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हाइलाइट्स :
- पारसनाथ से निकले नाले पर अतिक्रमण जारी, चौड़ाई घटी 25-35 फीट से 10-15 फीट
- नाले पर पुलिया व गार्डवाल निर्माण को लेकर विवाद, स्थानीय लोग कर रहे विरोध
- दो साल पहले प्रशासन ने अवैध पुल हटाया था, अब फिर से निर्माण का प्रयास
- बीडीओ ने जांच की बात कही, विभाग ने भुगतान पर रोक लगाई
- झामुमो नेता बोले- जांच कर दोषियों पर हो सख्त कार्रवाई
नाले पर अतिक्रमण से बढ़ी समस्या
गिरिडीह जिले के मधुबन में पारसनाथ से निकले नाले पर अतिक्रमण का मामला फिर से गरमा गया है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, नाले की चौड़ाई पहले 25-35 फीट थी, जो अब घटकर मात्र 10-15 फीट रह गई है।
इसके बावजूद अतिक्रमण जारी है और अब पंचायत निधि से पुलिया व गार्डवाल निर्माण को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
अवैध पुल निर्माण पर विरोध, प्रशासन ने लिया संज्ञान
“यह पुल एक संस्था को निजी लाभ पहुंचाने के लिए बनाया जा रहा है,” स्थानीय लोगों का आरोप।
मधुबन के पूर्व मुखिया प्रतिनिधि निर्मल तुरी ने बताया कि पुलिया निर्माण योजना ग्राम सभा से पारित हुई थी और 4.5 लाख की लागत से स्वीकृत की गई।
हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि यह निर्माण नाले के प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ है।
पहले भी हटाया जा चुका है अवैध पुल
“वर्ष 2022-23 में इसी स्थान पर अस्थायी पुल बनाया गया था, जिसका स्थानीय लोगों ने विरोध किया था।”
मार्च 2023 में प्रकाशित खबरों के बाद डीसी नमन प्रियेश लकड़ा ने इसे हटाने का निर्देश दिया था।
इसके बाद प्रशासन ने नाले की मापी कर अतिक्रमण हटाने की बात कही थी, लेकिन अब फिर से वही विवाद सामने आ गया है।
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प्रशासनिक अधिकारियों की प्रतिक्रिया
- सीओ गिरजा शंकर किस्कू: “मामले की जांच के लिए जिलाधिकारी के निर्देश पर कमेटी बनाई गई है। रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई होगी।”
- बीडीओ मनोज मरांडी: “अगर योजना गलत तरीके से स्वीकृत हुई है तो जांच होगी।”
- जेई कुमार रजक: “नाले पर निर्माण कार्य का भुगतान रोक दिया गया है, विभाग ने साफ किया है कि इस योजना के तहत कोई भुगतान नहीं होगा।”
झामुमो नेता बोले- हो सख्त कार्रवाई
झामुमो जिला बीस सूत्री उपाध्यक्ष संजय सिंह ने कहा:
“प्राकृतिक नाले पर जबरन पुलिया निर्माण गलत है। जिस पुल को दो साल पहले हटाया गया था, वह फिर से बनाया जा रहा है। प्रशासन को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।”
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“न्यूज़ देखो” की विशेष रिपोर्ट
मधुबन में अतिक्रमण और प्रशासनिक लापरवाही का यह मामला सरकारी सिस्टम पर सवाल खड़े कर रहा है।
क्या प्रशासन वास्तव में अतिक्रमण हटाएगा या फिर मामला एक बार फिर ठंडे बस्ते में चला जाएगा?
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