- गिरिडीह में राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन के तहत कार्यशाला।
- डॉ. पंकजें सेठ और नवीन कुमार ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जानकारी दी।
- देसी मधुमक्खी पालन के माध्यम से फसल परागण और आजीविका विकास पर जोर।
- सशस्त्र सीमा बल के अधिकारियों और कर्मियों की सक्रिय भागीदारी।
गिरिडीह: गिरिडीह स्थित 35वीं वाहिनी मुख्यालय परिसर में राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन के तहत एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का संचालन कृषि विज्ञान केंद्र बेंगाबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पंकजें सेठ और वैज्ञानिक नवीन कुमार ने किया।
कार्यशाला में तकनीकी विशेषज्ञ सरोज कुमार सिंह ने मधुमक्खी पालन की बारीकियों को विस्तार से समझाया। उन्होंने बताया कि देसी मधुमक्खी और अन्य कीट परागणकर्ताओं का समेकित संरक्षण करके किसान न केवल फसलों के परागण में सुधार कर सकते हैं, बल्कि इससे अपनी आजीविका को भी सुदृढ़ बना सकते हैं।
“देसी मधुमक्खी पालन के माध्यम से हम फसल परागण प्रबंधन को सुनिश्चित कर सकते हैं। यह कृषि और बागवानी के लिए लाभकारी साबित होता है।” – सरोज कुमार सिंह
कार्यशाला के दौरान शहद के उपयोग और इसके स्वास्थ्य लाभों के बारे में भी चर्चा की गई। वैज्ञानिकों ने बताया कि मधुमक्खी पालन से किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं और सतत विकास की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।
इस आयोजन में सशस्त्र सीमा बल के अधिकारियों और कार्मिकों ने भाग लिया और मधुमक्खी पालन के महत्व को समझा।
यह कार्यशाला गिरिडीह के किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इस पहल के माध्यम से मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देकर पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक समृद्धि को साकार किया जा सकता है।
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