#लातेहार #शिक्षक_निधन : बीस वर्षों से शिक्षा सेवा में जुटे अरुण कुमार राम नहीं रहे — साथी शिक्षकों ने जताया गहरा दुख, आर्थिक सहायता की अपील
- लातेहार प्रखंड के सहायक अध्यापक अरुण कुमार राम का आकस्मिक निधन
- बीते दो दशकों से अल्प मानदेय में करते रहे निस्वार्थ शिक्षा सेवा
- पारा शिक्षकों ने सरकार को वादों की याद दिलाते हुए जताया आक्रोश
- जिला शिक्षक संघ ने किया आर्थिक सहयोग का आग्रह
- साथियों ने कहा: “एक शिक्षाकर्मी कम हुआ है, पर परिवार बेसहारा न हो”
समर्पित शिक्षक अरुण कुमार राम नहीं रहे
लातेहार प्रखंड के सहायक अध्यापक अरुण कुमार राम अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने बीते 20 वर्षों से झारखंड के सरकारी स्कूलों में सीमित संसाधनों में निःस्वार्थ सेवा दी। उन्हें कभी स्थायी नौकरी का दर्जा नहीं मिला, न ही पूर्ण वेतन की सुविधा — फिर भी शिक्षा के प्रति उनका समर्पण अडिग रहा। उनका निधन सिर्फ एक शिक्षक का जाना नहीं, बल्कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की विफलता का प्रतीक बन गया है।
वादों की सरकार, पर खाली झोली में पारा शिक्षक
62,000 पारा शिक्षक वर्षों से राज्य की शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ बने हुए हैं। चुनावी मौसम में किए गए वादे सत्ता में आते ही भुला दिए गए। अरुण कुमार राम जैसे हजारों शिक्षक कम वेतन और अस्थायी पद के बावजूद शिक्षण कार्य में जुटे हैं, लेकिन बदले में उन्हें न तो सुरक्षा मिलती है, न ही सम्मान। शिक्षकों का कहना है कि यह मृत्यु नहीं, बल्कि सरकारी उपेक्षा से हुई शहादत है।
जिला अध्यक्ष विजय प्रसाद ने कहा: “सरकार को अब आंख खोलनी चाहिए। हम सिर्फ वोट नहीं, समर्पित शिक्षक भी हैं। अगर हमारी मांगें अब भी नहीं सुनी गईं तो यह सिलसिला नहीं थमेगा।”
साथियों से आर्थिक सहयोग की अपील
सहायक अध्यापक संघ, लातेहार की ओर से स्व. अरुण कुमार राम के परिवार के लिए आर्थिक सहयोग की अपील की गई है। संघ के पदाधिकारियों ने शिक्षक समाज से संवेदनात्मक व आर्थिक सहयोग की अपील की है ताकि दिवंगत शिक्षक के परिजनों को इस कठिन समय में राहत मिल सके।
जिला महासचिव अनुप कुमार ने कहा: “यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम उनके परिवार को बेसहारा न होने दें।”
श्रद्धांजलि और सामूहिक जिम्मेदारी की पुकार
शिक्षक समाज ने एक सुर में कहा —
“एक शिक्षाकर्मी कम हुआ है, पर एक परिवार बेसहारा न हो — यह हमारी ज़िम्मेदारी है।”
न्यूज़ देखो: जब शिक्षा का प्रहरी यूँ चुपचाप चला जाता है
शिक्षक समाज की पीड़ा तब बढ़ जाती है जब वे न केवल मानदेय की मार झेलते हैं, बल्कि मौत के बाद भी उनके परिवारों के लिए कोई सरकारी सहायता नहीं होती। न्यूज़ देखो लगातार ऐसे मुद्दों को सामने लाता रहा है जहां नीतियों की खामोशी एक परिवार को उजाड़ देती है।
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आइए, संवेदनशील बनें और जिम्मेदारी निभाएं
अरुण कुमार राम की कहानी केवल एक शिक्षक की नहीं, एक व्यवस्था की कहानी है जो अपने असली नायकों को भुला देती है।
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