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गिरिडीह के युवा शोधकर्ता रीतीक सिंह ने वेस्ट कुकिंग ऑयल से डीज़ल बनाकर रचा अनोखा इतिहास

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#गिरिडीह #वैज्ञानिक_उपलब्धि : धारियादिह के शोधकर्ता को जर्मनी में होने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ICNNN-25 में मिला आमंत्रण—ANRF देगा ट्रैवल अलाउंस
  • रीतीक सिंह, धारियादिह (गिरिडीह) के युवा शोधकर्ता।
  • वेस्ट कुकिंग ऑयल से डीज़ल बनाने में हासिल की बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि।
  • उपलब्धि पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना, जर्मनी के ICNNN-25 सम्मेलन में आमंत्रण।
  • ANRF ने घोषित किया ट्रैवल अलाउंस।
  • वर्तमान में BIT Mesra में प्रोजेक्ट एसोसिएट-II, साथ में पीएच.डी. कर रहे हैं।

गिरिडीह जिले के धारियादिह गांव से ताल्लुक रखने वाले युवा शोधकर्ता रीतीक सिंह ने अपने नवीन अनुसंधान कार्य से न केवल जिले बल्कि पूरे झारखंड और देश का नाम रोशन किया है। रीतीक ने वेस्ट कुकिंग ऑयल से डीज़ल तैयार करने में सफलता हासिल की है, जिसे अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहद सराहा जा रहा है। उनकी इस शोध उपलब्धि को देखते हुए जर्मनी में आयोजित होने वाले International Conference on Nanophysics, Nanotechnology and Nanomaterials (ICNNN-25) में उन्हें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है। साथ ही, देश के शीर्ष शोध संस्थानों में से एक ANRF (Anusandhan National Research Foundation) ने उनकी जर्मनी यात्रा के लिए आधिकारिक ट्रैवल अलाउंस देने की घोषणा कर उनके कार्य का सम्मान किया है।

वेस्ट कुकिंग ऑयल से डीज़ल: पर्यावरण हितैषी शोध की अनोखी दिशा

रीतीक का शोध एक ऐसे समय में आया है जब दुनिया पर्यावरण संरक्षण, कचरा प्रबंधन और वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों को लेकर गंभीर चिंताओं से गुजर रही है। वेस्ट कुकिंग ऑयल को अक्सर या तो नालियों में बहा दिया जाता है या गलत तरीके से निपटाया जाता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है। ऐसे में इस अपशिष्ट तेल का उपयोग कर डीज़ल तैयार करना न केवल तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण था बल्कि अत्यंत लाभकारी भी है।

रीतीक ने इस शोध में ऐसे वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग किया जिससे अपशिष्ट तेल को पुनः उपयोग योग्य ईंधन में परिवर्तित किया जा सके। इस तकनीक से न केवल प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी, बल्कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में ऊर्जा की उपलब्धता भी सुलभ होगी।

जर्मनी में ICNNN-25 सम्मेलन में मिलेगा मंच

रीतीक के शोध कार्य को अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय ने अत्यंत महत्वपूर्ण माना है। इसी के तहत उन्हें जर्मनी में आयोजित होने वाले ICNNN-25 अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में अपना शोध प्रस्तुत करने का अवसर दिया गया है। यह सम्मेलन दुनिया के प्रमुख वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का प्रमुख मंच है, जहां नैनोफिजिक्स, नैनोटेक्नोलॉजी और नैनोमैटेरियल्स पर केंद्रित नवीन शोध साझा किए जाते हैं।

उनके आमंत्रण की घोषणा होने के बाद वैज्ञानिक समुदाय में उन्हें लेकर उत्साह और गर्व देखा जा रहा है। यह अवसर ना केवल उनके करियर को नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा बल्कि झारखंड के युवा शोधकर्ताओं के लिए भी एक प्रेरणा बनेगा।

ANRF की ओर से ट्रैवल अलाउंस—राष्ट्रीय स्तर पर मिली बड़ी मान्यता

रीतीक के कार्य की गुणवत्ता और उपयोगिता को देखते हुए ANRF (Anusandhan National Research Foundation) ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए विशेष ट्रैवल अलाउंस देने की घोषणा की है। यह सम्मान दर्शाता है कि उनका शोध राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कितना महत्वपूर्ण माना गया है।

ग्राफीन और जंगरोधी तकनीक पर भी कर चुके हैं प्रमुख शोध

रीतीक सिंह इससे पहले ग्राफीन आधारित तकनीक और जंगरोधी (anti-corrosion) तकनीक पर भी उल्लेखनीय शोध कार्य कर चुके हैं। इन शोधों ने भी वैज्ञानिक समुदाय का ध्यान आकर्षित किया था। नैनोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उनका गहन अध्ययन और प्रयोगशीलता उन्हें नई पीढ़ी के उभरते वैज्ञानिकों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा करती है।

BIT Mesra में कर रहे हैं शोध और करियर निर्माण

वर्तमान में रीतीक BIT Mesra के भौतिकी विभाग में प्रोजेक्ट एसोसिएट-II के पद पर कार्यरत हैं। इसके साथ ही वे अपना पीएच.डी. शोध भी कर रहे हैं। संस्थान में उनके मार्गदर्शक और शोध समूह उनकी मेहनत, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अनुसंधान निष्ठा की अक्सर प्रशंसा करते हैं।

न्यूज़ देखो: युवा वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणादायक मिसाल

रीतीक सिंह की उपलब्धि यह साबित करती है कि संसाधनों की कमी प्रतिभा को रोक नहीं सकती। गिरिडीह जैसे जिले से निकलकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँचना बड़ी बात है, और यह उपलब्धि उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है जो विज्ञान को अपना करियर बनाना चाहते हैं। सरकार और संस्थानों द्वारा समय पर सम्मान और सहयोग मिलना भी शोध संस्कृति को और मजबूत करता है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

खोज की राह पर चलें — युवा वैज्ञानिकों की ऊर्जा देश की शक्ति

रीतीक जैसी कहानियाँ हमें यह एहसास कराती हैं कि मेहनत, जिज्ञासा और निरंतर सीखने का जुनून किसी भी मंज़िल को हासिल कर सकता है। आज जब दुनिया नई ऊर्जा तकनीकों की तलाश में आगे बढ़ रही है, ऐसे नवाचार देश की शक्ति बनते हैं। हमें भी विज्ञान और शोध को सम्मान देने की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ और भी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कर सकें।
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Surendra Verma

डुमरी, गिरिडीह

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