
#लातेहार #ग्रामीणविकास : सड़क, बिजली और पानी की समस्या पर ग्रामीणों का फूटा गुस्सा
- लात पंचायत में एक वर्ष से बिजली नहीं, विधानसभा चुनाव के बाद से अंधेरा।
- लाभर से लात और लाभर से हरहे तक सड़क निर्माण वन विभाग की मंजूरी के अभाव में अधूरा।
- नल जल योजना के जलमीनार बेकार, पानी की सुविधा ठप।
- 17 हजार की आबादी वाले पंचायत के लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित।
- पढ़े-लिखे युवा रोजगार के लिए पलायन को मजबूर।
बरवाडीह प्रखंड के लात पंचायत की तस्वीर सरकारी दावों को आइना दिखा रही है। पंचायत में एक वर्ष से बिजली नहीं है। विधानसभा चुनाव के समय दो दिन के लिए बिजली आई थी, लेकिन उसके बाद से पूरा इलाका अंधेरे में डूबा हुआ है।
सड़क अधूरी, बरसात में कीचड़ और गड्ढों से गुजरते हैं लोग
लाभर से लात तक सड़क बननी थी, लेकिन वन विभाग से मंजूरी नहीं मिलने के कारण यह अधूरी रह गई। इसी तरह लाभर से हरहे तक पक्की सड़क का निर्माण भी रुका पड़ा है। बरसात में कीचड़ और गड्ढों से होकर गुजरना ग्रामीणों की मजबूरी है। मरीजों को इलाज के लिए शहर तक ले जाना बेहद कठिन हो जाता है।
पानी के लिए भी संघर्ष, नल-जल योजना बेअसर
नल जल योजना के तहत जलमीनार बने हुए हैं, लेकिन लापरवाही के कारण पानी की आपूर्ति नहीं हो रही। पीने के पानी की समस्या से लोग परेशान हैं।
रोजगार नहीं, युवा छोड़ रहे गांव
लात पंचायत में रोजगार के साधन नहीं हैं। ज्यादातर लोग खेती पर निर्भर हैं। पढ़े-लिखे युवा काम की तलाश में गांव छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं।
नक्सल मुक्त होने के बाद भी विकास अधूरा
ग्रामीणों का कहना है कि नक्सलवाद खत्म होने के बाद उम्मीद जगी थी कि विकास होगा, लेकिन स्थिति जस की तस है। ग्रामीण जगसहाय सिंह, सतीश प्रसाद, रितेश कुमार, विवेक कुमार, सुनील कुमार और सहादुर सिंह ने कहा कि सरकार ने वादे किए थे, लेकिन कुछ नहीं बदला।
ग्रामीणों का कहना: “नक्सलवाद खत्म होने के बाद लगा था कि सड़क, बिजली, पानी की सुविधा मिलेगी। लेकिन अब भी अंधेरे में जी रहे हैं।”
लात पंचायत की स्थिति
लात पंचायत जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर है और इसमें 13 गांव शामिल हैं – मेराल, तनवाई, नवरनागु, करमडीह, खाम्हीखास, सेरेनदाग, पत्राडीह, बेरे, गासेदाग, लात, हरहे, बरखेता और टोंगारी। यहां लगभग 17 हजार की आबादी रहती है। सभी गांव जंगलों और पहाड़ों से घिरे हैं।
न्यूज़ देखो: विकास के वादे अधूरे, सवालों के घेरे में प्रशासन
लात पंचायत की यह स्थिति बताती है कि नक्सल मुक्त होने के बाद भी बुनियादी सुविधाओं तक लोगों की पहुंच नहीं है। यह सवाल उठता है कि सरकार की योजनाएं जमीनी हकीकत में कब उतरेंगी।
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बदलाव की उम्मीद, आवाज उठाने का समय
ग्रामीणों की परेशानियां दिखाती हैं कि अब योजनाओं को कागज से बाहर निकालना जरूरी है। अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को शेयर करें और जिम्मेदार लोगों तक आवाज पहुंचाने में सहयोग करें।