
#गुमला #मत्स्यपालनसफलता : भिखमपुर निवासी जोनी कुजुर ने सरकारी योजनाओं के सहयोग से शुरू किया मत्स्य पालन — अब 10 से 15 ग्रामीणों को भी मिल रहा लाभकारी रोजगार
- जारी प्रखंड के जोनी कुजुर ने वर्ष 2016 में मछली पालन की शुरुआत की
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत निजी भूमि पर ग्रो-आउट तालाब का निर्माण कराया
- लगभग 15,000 अंगुलिकाओं का संचयन, सालाना ₹3-4 लाख तक का शुद्ध लाभ
- गुमला मत्स्य विभाग से प्रशिक्षण और ₹5 लाख का निःशुल्क बीमा भी प्राप्त
- स्थानीय रोजगार के नए अवसर, बाहरी राज्यों की निर्भरता घटी
मछली पालन में बनी आजीविका की नई राह
गुमला जिले के जारी प्रखंड के भिखमपुर गांव निवासी जोनी कुजुर ने बेरोजगारी से जूझते हुए मछली पालन को अपने जीवन की दिशा बना लिया। वर्ष 2016 में जब वे सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे थे, तब उन्होंने गांव में अन्य मत्स्य कृषकों को देख इस क्षेत्र में कदम रखा।
शुरुआत में लीज पर तालाब लेकर काम शुरू किया और बाद में मत्स्य विभाग से तकनीकी प्रशिक्षण लेकर व्यवस्थित ढंग से मत्स्य पालन शुरू किया।
सरकारी योजनाओं से मिला मजबूती का आधार
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत वर्ष 2023-24 में जोनी कुजुर ने निजी भूमि पर ग्रो-आउट तालाब का निर्माण कराया। इसकी कुल ईकाई लागत ₹7 लाख थी, जिसमें से अनुसूचित जाति/जनजाति/महिला लाभुकों को 60% यानी ₹4.20 लाख का अनुदान दिया गया।
साथ ही राज्य सरकार से ₹1.75 लाख की स्टेट टॉप-अप राशि, और इनपुट हेतु ₹2.40 लाख का अनुदान भी मिला।
मत्स्य विभाग द्वारा तीन दिवसीय प्रशिक्षण, फीड, रपॉन, और कैचिंग नेट की व्यवस्था भी अनुदान पर कराई गई।
आर्थिक आत्मनिर्भरता और सामाजिक बदलाव
वर्तमान में जोनी कुजुर के पास 2.5 एकड़ में तीन तालाब हैं, जिनमें उन्होंने लगभग 15,000 अंगुलिकाओं का संचयन किया है। इससे उन्हें हर वर्ष ₹3–4 लाख का शुद्ध लाभ होता है।
10 से 15 ग्रामीणों को रोजगार मिल रहा है, जिससे वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आत्मनिर्भर हो रहे हैं।
उनके उत्पादन से अब गुमला जिले के चैनपुर, डुमरी और रायडीह प्रखंडों के कृषकों को उचित दर पर मछली मिल रही है, और बाहरी विक्रेताओं पर निर्भरता कम हो गई है।
जोनी कुजुर ने कहा: “सरकारी योजना और विभाग के सहयोग से मत्स्य पालन से आत्मनिर्भर बन सका। अब मेरा सपना है कि और भी ग्रामीण इस दिशा में आगे बढ़ें।”
विभाग का सक्रिय सहयोग
मत्स्य विभाग, गुमला द्वारा जोनी कुजुर का ₹5 लाख का दुर्घटना बीमा निःशुल्क करवाया गया है। उनकी सफलता अब अन्य युवाओं को भी इस क्षेत्र में आने को प्रेरित कर रही है।
सरकार द्वारा दिए गए संसाधन और प्रशिक्षण से एक नया ग्रामीण उद्यमशीलता मॉडल विकसित हुआ है, जो मछली पालन को सिर्फ पेशा नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव का माध्यम बना रहा है।

न्यूज़ देखो: ग्रामीण आत्मनिर्भरता की मिसाल बना भिखमपुर
‘न्यूज़ देखो’ मानता है कि जोनी कुजुर जैसे जमीनी नायकों की कहानियां ही आत्मनिर्भर भारत का असली आधार हैं। जब सरकारी योजनाएं सही लाभुकों तक पहुँचती हैं और लोग उनका भरपूर उपयोग करते हैं, तब रोज़गार और सम्मान दोनों का सृजन होता है।
यह कहानी बताती है कि विकास केवल सरकारी दफ्तरों में नहीं, गांव के तालाबों और खेतों में भी लिखा जा रहा है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
प्रेरणा लें और पहल करें
जोनी कुजुर की कहानी यह बताती है कि अगर इरादा मजबूत हो और योजनाओं की जानकारी सही समय पर मिले, तो गांव का युवा भी रोजगारदाता बन सकता है।
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