
#जारी #आदिवासी_खेल : पटनाडाड़ मैदान पर उत्साह, सद्भाव और खेल भावना का संगम
- पटनाडाड़ मैदान में आदिवासी फुटबॉल मैच का हुआ भव्य आयोजन।
- रुद्रपुर टीम ने पतराटोली को प्लेनटी शूटआउट में हराकर जीता बड़ा खसी पुरस्कार।
- पतराटोली टीम को मिला छोटा खसी पुरस्कार।
- आयोजन में स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों और क्लब के सदस्यों ने निभाई अहम भूमिका।
- झारखंड-छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी भी शामिल होकर बढ़ाया टूर्नामेंट का महत्व।
- ग्रामीणों ने स्थायी फुटबॉल मैदान निर्माण की उठाई मांग।
जारी प्रखंड के बड़काडीह डूमरपानी स्थित पटनाडाड़ मैदान सोमवार को गवाह बना उस ऐतिहासिक क्षण का, जब आदिवासी फुटबॉल का भव्य आयोजन पूरे जोश और उमंग के साथ संपन्न हुआ। गोविंदपुर पंचायत के रुद्रपुर और सीसी करमटोली पंचायत के पतराटोली की टीमें आमने-सामने उतरीं। फाइनल मुकाबले में दोनों ओर से शानदार खेल कौशल का प्रदर्शन हुआ। रोमांचक प्लेनटी शूटआउट में रुद्रपुर ने एक गोल से बढ़त बनाते हुए जीत अपने नाम कर ली और बड़ा खसी पुरस्कार हासिल किया। वहीं पतराटोली को छोटा खसी पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
आयोजन की गरिमा और सामूहिकता
इस आयोजन का सफल संचालन राजेंद्र कोरवा, सुखराम महतो, धनी नगेसिया, पितरुस तिग्गा, रंगू कोरवा, लेटन कोरवा, बीरबल नायक समेत कई स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों ने किया। यह टूर्नामेंट आदिवासी क्लब के तत्वावधान में वर्ष 2016 से लगातार आयोजित हो रहा है। मैदान की सीमित सुविधाओं के बावजूद आयोजकों और खिलाड़ियों का जोश देखते ही बनता था।
खेल से बढ़ता सद्भाव और एकता
खेल के माध्यम से आदिवासी समाज के साथ-साथ अन्य समाज के लोग भी आपसी सद्भावना और सहयोग का संदेश दे रहे हैं। विशेष बात यह रही कि इस आयोजन में झारखंड और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों के खिलाड़ियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया, जिससे क्षेत्रीय एकता और सामाजिक समरसता को मजबूती मिली।
स्थायी मैदान की जरूरत
ग्रामीणों ने एक स्वर में प्रखंड प्रशासन और जिला प्रशासन से पटनाडाड़ में स्थायी फुटबॉल मैदान के निर्माण की मांग की। उनका मानना है कि यदि यह सुविधा उपलब्ध हो जाए तो खिलाड़ियों को बेहतर अवसर मिलेगा और खेल का स्तर भी ऊंचा होगा। साथ ही इस आयोजन का दायरा और भी व्यापक हो सकेगा, जिससे क्षेत्र का सामाजिक और सांस्कृतिक विकास संभव होगा।



न्यूज़ देखो: खेल मैदान से उठी विकास की मांग
यह आयोजन केवल एक फुटबॉल मैच नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की संस्कृति, एकता और संघर्षशीलता का प्रतीक है। मैदान की कमी के बावजूद जो ऊर्जा दिखी, वह बताती है कि खेल युवाओं के लिए उम्मीद और बदलाव का जरिया है। प्रशासन यदि इस दिशा में कदम उठाए तो यह आयोजन आने वाले वर्षों में राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच सकता है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
खेल ही है नई पीढ़ी की सच्ची पहचान
अब समय है कि हम खेल को सिर्फ मनोरंजन न मानें, बल्कि इसे समाज की शक्ति और युवाओं के भविष्य से जोड़कर देखें। यदि हम सब मिलकर इस मांग का समर्थन करें तो न केवल खिलाड़ी, बल्कि पूरा क्षेत्र एक नई दिशा पाएगा। अपनी राय कॉमेंट करें और इस खबर को दोस्तों तक शेयर करें ताकि इस पहल को मजबूती मिले।