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गुमला: पेरवाटोली गांव में लीज खनन पर ग्राम सभा में फूटा विरोध, ग्रामीणों ने कहा – “धरोहर पर चोट मंजूर नहीं”

#डुमरी #ग्रामसभा : पेरवाटोली के ग्रामीणों ने खनन प्रस्ताव को किया खारिज, पर्यावरण और संस्कृति की रक्षा के लिए दिखाया एकजुटता

प्रस्तावित खनन पर बिफरे ग्रामीण

डुमरी प्रखंड के खेतली पंचायत अंतर्गत पेरवाटोली गांव में गुरुवार को लीज खनन को लेकर एक महत्वपूर्ण ग्राम सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में प्रखंड प्रशासन, जनप्रतिनिधि और खनन कार्य के इच्छुक ठेकेदार मौजूद थे। लेकिन ग्राम सभा का माहौल उस वक्त बदल गया, जब ग्रामीणों ने एकजुट होकर खनन प्रस्ताव का विरोध करना शुरू किया।

एक ग्रामीण महिला ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा:
“हम जंगल में रहते हैं, जंगल हमारे जीवन का हिस्सा है। सरकार हमसे हमारी जड़ें छीनना चाहती है, हम ऐसा कभी नहीं होने देंगे।”

धरोहर, आस्था और जीवन का सवाल

ग्रामीणों का कहना है कि जिस जमीन पर खनन प्रस्तावित है, वह उनकी पुश्तैनी संपत्ति है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था से जुड़ी हुई है। वहां स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा, आदिवासी परंपराओं का पालन, और सामूहिक त्योहारों का आयोजन होता रहा है।

एक बुजुर्ग ने ग्राम सभा में भावुक होते हुए कहा:
“यह जमीन हमारी पहचान है, हमारे पूर्वजों की धरोहर है। इसे हम पैसों या लालच में नहीं छोड़ सकते। विकास जरूरी है, लेकिन प्रकृति और संस्कृति की कीमत पर नहीं।”

पर्यावरण और जीवन पर खतरा

ग्रामीणों ने स्पष्ट किया कि यदि इस क्षेत्र में खनन हुआ, तो इसके भारी पर्यावरणीय दुष्परिणाम होंगे। इससे जल स्रोत, खेत, हरियाली, और वन्य जीव प्रभावित होंगे। इसके अलावा प्रदूषण, ध्वनि, और विस्थापन जैसी समस्याएं गांव को तबाह कर देंगी।

प्रशासन ने सुनी चिंता, लिया फीडबैक

ग्राम सभा में उपस्थित प्रशासनिक अधिकारियों ने ग्रामीणों की आपत्ति को गंभीरता से सुना और आश्वासन दिया कि बिना ग्रामीणों की सहमति के कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि ग्रामीणों की राय वरिष्ठ अधिकारियों को भेजी जाएगी और उनकी संवेदनाओं का सम्मान किया जाएगा

एकजुटता बनी ग्रामीणों की ताकत

ग्राम सभा में महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों की भारी उपस्थिति ने साफ कर दिया कि पेरवाटोली गांव इस मुद्दे पर पूरी तरह संगठित है। सभी ने एक सुर में कहा कि वे अपनी जमीन, संस्कृति और भविष्य की सुरक्षा के लिए किसी भी स्तर तक लड़ाई लड़ेंगे

एक युवा प्रतिनिधि ने कहा:
“विकास हमें भी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं जो हमें उजाड़ दे। हम जंगल के संरक्षक हैं, उसके मालिक नहीं।”

न्यूज़ देखो: जब जनता उठाती है जिम्मेदारी

गांव की यह ग्राम सभा सिर्फ विरोध नहीं, लोकतांत्रिक भागीदारी की मिसाल भी है। ‘न्यूज़ देखो’ इस तरह की सूझबूझ और जागरूकता को सलाम करता है। जब लोग अपने हक और प्रकृति के लिए संगठित होते हैं, तब विकास और संवेदनशीलता का संतुलन संभव होता है।

संस्कृति, प्रकृति और अधिकारों की रक्षा से ही टिकेगा आदिवासी अस्तित्व

‘न्यूज़ देखो’ सभी ग्रामीण समुदायों से अपील करता है कि वे अपनी संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा में सजग रहें। हर निर्णय में भागीदारी लें और अपनी आवाज लोकतांत्रिक मंचों तक मजबूती से पहुँचाएं।
आदिवासी अस्तित्व की जड़ें जंगल, जमीन और जल में हैं — इन्हें बचाकर ही भविष्य को सुरक्षित रखा जा सकता है।

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