
#कोलेबिरा #इंद_पर्व : विधायक नमन बिक्सल कोनगाड़ी की उपस्थिति में पारंपरिक श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया मुण्डा समाज का ऐतिहासिक पर्व
- कोलेबिरा प्रखंड के बेसराजरा गांव में मुण्डा समाज का पारंपरिक इंद पर्व पूरे उत्साह और भक्ति भाव से मनाया गया।
- पाहन पुजार और मुण्डा पाढ़ा राजाओं ने पारंपरिक विधि से इंदीछत्रखुंटा की स्थापना की।
- समारोह में कोलेबिरा विधायक नमन बिक्सल कोनगाड़ी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
- महिलाओं और पुरुषों ने राटा नाच और नाच-गान के माध्यम से पर्व का उल्लास साझा किया।
- विधायक ने कहा कि इंद पर्व मुण्डा समाज की पारंपरिक धरोहर है, जो हमारी सांस्कृतिक पहचान और गौरव का प्रतीक है।
कोलेबिरा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत बंदरचुआं पंचायत के बेसराजरा गांव में मुण्डा समाज द्वारा पारंपरिक इंद पर्व का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पाहन पुजारों और मुण्डा पाढ़ा राजाओं ने विधिवत पूजा-अर्चना की और इंदीछत्रखुंटा की स्थापना की, जो मुण्डा समाज की राजसत्ता, संस्कृति और अस्मिता का प्रतीक मानी जाती है। इस पारंपरिक आयोजन में श्रद्धा और उल्लास का अद्भुत संगम देखने को मिला।
विधायक बिक्सल कोनगाड़ी रहे मुख्य अतिथि
समारोह में विधायक नमन बिक्सल कोनगाड़ी मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे। उन्होंने उपस्थित पाहन पुजार, पाढ़ा राजा, और ग्रामवासियों को इंद पर्व की शुभकामनाएँ दीं और कहा कि यह पर्व मुण्डा समाज की संस्कृति, आत्मसम्मान और परंपरा का जीवंत प्रतीक है।
विधायक नमन बिक्सल कोनगाड़ी ने कहा: “करीब छह सौ ईस्वी पूर्व मुण्डा राजाओं के वंशज राजा मदिरा मुण्डा ने दत्तक पुत्र फनिमुकुट को उत्तराधिकारी घोषित किया था, जो आगे चलकर नागवंशी राजा कहलाए। इसके बाद उनके पुत्र मनिमुकुट ने ‘इं गी राजा’ यानी ‘हम ही राजा हैं’ की घोषणा की थी। उसी घोषणा के साथ लकड़ियों का खुंटा गाड़ा गया, जो आज ‘इंदीछत्रखुंटा’ के नाम से प्रसिद्ध है।”
विधायक ने कहा कि यह पर्व मुण्डा समाज की ऐतिहासिक अस्मिता और स्वराज की भावना का प्रतीक है। यह परंपरा हमें अपने पूर्वजों की उस गौरवशाली गाथा की याद दिलाती है, जिसमें समाज ने अपनी पहचान और गरिमा को संरक्षित रखा।
इंद पर्व का सांस्कृतिक महत्व
मुण्डा समाज द्वारा मनाया जाने वाला इंद पर्व केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनके इतिहास, संघर्ष और स्वाभिमान का प्रतीक है। इस अवसर पर महिला और पुरुष दोनों पारंपरिक वेशभूषा में सजधज कर राटा नाच और पारंपरिक गीतों के साथ अपनी संस्कृति का प्रदर्शन करते हैं। ढोल, मांदर और नगाड़ों की गूंज पूरे गांव में गूंज उठी और लोक परंपरा के रंगों से वातावरण जीवंत हो गया।
इंदीछत्रखुंटा की स्थापना के साथ मेला जैसा माहौल बन गया, जहां लोग एक-दूसरे के साथ सामाजिक एकता और सांस्कृतिक गर्व का उत्सव मनाते दिखे। यह पर्व पीढ़ियों से मुण्डा समाज के आत्मगौरव और सामुदायिक एकता का प्रतीक रहा है।
परंपरा से जुड़ी ऐतिहासिक कथा
स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, यह परंपरा राजा मदिरा मुण्डा और उनके वंशजों से जुड़ी है, जिन्होंने अपने उत्तराधिकारी की घोषणा के बाद इंदीछत्रखुंटा की स्थापना की थी। यह स्थान तब से समाज में सिंहासन और सत्ता का प्रतीक बन गया। इस खुंटे को आज भी मुण्डा समाज के लोग अपने पूर्वजों की स्मृति और गौरव का प्रतीक मानते हैं।
विधायक बिक्सल कोनगाड़ी ने कहा कि आने वाली पीढ़ियों को इस परंपरा से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है, ताकि हमारी संस्कृति और अस्मिता जीवित रहे। उन्होंने कहा कि इंद पर्व हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और समुदाय की एकता को सशक्त बनाने का अवसर देता है।
गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति में संपन्न हुआ कार्यक्रम
इस अवसर पर पाढ़ा राजा गण, पाहन पुजार गण, जिला अल्पसंख्यक अध्यक्ष सह विधायक प्रतिनिधि रावेल लकड़ा, संजय हेरेंज, और अन्य स्थानीय जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे। सभी ने इंदीछत्रखुंटा के समक्ष पूजा कर अपने समाज की एकता और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा का संकल्प लिया।
कार्यक्रम के दौरान विधायक ने उपस्थित समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि राज्य सरकार आदिवासी संस्कृति और परंपरा के संरक्षण के लिए लगातार प्रयासरत है। इस दिशा में इंद पर्व जैसे आयोजन समाज को अपनी जड़ों से जोड़ते हैं और युवाओं को अपनी परंपराओं से सीखने की प्रेरणा देते हैं।

न्यूज़ देखो: संस्कृति की पहचान और विरासत का जश्न
इंद पर्व मुण्डा समाज के आत्मगौरव और परंपरा की जीवंत मिसाल है। यह आयोजन न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक चेतना और सामुदायिक एकता का भी प्रतीक बन चुका है। समाज की युवा पीढ़ी को इस पर्व से प्रेरणा लेकर अपनी सांस्कृतिक जड़ों को संरक्षित करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
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अपनी संस्कृति से जुड़ें, अपनी पहचान सहेजें
यह पर्व हमें याद दिलाता है कि हमारी संस्कृति और परंपराएं हमारी पहचान का मूल हैं। आधुनिकता के दौर में भी अपने पूर्वजों की धरोहर को सहेजना हम सबकी जिम्मेदारी है।
सजग रहें, अपनी संस्कृति से जुड़े रहें।
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