुमार से बात की। उन्होंने स्वीकार किया कि,

“स्वच्छता एजेंसी को जिम्मेदारी दी गई है। अधिकारी मॉनिटरिंग कर रहे हैं। यदि कहीं गड़बड़ी है तो एजेंसी को सख्त हिदायत दी जाएगी।”

लेकिन जमीनी हालात में कोई सुधार नहीं दिख रहा। लोग प्रशासनिक कार्रवाई नहीं, ठोस समाधान चाहते हैं।

न्यूज़ देखो – जनता की आवाज़, गली-कूचों तक

‘न्यूज़ देखो’ यह मानता है कि राजधानी में अगर सफाई की यह स्थिति है, तो बाकी जिलों की हालत और चिंताजनक है। हमें सवाल पूछने होंगे – जब जनता का पैसा खर्च हो रहा है, तो जवाबदेही क्यों नहीं तय हो रही?
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

समय रहते नहीं सुधरी व्यवस्था, तो संकट और गहराएगा

स्वच्छ भारत मिशन की असली परीक्षा नीतियों पर नहीं, उनके क्रियान्वयन पर है। जब तक एजेंसियों पर कार्रवाई और निगरानी मजबूत नहीं होगी, जनता गंदगी में जीने को मजबूर रहेगी।

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