
#महुआडांड़ #अवैधईंटभट्ठे : मीडिया रिपोर्टों और शिकायतों के बावजूद प्रशासन और वन विभाग की निष्क्रियता पर स्थानीय लोगों में नाराजगी।
- महुआडांड़ क्षेत्र में अवैध बांग्ला ईंट भट्ठों का बे रोक-टोक संचालन जारी।
- सरकारी टास्क फोर्स और सख्त निर्देशों का जमीनी स्तर पर कोई असर नहीं।
- कई भट्ठे बिना लाइसेंस और बिना पर्यावरणीय NOC के चल रहे।
- ग्रामीण इलाकों में मिट्टी का अवैध उत्खनन और ट्रैक्टरों की लगातार आवाजाही।
- मीडिया रिपोर्टों के बावजूद प्रशासन और वन विभाग कार्रवाई से दूर।
- अवैध धंधे से पर्यावरण, मजदूर सुरक्षा और राजस्व पर गंभीर असर।
महुआडांड़ प्रखंड में अवैध बांग्ला ईंट भट्ठों का संचालन लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकारी आदेश, टास्क फोर्स और सख्ती के दावों के बावजूद क्षेत्र में अवैध उत्खनन और ईंट निर्माण पर कोई प्रभावी रोक नहीं लग सकी है। पिछले दिनों लगातार प्रकाशित रिपोर्टों के बावजूद प्रशासन तथा संबंधित विभाग चुप्पी साधे हुए हैं, जिससे ग्रामीणों में असंतोष बढ़ रहा है। स्थानीय लोगों के आरोप हैं कि वन विभाग के अधिकारी कथित रूप से पैसे लेकर इस अवैध कारोबार पर आंखें मूंदे हुए हैं, जिससे भट्ठा संचालकों के हौसले और भी बढ़ गए हैं।
सरकारी सख्ती की जमीनी हकीकत कमजोर
महुआडांड़ में सरकार द्वारा गठित टास्क फोर्स की मौजूदगी का कोई प्रत्यक्ष असर नहीं दिख रहा। कई ग्रामीण इलाकों में दिन-रात मिट्टी की अवैध खुदाई जारी है और ट्रैक्टर बिना किसी रोक-टोक के आवाजाही कर रहे हैं। भट्ठों से लगातार उठते धुएं और जारी उत्पादन से स्पष्ट है कि अधिकतर यूनिट नियमों को दरकिनार कर खुलेआम संचालन कर रहे हैं। ग्रामीण बताते हैं कि कभी-कभार कागजी जांच दिखाने की कोशिश होती है, पर जमीन पर स्थिति जस की तस रहती है।
अधिकांश भट्ठे बिना अनुमति और बिना NOC संचालन में
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, क्षेत्र के अधिकांश बांग्ला ईंट भट्ठे बिना वैध लाइसेंस, बिना पर्यावरण विभाग की NOC और बिना किसी तकनीकी स्वीकृति के चल रहे हैं। मजदूर सुरक्षा मानकों की भी पूरी तरह अनदेखी की जा रही है। मिट्टी का अनियंत्रित उत्खनन न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि राज्य के राजस्व को भी भारी क्षति पहुँचा रहा है। कई भट्ठा संचालक सीमावर्ती क्षेत्रों का लाभ उठाकर अवैध उत्खनन को और बढ़ावा दे रहे हैं।
मीडिया रिपोर्टों के बाद भी प्रशासन की कार्रवाई शून्य
लगातार रिपोर्टें प्रकाशित होने के बावजूद प्रशासन की ओर से किसी तरह की छापेमारी, सीलिंग या लाइसेंस सत्यापन की जानकारी सामने नहीं आई है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि शिकायतों और रिपोर्टों के बावजूद भी अधिकारियों का रवैया उदासीन है। कई नागरिकों ने कहा कि यदि खुलासे के बावजूद भी कार्रवाई नहीं होती, तो यह सवाल उठता है कि आखिर किसके संरक्षण में अवैध भट्ठों का कारोबार फल-फूल रहा है।
वन विभाग की भूमिका पर गंभीर सवाल
स्थानीय निवासियों का आरोप है कि क्षेत्र में वनभूमि का अत्यधिक दोहन हो रहा है और मिट्टी की अवैध खुदाई वन विभाग की जानकारी में होने के बावजूद रोक नहीं लगाई जा रही। ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि कई स्थानों पर वन विभाग के अधिकारी कथित रूप से पैसे लेकर चुप बैठे हैं, जिससे अवैध बांग्ला भट्ठों की संख्या लगातार बढ़ रही है। भट्ठा संचालक बेखौफ होकर मिट्टी निकाल रहे हैं, जिससे जंगलों की भूमि संरचना प्रभावित हो रही है।
पर्यावरणीय जोखिम और ग्रामीण आबादी पर असर
अवैध भट्ठों से निकलने वाला धुआँ, राख और प्रदूषक कण स्थानीय पर्यावरण को तेजी से नुकसान पहुंचा रहे हैं। अनियंत्रित उत्खनन से मिट्टी की गुणवत्ता घट रही है और कई इलाकों में जलस्तर भी प्रभावित हो रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, लगातार धुएं और प्रदूषण के संपर्क में रहने से ग्रामीणों में श्वास संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। बच्चे और बुजुर्ग विशेष रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
मजदूरों की सुरक्षा स्थिति बेहद खराब
भट्ठों में काम करने वाले मजदूरों के पास न सेफ्टी किट है, न मास्क, न किसी प्रकार का मेडिकल सहयोग। वे लगातार उच्च तापमान और धुएं में काम करने को मजबूर हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है। मजदूरों के लिए न पीने के पानी की उचित व्यवस्था है, न विश्राम स्थल, न ही प्राथमिक चिकित्सा। यह स्थिति मजदूर अधिकारों के सीधे उल्लंघन की ओर संकेत करती है।
प्रशासन की चुप्पी से बढ़े ऑपरेटरों के हौसले
ग्रामीणों के अनुसार, प्रशासन की निष्क्रियता ने अवैध भट्ठा संचालकों को पूरी तरह बेखौफ कर दिया है। लोगों की मांग है कि तत्काल जिलेभर में व्यापक जांच अभियान चलाया जाए और लाइसेंस सत्यापन के साथ अवैध भट्ठों पर सख्त कार्रवाई की जाए। केवल कागजी दावों से स्थिति नहीं बदलेगी जब तक कि प्रशासनिक स्तर पर स्पष्ट और कठोर कदम न उठाए जाएं।

न्यूज़ देखो: अवैध कारोबार पर चुप्पी प्रशासनिक विफलता का संकेत
यह पूरा मामला दिखाता है कि महुआडांड़ में कानून का पालन केवल कागजों में है, जमीन पर नहीं। अवैध भट्ठों का बढ़ता संचालन न सिर्फ प्रशासनिक तंत्र की कमजोरी दर्शाता है, बल्कि वन विभाग की भूमिका पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है। यदि अधिकारी सक्रियता दिखाएँ, तो अवैध उत्खनन और प्रदूषण को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
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अब समय है अवैध कारोबार के खिलाफ सामुदायिक जागरूकता बढ़ाने का
महुआडांड़ जैसे क्षेत्रों में पर्यावरण और जनस्वास्थ्य की रक्षा तभी संभव है, जब नागरिक भी आवाज उठाएँ। अवैध भट्ठों से होने वाला नुकसान आने वाली पीढ़ियों तक असर डाल सकता है, इसलिए जागरूकता और समाज की सक्रिय भूमिका अत्यंत आवश्यक है। यदि प्रशासन निष्क्रिय है, तो जनता को अपनी एकजुट मांगों से व्यवस्था को जवाबदेह बनाना होगा।
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