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गढ़वा बना मनरेगा का सिरमौर, रोजगार सृजन में गिरिडीह और दुमका भी पीछे नहीं

#झारखंड #मनरेगा_2025 : खेती पर निर्भर जिलों के लिए जीवन रेखा बना मनरेगा — चार महीनों में 39 लाख से अधिक परिवारों को मिला काम

गढ़वा मनरेगा में बना राज्य का नंबर वन जिला

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी सबसे विश्वसनीय रोजगार स्रोत के रूप में कायम है। चालू वित्तीय वर्ष (अप्रैल-जुलाई 2025) के दौरान मनरेगा के तहत राज्य के 39.25 लाख से अधिक ग्रामीण परिवारों को रोजगार प्रदान किया गया, जिसमें अकेले गढ़वा जिले में 2.79 लाख से अधिक परिवारों को काम मिला।

यह आंकड़ा राज्यभर में सर्वाधिक है और यह बताता है कि गढ़वा में मनरेगा योजनाओं का सुचारू संचालन और निगरानी हो रही है।

जिलेवार प्रदर्शन (अप्रैल-जुलाई 2025)

जिलारोजगार पाने वाले परिवार
गिरिडीह3,11,647
गढ़वा2,79,051
देवघर2,10,980
लातेहार1,92,896
चतरा1,87,997
साहेबगंज98,208
कोडरमा61,368
खूंटी44,801
लोहरदगा37,785

गढ़वा भले टॉप पर है, लेकिन गिरिडीह ने उससे भी ज्यादा परिवारों को रोजगार दिया है। संभवतः आंकड़े की प्रविष्टि या अवधि में तकनीकी भिन्नता हो सकती है, लेकिन दोनों जिले मनरेगा के मॉडल जिले माने जा सकते हैं।

जुलाई में रोजगार घटा, क्यों?

जहां अप्रैल, मई और जून में हर महीने औसतन 10 लाख से अधिक परिवारों को काम मिला, वहीं जुलाई 2025 में यह आंकड़ा घटकर 97,960 ही रह गया।

ग्रामीण विकास विशेषज्ञों के अनुसार, जुलाई में मानसून की शुरुआत के साथ ही ग्रामीण खेती-किसानी के कामों में जुट जाते हैं, जिससे मनरेगा में भागीदारी घट जाती है।

न्यूज़ देखो: गांवों की उम्मीद बना मनरेगा

न्यूज़ देखो मानता है कि मनरेगा सिर्फ एक योजना नहीं, बल्कि ग्रामीण गरीबों के लिए आत्मनिर्भरता की नींव है।
गढ़वा और गिरिडीह जैसे जिलों ने यह दिखाया है कि अगर योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन हो, तो रोजगार, विकास और सम्मान साथ-साथ संभव हैं।

हम चाहते हैं कि झारखंड के हर जिले में मनरेगा जमीनी स्तर पर लागू हो, और हर जरूरतमंद तक उसका लाभ पहुंचे।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

एक प्रेरक संदेश

गांव का विकास, देश की प्रगति का आधार है।
आइए, हम सब मिलकर ऐसे प्रयासों का समर्थन करें, जो आमजन को रोज़गार और आत्मसम्मान दे सकें।

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