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जारी: घर उजड़ने के बाद तीन साल से मवेशियों के साथ गोशाला में रह रहा वृद्ध दंपति, आवास और पेंशन से वंचित

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#जारी #आवास_वंचना : जंगली हाथियों ने उजाड़ा घर, सरकार ने मुंह मोड़ा — जरडा पंचायत के वृद्ध दंपति को न आवास मिला, न वृद्धा पेंशन
  • 2022 में हाथियों ने गुलरिया लकड़ा का घर किया था ध्वस्त
  • वन विभाग से मिला सिर्फ 11000 का मुआवजा, मरम्मत नहीं
  • तीन साल से पति संग गौशाला में बैल-बकरी के साथ रह रही हैं
  • आवास और वृद्धा पेंशन के लिए कई बार दिए आवेदन, कोई सुनवाई नहीं
  • जनता दरबार में भी डाले आवेदन, कार्रवाई अब तक लंबित

हाथियों ने छीना घर, तंत्र ने छीन लिया भरोसा

जारी प्रखंड के जरडा पंचायत के भीखमपुर गांव में
वृद्ध गुलरिया लकड़ा और उनके पति फ्लोरेंस लकड़ा की जिंदगी आज भी एक त्रासदी की तरह गुजर रही है। 2022 में जंगली हाथियों के झुंड ने इनके कच्चे घर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। साथ ही घर में रखा अनाज भी हाथी चट कर गए।

गुलरिया लकड़ा ने वन विभाग को मुआवजे के लिए आवेदन दिया था, जिसके बाद सिर्फ 11000 रुपये की राशि मिली। उससे उन्होंने अनाज और जरूरी सामान खरीदे, पर घर की मरम्मत नहीं हो सकी। आज उनका घर पूरी तरह जमीनदोश हो चुका है

बेघर दंपति का दर्द: मवेशियों के साथ रहना मजबूरी

कोई संतान नहीं, कोई रिश्तेदार नहीं
गुलरिया और फ्लोरेंस लकड़ा पूरी तरह अकेले हैं। कई महीनों तक दूसरों के घर में रहकर काम किया, लेकिन बाद में निकाल दिए गए। अब दोनों चार्लेश टोप्पो के जर्जर गोहार घर (गौशाला) में बैल-बकरी के साथ रहते और वहीं सोते हैं। बरसात में टपकती छत और कीचड़ में रात काटना इनका नियति बन चुका है।

गुलरिया लकड़ा ने कहा:
“तीन साल से आवास के लिए आवेदन दे रहा हूं, कोई सुनता नहीं। हम मवेशियों के साथ जी रहे हैं। यही जिंदगी है अब।”

आवेदन किए, दरबारों में गुहार लगाई — लेकिन कोई राहत नहीं

एक साल पहले डुमरी थाना में आयोजित जनता दरबार में गुलरिया लकड़ा ने आवास के लिए आवेदन भी दिया, पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। वृद्धा पेंशन के लिए भी कई बार आवेदन कर चुके हैं,
लेकिन आज तक पेंशन कार्ड नहीं बना

गुलरिया के पति फ्लोरेंस लकड़ा को भी राज्य सरकार की किसी योजना का लाभ नहीं मिल सका
पति मवेशियों को चराकर जो कमाते हैं, उसी से दोनों दिन में दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाते हैं।

योजनाएं कागज़ पर, जमीनी हकीकत दर्दनाक

केंद्र और राज्य सरकार गरीबों के लिए कई योजनाएं चला रही हैं — प्रधानमंत्री आवास योजना, वृद्धा पेंशन योजना, खाद्य सुरक्षा योजना। लेकिन गुलरिया और फ्लोरेंस जैसे लोगों को अब तक इन योजनाओं का लाभ नहीं मिला।
न अधिकारी सुनते हैं, न जनप्रतिनिधि देखते हैं।

गुलरिया लकड़ा बोलीं:
“हम भी इंसान हैं, लेकिन जैसे मवेशियों से भी बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं। क्या यही विकास है?”

न्यूज़ देखो: सरकारी योजनाओं की जमीनी सच्चाई

गुलरिया लकड़ा और फ्लोरेंस लकड़ा की कहानी
झारखंड में गरीबी, पलायन और उपेक्षा की असली तस्वीर है।
सरकार जहां “सबका साथ, सबका विकास” का नारा देती है, वहीं इस वृद्ध दंपति को मूलभूत अधिकार — रोटी, कपड़ा और मकान — भी नहीं मिला
न्यूज़ देखो इस पीड़ा को आवाज दे रहा है ताकि प्रशासन की नींद टूटे और इन्हें इंसाफ मिले।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

आपकी आवाज़ से बदल सकता है सिस्टम

अगर समाज सच में बदलना चाहता है, तो ऐसे उपेक्षित और पीड़ित लोगों के लिए आवाज़ उठानी होगी
सरकार और प्रशासन को जिम्मेदारी से काम करने की जरूरत है, और जनता को ऐसे मुद्दों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
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