#खूंटी #पुलिस_अत्याचार : चाइल्ड राइट्स फाउंडेशन की शिकायत पर एनएचआरसी ने राज्य सरकार को भेजा नोटिस, नाबालिग को एक लाख रुपये मुआवजा और दोषी पुलिसकर्मियों पर FIR का आदेश
- एनएचआरसी ने झारखंड पुलिस के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन का माना दोष
- दोषी पुलिसकर्मी पर FIR दर्ज करने और चार हफ्ते में रिपोर्ट देने का आदेश
- नाबालिग की बर्बर पिटाई के लिए राज्य को 1 लाख रुपये मुआवजे की अनुशंसा
- चाइल्ड राइट्स फाउंडेशन के सचिव बैद्यनाथ कुमार की शिकायत पर हुई कार्रवाई
- आरोपी पुलिस अधिकारी संतोष रजक फिलहाल निलंबित, लेकिन राज्य की लापरवाही पर सवाल
NHRC की बड़ी पहल, राज्य सरकार को भेजा कारण बताओ नोटिस
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने खूंटी जिला बल के एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTU) के तत्कालीन SI संतोष रजक और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ मानवाधिकार हनन का मामला प्रमाणित पाया है। आयोग ने सरकार को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 18 के तहत नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि नाबालिग पीड़ित को ₹1,00,000 का मुआवजा क्यों न दिया जाए।
साथ ही खूंटी एसपी को चार सप्ताह के भीतर यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि दोषी पुलिसकर्मी और अन्य ग्रामीणों के खिलाफ FIR दर्ज हो, और कार्रवाई रिपोर्ट आयोग को भेजी जाए।
बैद्यनाथ कुमार की शिकायत से खुला मामला
इस मामले की शिकायत चाइल्ड राइट फाउंडेशन, रांची के सचिव बैद्यनाथ कुमार ने की थी। उन्होंने आयोग सदस्य प्रियांक कानूनगो को पत्र लिखकर बताया था कि 16 फरवरी 2025 को खूंटी पुलिस मानव तस्करी के एक आरोपी की तलाश में गांव पहुंची थी, लेकिन आरोपी नहीं मिला।
पुलिस ने आरोपी के घर में तोड़फोड़ की और उसके नाबालिग बेटे को उठाकर खूंटी महिला थाना ले गई, जहां उसकी बर्बर पिटाई की गई। हालत इतनी खराब थी कि बच्चा न तो बैठ पा रहा था और न खड़ा हो पा रहा था।
जांच में खुलासा — पुलिस की बर्बरता और अधिकारों का हनन
आयोग की जांच में पुष्टि हुई कि SI संतोष रजक ने आरोपी को न मिलने पर उसके नाबालिग बेटे को अवैध रूप से हिरासत में लिया, थाने लाकर पिटाई की और धमकी दी। यह किशोर न्याय अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता 2023 का घोर उल्लंघन है।
पुलिस अधिकारी ने स्वीकार किया कि बच्चा आरोपी नहीं था, फिर भी उसे उठाकर लाया गया और पीटा गया। आयोग ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई न केवल असंवैधानिक थी बल्कि मानवाधिकारों की भी गंभीर अवहेलना है, जिसमें राज्य को जवाबदेह ठहराया गया है।
न्यूज़ देखो: नाबालिगों पर पुलिसिया अत्याचार लोकतंत्र पर सवाल
न्यूज़ देखो की ओर से यह सवाल अहम है कि कब तक निर्दोष नागरिकों, खासकर बच्चों को कानून की आड़ में निशाना बनाया जाएगा?
क्या पुलिस विभाग को आत्ममंथन की ज़रूरत नहीं?
आयोग की यह कार्रवाई एक चेतावनी है, कि राज्य की जवाबदेही तय होनी ही चाहिए — चाहे वह थाने का दरोगा हो या प्रशासन का कोई बड़ा अधिकारी।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
आपके इलाके में ऐसे किसी घटना की जानकारी हो, तो न्यूज़ देखो को बताएं — क्योंकि अन्याय का जवाब केवल सच से दिया जा सकता है।