गढ़वा: सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में हर्षोल्लास से मनाई गई भगवान महावीर जयंती

#GarhwaNews #MahavirJayanti2025 #JainDharm | छात्र-छात्राओं को मिला भगवान महावीर के विचारों से प्रेरणा लेने का संदेश

भगवान महावीर के सिद्धांतों पर चलने का संकल्प

गढ़वा जिले के केतार प्रखंड अंतर्गत सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में गुरुवार को महावीर जयंती पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत भगवान महावीर की तस्वीर पर पुष्प अर्पण कर की गई। इसमें छात्र-छात्राओं, शिक्षकों और प्रधानाचार्य ने हिस्सा लिया।

प्रधानाचार्य मनोज कुमार गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा:

“भगवान महावीर जी की जीवनी प्रत्येक विद्यार्थी को पढ़नी चाहिए और उनके सिद्धांतों को जीवन में अपनाना चाहिए।”

उन्होंने बताया कि महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे, जिन्होंने राजसी जीवन त्यागकर सन्यास को अपनाया और अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों को समाज में स्थापित किया।

महावीर स्वामी का दर्शन आज भी प्रासंगिक

आचार्य श्याम बिहारी राम ने कहा:

“भगवान महावीर के विचार आज भी समाज के लिए मार्गदर्शक हैं। ‘जियो और जीने दो’ का उनका संदेश आज के समय में और भी जरूरी हो गया है।”

उन्होंने बताया कि 2623वीं जयंती के अवसर पर यह कार्यक्रम विद्यार्थियों को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से जोड़ने का माध्यम बना।

धार्मिक उत्सव से जुड़ा सांस्कृतिक वातावरण

कार्यक्रम में भाग लेने वाले शिक्षकों और छात्र-छात्राओं ने मिलकर धार्मिक भक्ति गीत, नारे और महावीर जी के जीवन प्रसंगों पर आधारित प्रस्तुतियां दीं।

महावीर जयंती, जैन धर्म का प्रमुख पर्व है, जिसे हर वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। भगवान महावीर की मूर्ति का जुलूस, पूजा-अर्चना, और उनके विचारों पर प्रवचन इस दिन के मुख्य आकर्षण होते हैं।

विद्यालय परिवार की सक्रिय भागीदारी

इस मौके पर विद्यालय के प्रधानाचार्य मनोज गुप्ता, आचार्य सुदीप कुमार रवि, श्याम बिहारी राम, रमेश पाल, सविता कुमारी, मीना कुमारी, कुसुम कुमारी, बबिता कुमारी, चंदा कुमारी, श्वेता कुमारी सहित पूरे विद्यालय परिवार ने उत्साहपूर्वक भागीदारी निभाई।

न्यूज़ देखो – ज्ञान, संस्कृति और प्रेरणा का संगम

भगवान महावीर की शिक्षाएं हमें आज भी सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। हमें उनके सिद्धांतों को अपनाकर समाज में भाईचारा, अहिंसा और समभाव को बढ़ावा देना चाहिए।

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