
#गढ़वा #Jail_Adalat #Legal_Awareness : न्याय, स्वास्थ्य और जागरूकता का त्रिपक्षीय अभियान, बंदियों को मिली राहत
- 20 अप्रैल को गढ़वा मंडल कारा में जेल अदालत, विधिक जागरूकता और स्वास्थ्य शिविर का हुआ आयोजन
- जिला विधिक सेवा प्राधिकार, गढ़वा के निर्देश पर हुआ कार्यक्रम
- 240 कैदियों की शुगर, ब्लड प्रेशर, आंखों की जांच व सामान्य स्वास्थ्य परीक्षण
- अर्थिक रूप से कमजोर बंदियों को निःशुल्क अधिवक्ता की सुविधा पर जानकारी दी गई
- महिला एवं पुरुष वार्ड का निरीक्षण, भोजन और सफाई व्यवस्था का मूल्यांकन
न्याय और स्वास्थ्य : जेल के भीतर मिला मानवाधिकारों का संदेश
गढ़वा मंडल कारा में रविवार, 20 अप्रैल को जेल अदालत, विधिक जागरूकता शिविर एवं स्वास्थ्य जांच शिविर का आयोजन किया गया।
यह कार्यक्रम नालसा एवं झालसा के मार्गदर्शन में तथा प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश-सह-अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकार, गढ़वा नलिन कुमार के निर्देशानुसार संपन्न हुआ।
इस अवसर पर सचिव निभा रंजना लकड़ा, एसडीओ संजय कुमार और प्रभारी जेल अधीक्षक की उपस्थिति में बंदियों को उनके कानूनी अधिकारों से अवगत कराया गया।
“जो बंदी निजी अधिवक्ता रखने में असमर्थ हैं, वे जिला विधिक सेवा प्राधिकार से मुफ्त में अधिवक्ता प्राप्त कर सकते हैं,”
निभा लकड़ा
स्वास्थ्य शिविर : 240 कैदियों की जांच और दवा वितरण
कार्यक्रम के दौरान 240 महिला एवं पुरुष बंदियों की शुगर, ब्लड प्रेशर, आंखों व अन्य सामान्य स्वास्थ्य की जांच की गई।
जिन कैदियों को ज़रूरत पड़ी, उन्हें मौके पर ही दवाएं भी प्रदान की गईं।
सदर अस्पताल, गढ़वा की मेडिकल टीम इस पूरे शिविर में सक्रिय रही।
न्यायिक अधिकारियों ने जेल परिसर, भोजन गुणवत्ता और साफ-सफाई की भी समीक्षा की।
संबंधित अधिकारियों को बंदियों की सुविधाओं में किसी तरह की कोताही न बरतने के निर्देश दिए गए।
साझा प्रयास, साझा संकल्प
कार्यक्रम में एलएडीसीएस चीफ प्रविन्द साहू, डिप्टी चीफ अनिता रंजन, सहायक सुधीर तिवारी, उत्तम भारती, मेडिकल टीम और न्यायालय कर्मी प्रमोद कुमार दूबे व राजेश कुमार मौजूद रहे।
यह आयोजन न केवल न्याय तक पहुंच को सुगम बनाता है, बल्कि बंदियों के आत्मविश्वास और उनके अधिकारों की समझ को भी मजबूत करता है।
न्यूज़ देखो : आशा, अधिकार और आगे बढ़ने की पहल
‘न्यूज़ देखो’ ऐसे प्रयासों को प्रेरणादायक मानता है, जो समाज के अंतिम व्यक्ति तक न्याय और सेवा की रोशनी पहुंचाते हैं।
ऐसे शिविर न केवल बंदियों के अधिकारों को जीवंत करते हैं, बल्कि उन्हें पुनर्वास की ओर भी एक मजबूत कदम बढ़ाने में सहायक होते हैं।
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