
#गुमला #बालूउठाव : NGT की मनाही के बावजूद लवा नदी में जारी अवैध खनन — प्रशासन मौन तमाशाई
- NGT के सख्त आदेशों के बावजूद जारी है लवा नदी से बालू का उठाव।
- 18 जुलाई 2025 को GPS कैमरे से ली गई तस्वीरों ने खोली सच्चाई।
- रोजाना ट्रैक्टरों से छत्तीसगढ़ के जशपुर भेजी जा रही अवैध बालू।
- प्रशासनिक कार्रवाई कुछ दिनों तक ही सीमित, फिर सब पहले जैसा।
- स्थानीय नागरिकों में प्रशासनिक चुप्पी को लेकर आक्रोश।
आदेशों को ठेंगा, पर्यावरण से खिलवाड़
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने झारखंड राज्य में नदियों से बालू उठाव पर सख्त रोक लगा रखी है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां खनन से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने का खतरा अधिक है। इसके बावजूद गुमला जिले के जारी प्रखंड की लवा नदी में इन आदेशों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
18 जुलाई 2025, दिन शुक्रवार को दोपहर 2:08 बजे GPS कैमरे से ली गई तस्वीरों में ट्रैक्टरों द्वारा बालू उठाने की पुष्टि होती है। ये दृश्य साफ दर्शाते हैं कि नदी में खुलेआम अवैध खनन चल रहा है, जबकि प्रशासन की ओर से न कोई रोक, न कोई निगरानी दिखाई देती है।

रोजाना छत्तीसगढ़ जा रही है झारखंड की रेत
स्थानीय ग्रामीणों और सूत्रों के अनुसार, यह बालू ट्रैक्टरों से लोड कर छत्तीसगढ़ के जशपुर क्षेत्र में भेजी जाती है। इस गतिविधि में स्थानीय माफियाओं की संलिप्तता, राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक मौन के आरोप भी लग रहे हैं। बालू उठाव का यह खेल रात-दिन जारी रहता है और कोई स्थायी रोक नहीं लगाई जाती।
एक स्थानीय ग्रामीण ने नाम न छापने की शर्त पर बताया: “हर बार जब मीडिया में खबर छपती है, तो प्रशासन कुछ दिनों के लिए ट्रैक्टर जब्त करता है। लेकिन 10–15 दिन बाद वही ट्रैक्टर, वही लोग और वही जगह — सब कुछ फिर पहले जैसा हो जाता है।”
तस्वीरों में कैद हुआ प्रशासनिक अनदेखी का प्रमाण
GPS कैमरे से ली गई फोटो इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि लवा नदी में दिनदहाड़े अवैध खनन किया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जिला प्रशासन इन गतिविधियों से अनजान है, या फिर जानकर भी आंखें मूंदे बैठा है?
“यदि NGT के आदेशों का पालन नहीं होता और प्रशासन कार्रवाई नहीं करता, तो यह केवल पर्यावरण ही नहीं, प्रशासन की विश्वसनीयता का भी ह्रास है।”
कागज़ी कार्रवाई से आगे नहीं बढ़ता तंत्र
जब भी अवैध खनन की खबरें अखबारों या चैनलों पर आती हैं, कुछ ट्रैक्टर जब्त किए जाते हैं, चालान काटे जाते हैं। लेकिन इन कार्रवाइयों का असर केवल कुछ दिनों तक ही रहता है। उसके बाद पुराने हालात फिर लौट आते हैं।
इस अस्थायी और सतही कार्रवाई से स्थानीय जनता में प्रशासन के प्रति गहरा असंतोष है। लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या NGT के आदेशों को मजाक बना दिया गया है? और क्या अधिकारी सिर्फ कागज़ी खानापूर्ति कर रहे हैं?

न्यूज़ देखो: पर्यावरणीय चेतावनी को अनदेखा करता सिस्टम
झारखंड जैसे राज्य, जहां प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है, वहां इस तरह के अवैध खनन की घटनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरे की घंटी हैं। ‘न्यूज़ देखो’ यह सवाल उठाता है कि जब प्रमाण सामने हैं, फिर भी प्रशासनिक चुप्पी क्यों? क्या यह प्राकृतिक संसाधनों की लूट को खुली छूट देना नहीं है?
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
पर्यावरण रक्षा ही जन उत्तरदायित्व की नींव
प्रकृति हमारी साझी विरासत है। यदि हम सब मिलकर इसके संरक्षण की जिम्मेदारी नहीं उठाएंगे, तो आने वाले समय में हमें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। सजग नागरिक बनें, आवाज उठाएं, जिम्मेदार प्रशासन की मांग करें।
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