
#गढ़वा #कृषिसंकट : आधार कार्ड पर एक बोरी यूरिया का नियम लागू, किसानों की मिली-जुली प्रतिक्रिया
- ओखरगड़ा प्रखंड में आज यूरिया खाद वितरण का विशेष इंतजाम।
- एक आधार कार्ड पर सिर्फ एक बोरी देने का नियम लागू।
- छोटे किसानों को मिली राहत, बड़े किसान हुए नाराज।
- किसान नागेंद्र चौधरी बोले – “ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है।”
- प्रशासन बोला – नई खेप आने पर आपूर्ति बढ़ेगी।
गढ़वा: जिले के ओखरगड़ा प्रखंड में आज यूरिया खाद वितरण को लेकर प्रशासन ने विशेष व्यवस्था की। दलेली गांव को केंद्र बनाकर चलाए गए इस कार्यक्रम में सुबह से ही हजारों किसान लंबी कतारों में खड़े नजर आए। पारदर्शिता और समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन ने सख्त नियम बनाया है कि एक आधार कार्ड पर केवल एक बोरी यूरिया दी जाएगी।
छोटे किसानों को राहत बड़ी किसानों की परेशानी
यह व्यवस्था सीमांत और छोटे किसानों के लिए राहत साबित हो रही है, क्योंकि उनकी छोटी खेती के लिए कम से कम कुछ खाद तो उपलब्ध हो रही है। लेकिन बड़े किसानों के लिए यह नियम मुसीबत बन गया है। कई एकड़ खेत वाले किसान एक बोरी से अपनी फसल संभालने में लाचार हैं।
किसान नागेंद्र चौधरी ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा:
“यह तो ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है, हमें समय पर और पर्याप्त खाद चाहिए, नहीं तो खड़ी फसलें चौपट हो जाएंगी। बड़े किसान मजबूर होकर महंगे दामों पर काला बाजारी से खाद खरीदने को विवश होंगे।”
प्रशासन की ओर से सख्त निगरानी
प्रशासन का कहना है कि यह कदम इसलिए उठाया गया ताकि पूर्वी और पश्चिमी ओखरगड़ा दोनों हिस्सों में हर किसान तक खाद पहुंच सके। आज वितरण पुलिस की मौजूदगी में अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहा, लेकिन लंबी प्रतीक्षा और सीमित आपूर्ति से कई किसान निराश दिखे।
भविष्य को लेकर असमंजस
अधिकारियों का कहना है कि यह व्यवस्था अस्थायी है। जैसे ही यूरिया की नई खेप जिले में पहुंचेगी, बड़े किसानों की जरूरतों को देखते हुए अतिरिक्त आपूर्ति की जाएगी। फिलहाल किसानों के बीच यह असमंजस बना हुआ है कि उनकी फसलें खाद की कमी से प्रभावित होंगी या प्रशासन इस संकट का स्थायी समाधान निकाल पाएगा।
न्यूज़ देखो: खाद वितरण की असमानता और किसानों की जद्दोजहद
धान की फसल के इस महत्वपूर्ण चरण में यूरिया की कमी छोटे-बड़े दोनों किसानों के लिए बड़ी चुनौती है। प्रशासनिक नियमों से जहां छोटे किसानों को राहत मिली है, वहीं बड़े किसानों की दिक्कतें और बढ़ गई हैं। यह संकट बताता है कि खेती की बुनियाद को मजबूत करने के लिए दीर्घकालिक नीतियों की कितनी आवश्यकता है।
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खेती बचाना है तो किसानों की आवाज सुननी होगी
अब वक्त आ गया है कि खाद जैसी बुनियादी जरूरत की आपूर्ति को राजनीति से ऊपर रखकर व्यावहारिक समाधान निकाला जाए। किसान ही गांव और देश की रीढ़ हैं। अपनी राय कमेंट करें और इस खबर को शेयर करें ताकि किसानों की आवाज और बुलंद हो सके।