
#मनातू #आंगनबाड़ी_विवाद : मंझौली पंचायत के जसपुर गांव में सेविका चयन प्रक्रिया को लेकर पारदर्शिता पर सवाल और प्रशासन के खिलाफ ग्रामीणों का आक्रोश
- जसपुर गांव में आंगनबाड़ी सेविका चयन पर विवाद।
- जाति सर्वे में गड़बड़ी का ग्रामीणों ने लगाया आरोप।
- दर्जनों ग्रामीणों ने डीसी और बीडीओ को आवेदन देने की तैयारी।
- पुनःसर्वे और निष्पक्ष चयन की मांग तेज।
- महिला पर्यवेक्षिका ने जांच जारी होने की पुष्टि की।
पलामू जिले के मनातू प्रखंड अंतर्गत मंझौली पंचायत के जसपुर गांव में आंगनबाड़ी सेविका चयन प्रक्रिया को लेकर ग्रामीणों में भारी आक्रोश देखने को मिल रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि चयन प्रक्रिया में जाति सर्वे को गलत तरीके से प्रस्तुत कर नियमों की अनदेखी की गई है, जिससे एक बार फिर उसी वर्ग की अभ्यर्थी का चयन कर लिया गया। इस मामले को लेकर गांव में असंतोष का माहौल है और ग्रामीणों ने चयन को रद्द कर पुनः निष्पक्ष तरीके से चुनाव कराने की मांग उठाई है।
ग्रामीणों का कहना है कि यदि समय रहते प्रशासन ने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया तो आंदोलन का रास्ता भी अपनाया जा सकता है। फिलहाल पूरे मामले को लेकर जिला प्रशासन के समक्ष शिकायत दर्ज कराने की तैयारी चल रही है।
दो आंगनबाड़ी केंद्र और चयन को लेकर विवाद
ग्रामीणों ने बताया कि जसपुर गांव में कुल दो आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। पहले सेंटर टू में सेविका का चयन किया गया था, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग की अभ्यर्थी को चयनित किया गया। आरोप है कि यह अभ्यर्थी भी जसपुर गांव की निवासी नहीं होकर दूसरे पंचायत की है।
ग्रामीणों के अनुसार अब जब सेंटर वन के लिए चयन होना था, तो नियमों के अनुसार दूसरे वर्ग की अभ्यर्थी को मौका मिलना चाहिए था, लेकिन कथित रूप से टालमटोल और फर्जी सर्वे के आधार पर फिर से ओबीसी वर्ग की ही अभ्यर्थी का चयन कर लिया गया। इससे ग्रामीणों में गहरा असंतोष है।
गलत जाति सर्वे का आरोप
ग्रामीणों का आरोप है कि सेंटर टू की सेविका द्वारा किए गए जाति सर्वे में ओबीसी की संख्या को जानबूझकर अधिक दिखाया गया, जबकि वास्तविक स्थिति अलग है। इसी गलत सर्वे को आधार बनाकर सेंटर वन में भी ओबीसी अभ्यर्थी का चयन कर लिया गया, जो पूरी तरह से नियमों के खिलाफ बताया जा रहा है।
ग्रामीणों का कहना है कि चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती गई और स्थानीय जरूरतों तथा सामाजिक संतुलन को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया।
चयनित अभ्यर्थी की निवास पर भी सवाल
ग्रामीणों ने यह भी गंभीर आरोप लगाया है कि जिस अभ्यर्थी का चयन किया गया है, वह मंझौली पंचायत के जसपुर गांव की स्थायी निवासी नहीं है। ग्रामीणों के अनुसार चयनित महिला रंगेया पंचायत के टंडवा गांव में रहती है और वहीं से सरकारी योजनाओं का लाभ भी ले रही है।
ग्रामीणों का कहना है कि नियमों के अनुसार सेविका का चयन उसी गांव की महिला से होना चाहिए, जहां आंगनबाड़ी केंद्र संचालित है। बाहरी पंचायत की महिला का चयन नियमों का खुला उल्लंघन है।
ग्रामीणों ने सौंपने का किया निर्णय
इस पूरे मामले को लेकर शंकर सिंह, बिक्की सिंह, जितेंद्र रजक, मुनिया देवी, राजेश सिंह, अखिलेश सिंह, छोटू कुमार रवि, प्रमिला देवी, बैजनाथ राम, रामप्रवेश सिंह, रघुनंदन राम, कमेश राम, चैतू सिंह, मथुरा सिंह, संजय रजक, जुगेश सिंह, संगीता देवी, शंकर राम, दिनेश कुमार रवि सहित दर्जनों ग्रामीणों ने संयुक्त रूप से निर्णय लिया है कि वे इस मामले में जिला उपायुक्त, उप विकास आयुक्त और मनातू प्रखंड विकास पदाधिकारी को हस्ताक्षरयुक्त आवेदन सौंपेंगे।
ग्रामीणों की मांग है कि पूरे सर्वे कार्य की पुनःजांच कराई जाए, गलत चयन को रद्द किया जाए और नियमों के अनुरूप निष्पक्ष पुनःचयन कराया जाए।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
इस संबंध में महिला पर्यवेक्षिका लीलावती कुमारी ने बताया कि ग्रामीणों की ओर से शिकायत प्राप्त हुई है। उन्होंने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए चयन प्रक्रिया को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है और पूरे प्रकरण की जांच की जा रही है।
महिला पर्यवेक्षिका लीलावती कुमारी ने कहा: “ग्रामीणों की शिकायत मिली है, चयन प्रक्रिया को रोकते हुए जांच की जा रही है, जांच के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।”
बढ़ता असंतोष और प्रशासन पर निगाहें
ग्रामीणों का कहना है कि आंगनबाड़ी सेविका का पद केवल रोजगार का साधन नहीं है, बल्कि बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य व पोषण से जुड़ा अत्यंत महत्वपूर्ण दायित्व है। ऐसे में यदि चयन में ही गड़बड़ी होगी तो योजना का उद्देश्य ही प्रभावित होगा।
अब सभी की निगाहें जिला प्रशासन पर टिकी हैं कि वह इस मामले में कितनी शीघ्र और निष्पक्ष कार्रवाई करता है।
न्यूज़ देखो: चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर बड़ा सवाल
जसपुर गांव का यह मामला एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि जमीनी स्तर पर योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता कितनी जरूरी है। यदि समय रहते जांच कर निष्पक्ष निर्णय नहीं लिया गया, तो ग्रामीणों का भरोसा व्यवस्था से उठ सकता है। अब प्रशासन की जिम्मेदारी है कि दोषियों की पहचान कर उचित कार्रवाई सुनिश्चित करे। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
निष्पक्ष चयन ही मजबूत समाज की नींव
आंगनबाड़ी जैसी योजनाएं तभी सफल होंगी जब उनमें भरोसा और पारदर्शिता होगी। ग्रामीणों की आवाज को अनसुना करना लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करता है।
यदि आप भी मानते हैं कि चयन प्रक्रिया निष्पक्ष होनी चाहिए, तो अपनी राय साझा करें। इस खबर को आगे बढ़ाएं, जागरूकता फैलाएं और सही के लिए आवाज उठाएं।





