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गढ़वा: डंडई में अनुदानित किसान उच्च विद्यालय का मैदान हुआ उपेक्षा और भ्रष्टाचार का शिकार, युवाओं ने संभाली जिम्मेदारी

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#गढ़वा #शिक्षा_विकास : युवाओं ने खुद के चंदे और श्रमदान से सुधारा स्कूल का मैदान — जनप्रतिनिधियों और प्रबंधन पर उपेक्षा का आरोप
  • किसान उच्च विद्यालय डंडई एक अनुदानित विद्यालय है, जिसे सरकार से विकास फंड मिलता है।
  • स्थानीय लोगों का आरोप, फंड का सदुपयोग नहीं, बल्कि बंदरबांट किया जा रहा है।
  • विद्यालय प्रबंधन और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा से मैदान पूरी तरह खराब हो गया था।
  • ग्रामीण युवाओं ने खुद आगे बढ़कर मैदान की मरम्मती और सफाई की जिम्मेदारी ली।
  • युवाओं ने ₹100-₹200 का चंदा एकत्र कर श्रमदान से मैदान को पुनर्जीवित किया।
  • दयानंद उर्फ पिकु, हिमांशु गुप्ता, मानिकचंद, अमित कुमार सहित कई युवा शामिल रहे।

गढ़वा जिले के डंडई प्रखंड मुख्यालय स्थित अनुदानित किसान उच्च विद्यालय डंडई का खेल मैदान अब उपेक्षा और भ्रष्टाचार का प्रतीक बन चुका था। ग्रामीणों का कहना है कि विद्यालय को सरकार से मिलने वाला विकास फंड प्रबंधन द्वारा सही तरीके से उपयोग नहीं किया जाता। जनप्रतिनिधियों की उदासीनता और विद्यालय प्रबंधन की लापरवाही के कारण मैदान की स्थिति अत्यंत खराब हो गई थी।

विद्यालय को मिलने वाले फंड का बंदरबांट का आरोप

ग्रामीणों और छात्रों का स्पष्ट आरोप है कि किसान उच्च विद्यालय डंडई को सरकार की ओर से विकास कार्यों और बुनियादी ढांचे के सुधार के लिए फंड मिलता है, लेकिन उसका पारदर्शी उपयोग नहीं होता। लोगों का कहना है कि फंड का गबन कर लिया जाता है या मनमाने ढंग से खर्च दिखाकर उसकी बंदरबांट की जाती है। परिणामस्वरूप मैदान, भवन और खेल सामग्री की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है।

एक अभिभावक ने नाराजगी जताते हुए कहा कि विद्यालय के शिक्षक और प्रबंधन समिति यदि जिम्मेदारी निभाते, तो बच्चों के खेलने का मैदान आज इस हालत में नहीं होता।

जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर सवाल

स्थानीय लोगों ने यह भी कहा कि जनप्रतिनिधियों से कई बार मैदान की मरम्मती और विद्यालय विकास के लिए आग्रह किया गया, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। ग्राम पंचायत से लेकर जिला स्तर तक समस्या उठाने के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ। लोगों का मानना है कि यदि जनप्रतिनिधि और विद्यालय प्रबंधन मिलकर ईमानदारी से प्रयास करते, तो डंडई का यह विद्यालय क्षेत्र का एक उदाहरण बन सकता था।

युवाओं की एकजुटता बनी मिसाल

लंबे समय तक उदासीनता के बाद गांव के युवाओं ने तय किया कि अब वे खुद इस मैदान को संवारेंगे। दयानंद उर्फ पिकु, हिमांशु गुप्ता, मानिकचंद, अमित कुमार, अजीत कुमार, रोशन गुप्ता, सनी कुमार, सूर्यकांत कुमार, सतीश कुमार, नीरज कुमार, चंदन कुमार, शुभम कुमार और रविंद्र कुमार सहित कई युवाओं ने एकजुट होकर श्रमदान किया।

इन युवाओं ने ₹100 से ₹200 तक का चंदा इकट्ठा कर मैदान की सफाई, समतलीकरण और मरम्मती का कार्य किया। कुछ ने खुद अपने औजार और वाहन भी लगाए ताकि काम जल्दी पूरा हो सके।

एक स्थानीय युवक ने कहा: “हमने यह ठान लिया था कि अगर सरकार और प्रबंधन नहीं करेंगे, तो हम खुद अपने विद्यालय को सुंदर बनाएंगे। यह हमारा गर्व है।”

सामूहिक श्रमदान से बदली तस्वीर

युवाओं की मेहनत और एकजुटता के चलते अब वही मैदान फिर से खेलने योग्य बन गया है। बच्चे अब दोबारा खेलकूद कर रहे हैं, और गांव में उत्साह का माहौल है। लोगों ने युवाओं की इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि यह कार्य न केवल एक उदाहरण है, बल्कि समाज में आत्मनिर्भरता और सामूहिक जिम्मेदारी की भावना को भी दर्शाता है।

ग्रामीणों का मानना है कि यदि ऐसी सोच हर पंचायत में विकसित हो, तो सरकारी लापरवाही का असर जनता अपने प्रयासों से कम कर सकती है।

न्यूज़ देखो: युवाओं की जागरूकता ने दिखाई राह

यह खबर यह दर्शाती है कि जब व्यवस्था विफल हो जाती है, तो जनता की एकजुटता ही समाधान बनती है। डंडई के युवाओं ने यह साबित कर दिया कि विकास के लिए केवल सरकारी मदद नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी भी आवश्यक है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों और विद्यालय प्रबंधन के लिए यह घटना आत्ममंथन का विषय है — जब युवा आगे आ सकते हैं, तो जिम्मेदारों को भी जवाबदेह होना चाहिए।

हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

अब बदलाव की राह युवाओं के हाथों में

गढ़वा के इन युवाओं ने यह दिखा दिया कि सीमित संसाधनों में भी सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। अब जरूरत है कि हम सब अपने समाज में ऐसी पहलों को समर्थन दें और जनहित के कार्यों में अपनी भूमिका निभाएं। सजग बनें, सक्रिय रहें और अपने क्षेत्र की समस्याओं पर आवाज उठाएं।
अपनी राय कमेंट करें, खबर को दोस्तों के साथ साझा करें और इस प्रेरक कहानी को आगे बढ़ाएं ताकि हर गांव में ऐसी मिसाल कायम हो सके।

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