
#बरवाडीह #मोहर्रम_निर्णय – सर्वसम्मति से लिया गया ऐतिहासिक निर्णय, धार्मिक मर्यादा व सौहार्द बनाए रखने के लिए उठाया कदम
- हाजी मुमताज अली की अध्यक्षता में हुई अहम बैठक
- ऐनुल होदा बने नए सदर, अतिफुल रहमान सेक्रेटरी, आबिद अंसारी खजांची नियुक्त
- सर्वसम्मति से मुहर्रम जुलूस में डीजे और तेज़ बाजा पर रोक का फैसला
- नियम तोड़ने वाली कमिटियों को संयुक्त रूप से दंडित किया जाएगा
- बैठक में तीनों कमिटियों और बड़ी संख्या में ग्रामीणों की भागीदारी रही
कमेटी का अनुकरणीय निर्णय, समाज को दिया शांति का संदेश
बरवाडीह (लातेहार), 8 जुलाई 2025: पोखरी कलां कर्बलाह कमिटी की एक महत्वपूर्ण बैठक मदरसा अलजामे अतुल अज़िज़िया के प्रांगण में हाजी मुमताज अली की अध्यक्षता में संपन्न हुई। बैठक में सर्वसम्मति से ऐनुल होदा को सदर, अतिफुल रहमान को सेक्रेटरी और आबिद अंसारी को खजांची नियुक्त किया गया।
मुहर्रम पर्व के लिए ऐतिहासिक निर्णय
जमाले तैबा कमिटी के सदर हाजी रिजवानुल हक़ द्वारा बैठक में एक अहम प्रस्ताव रखा गया — मुहर्रम के सप्तमी और दसमी के जुलूस में डीजे व बाजा पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाए।
इस प्रस्ताव पर सभी उपस्थित सदस्यों व ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से समर्थन जताया।
फैसला लिया गया कि:
“अगले वर्ष से मुहर्रम के जुलूसों में कोई भी कमिटी डीजे या तेज़ बाजा नहीं बजाएगी। यदि कोई उल्लंघन करता है, तो तीनों कमिटियां मिलकर संबंधित समिति के विरुद्ध कार्रवाई करेंगी।”
सामाजिक सौहार्द और मर्यादा की मिसाल
यह निर्णय सिर्फ धार्मिक अनुशासन का प्रतीक नहीं, बल्कि समाज में सौहार्द, भाईचारा और शांति की स्थापना की दिशा में एक सराहनीय पहल माना जा रहा है। ग्रामीणों और धर्मप्रेमियों ने इस पहल की प्रशंसा की है।
बैठक में इनकी रही उपस्थिति
मोहर्रम इंतजामिया कमिटी के जेनरल खलीफा अर्शदुल कादरी, सदर रिजवानुल हक़, अब्दुल मनान अंसारी, सैनुल अंसारी, समसुल अंसारी, अब्दुल सलाम अंसारी, हेसामुल अंसारी, मंसूर आलम, समीउल्लाह अंसारी, एनामुल हक़, अताउल अंसारी, सुल्तान अहमद, के साथ तीनों कमिटी के प्रतिनिधि और सैकड़ों ग्रामीण उपस्थित रहे।
हाजी मुमताज अली ने बैठक के अंत में कहा:
“धार्मिक पर्व की मर्यादा बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। यह निर्णय हमारी भावी पीढ़ी के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण बनेगा।”

न्यूज़ देखो: परंपरा और अनुशासन का मेल
पोखरी कलां की यह बैठक केवल कमिटी चुनाव तक सीमित नहीं रही, यह समाज के लिए धार्मिक अनुशासन और सामाजिक सौहार्द का प्रतीक बन गई।
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