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गुमला की आदिवासी बेटी डॉ. सोनाझरिया मिंज बनीं यूनेस्को शोध चेयर की को-चेयरपर्सन

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#गुमला #अंतरराष्ट्रीय_सम्मान : जारी प्रखंड की आदिवासी महिला को मिला ऐतिहासिक वैश्विक दायित्व — मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत कई नेताओं ने दी बधाई, गांव में हर्ष की लहर
  • डॉ. सोनाझरिया मिंज बनीं यूनेस्को शोध चेयर की को-चेयरपर्सन
  • कनाडा की डॉ. एमी पेरेंट के साथ करेंगी आदिवासी ज्ञान शासन पर शोध
  • JNU से शिक्षित, SKMU की पूर्व कुलपति और गोस्सनर कॉलेज परिवार से संबंध
  • मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा: “झारखंड की बेटियां वैश्विक मंच पर दमदार पहचान बना रही हैं”
  • गांव और जिले में खुशी की लहर, परिवारजनों ने साझा की भावनाएं

आदिवासी समाज से पहली बार यूनेस्को में शोध चेयर पर झारखंड की बेटी

गुमला जिले के जारी प्रखंड के अवराटोली गांव की बेटी डॉ. सोनाझरिया मिंज को यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा स्थापित “आदिवासी ज्ञान पद्धति शासन में परिवर्तन” विषय पर शोध की को-चेयरपर्सन नियुक्त किया गया है।
उनके साथ कनाडा की डॉ. एमी पेरेंट को भी यह दायित्व सौंपा गया है।
यह पहली बार है जब यूनेस्को ने दो आदिवासी महिलाओं को एक साथ इस विषय पर वैश्विक शोध नेतृत्व सौंपा है।
डॉ. सोनाझरिया झारखंड की पहली महिला हैं जिन्हें यह इतिहास रचने वाला सम्मान प्राप्त हुआ है।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा: “झारखंड की बेटियाँ अब वैश्विक मंचों पर अपनी दमदार पहचान बना रही हैं, यह राज्य के लिए गौरव की बात है।”

JNU से लेकर विश्वविद्यालय की कुलपति तक का प्रेरणादायक सफर

डॉ. सोनाझरिया मिंज ने JNU (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय), दिल्ली से शिक्षा प्राप्त की है।
वह वहां कंप्यूटर साइंस विभाग की डीन और शिक्षक संघ की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं।
इसके अतिरिक्त वह झारखंड के दुमका स्थित सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय (SKMU) की पूर्व कुलपति भी रही हैं।
उनकी पहचान एक शिक्षा विदुषी, आदिवासी विचारक और सक्रिय समाजसेविका के रूप में है।

गुमला की बेटी, झारखंड की शान

डॉ. सोनाझरिया मिंज के पिता डॉ. निर्मल मिंज, गोस्सनर कॉलेज रांची के संस्थापक प्राचार्य और एनडब्ल्यूजीएल चर्च के प्रथम बिशप रह चुके हैं।
उनकी माता परकलता मिंज एक शिक्षिका रही हैं।
डॉ. मिंज की तीन बहनें हैं और उनका विवाह डॉ. बतूएल एक्का (बरोबिसा, अलीपुरद्वार, पश्चिम बंगाल) से हुआ है।

उनके चचेरे भाई अजय मिंज के अनुसार, डॉ. सोनाझरिया को अपने गांव और जड़ों से गहरा लगाव है।
हर त्योहार पर वे गांव आती हैं और ग्रामीणों के साथ मिलती-जुलती हैं।

गांव के बुजुर्ग मैतन बेक ने कहा: “सोनाझरिया के पिता जब भी गांव आते थे, सभी से आत्मीयता से मिलते थे, उसी परंपरा को वह भी निभा रही हैं।”

गुमला से वैश्विक पहचान की ओर

डॉ. सोनाझरिया की इस नियुक्ति से गांव, प्रखंड, जिला और पूरे राज्य में हर्ष की लहर है।
उनकी उपलब्धि ने यह सिद्ध कर दिया है कि झारखंड की आदिवासी बेटियाँ भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अग्रणी भूमिका निभाने की क्षमता रखती हैं।
यह उनके संकल्प, परिश्रम और शिक्षकीय उत्कृष्टता का परिणाम है।

न्यूज़ देखो: प्रतिभा और परंपरा का अद्वितीय संगम

न्यूज़ देखो ऐसे प्रेरणास्पद क्षणों को सामने लाने का कार्य करता है, जो समाज के हर वर्ग, खासकर आदिवासी समुदाय की संघर्ष-से-उत्कर्ष यात्रा को उजागर करे।
डॉ. सोनाझरिया मिंज की यह नियुक्ति न केवल उनके व्यक्तिगत सफर की सिद्धि है, बल्कि झारखंड की परंपरागत ज्ञान और आधुनिक शिक्षा के समन्वय का प्रतीक है।
हमारा उद्देश्य है कि ऐसे उदाहरणों के ज़रिए नई पीढ़ी को प्रेरणा मिले और पहचान के लिए संघर्ष करने वाले समुदायों को सशक्त मंच मिले।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

आइए करें झारखंड की बेटियों को सलाम

डॉ. सोनाझरिया मिंज जैसी हस्तियाँ समाज के लिए आदर्श हैं।
उनकी कहानी यह बताती है कि संघर्ष और शिक्षा से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है।
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