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झारखंड आंदोलन के पुरोधा शिबू सोरेन के निधन से झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा में गहरा शोक

#गढ़वा #JharkhandAndolankariMorcha : गुरुजी के जाने से आंदोलनकारियों में मातम की लहर

झारखंड आंदोलन के पुरोधा और आदिवासी अस्मिता के सबसे बड़े प्रहरी शिबू सोरेन (गुरुजी) के निधन की खबर ने पूरे झारखंड को गहरे शोक में डुबो दिया। झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक, पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय कोयला मंत्री और तत्कालीन राज्यसभा सांसद रह चुके गुरुजी न सिर्फ एक राजनीतिक नेता थे बल्कि झारखंड आंदोलनकारियों के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणा स्रोत भी थे।

आज राज्य ने न केवल एक नेता बल्कि उस व्यक्तित्व को खो दिया जिसने झारखंड को उसकी पहचान दिलाने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया। उनकी मृत्यु को झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा ने राज्य की सबसे बड़ी क्षति बताया है।

झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा का बयान: “गुरुजी का जाना हमारी ताकत को तोड़ गया”

मोर्चा ने कहा कि गुरुजी ने हमेशा झारखंड के लोगों को अपनी जड़ों से जोड़े रखा। वे केवल एक राजनीतिक चेहरा नहीं, बल्कि झारखंड की आत्मा थे। आंदोलन के सबसे कठिन दौर में भी उन्होंने हिम्मत नहीं खोई और कार्यकर्ताओं को जन संघर्ष का रास्ता दिखाया।

मोर्चा के वरिष्ठ नेता और आंदोलनकारी विजय ठाकुर ने कहा:

“गुरुजी हमारे राजनीतिक गुरु ही नहीं, बल्कि पिता तुल्य अभिभावक थे। हमने उनके नेतृत्व में जनता के हक की लड़ाई लड़ी। उनका हर आदेश हमारे लिए सर्वोपरि था।”

उन्होंने बताया कि कैसे 1990 में गढ़वा जिले में झामुमो का जनाधार बढ़ाने के लिए मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने गुरुजी के निर्देश पर तन-मन-धन से काम किया।

गुरुजी का मार्गदर्शन: जनता के बीच रहो, संघर्ष को मजबूत करो

गुरुजी के विचार हमेशा जनता के लिए समर्पित रहे। वे बार-बार कहते थे कि आंदोलनकारियों को केवल नारेबाजी नहीं, बल्कि जनता की समस्याओं को हल करना चाहिए।

गुरुजी का संदेश था: “प्रखंड और अंचल कार्यालयों के इर्द-गिर्द रहो। जो आम आदमी निराश होकर लौट रहा है, उसका हाथ पकड़ो और अधिकारी से उसका काम कराओ। इससे जनता का भी भरोसा जीतेगा और पार्टी का नाम भी होगा।”

मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने इस मंत्र को अपनाकर जनता के बीच मजबूत पहचान बनाई। इसी रणनीति से आंदोलन को धार मिली और झामुमो को पूरे राज्य में जनाधार मिला।

संघर्ष के दिनों की याद: जब गुरुजी बने ढाल

विजय ठाकुर याद करते हैं कि जब आंदोलन के दौरान जिला प्रशासन द्वारा प्रताड़ना दी जाती थी, तब गुरुजी हर बार कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाते।

“जब भी हमें झूठे केस या लाठीचार्ज का सामना करना पड़ता, हम गुरुजी को बताते। वे तुरंत अधिकारियों को निर्देश देते कि झामुमो के कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय न हो। इससे हमें शक्ति और आत्मविश्वास मिलता।”

गुरुजी के जाने से गहरा शून्य: “अब किससे कहेंगे अपनी व्यथा?”

मोर्चा और सभी आंदोलनकारी यह मानते हैं कि गुरुजी के निधन से झारखंड की राजनीति और आंदोलनकारी समाज में एक ऐसा शून्य पैदा हो गया है जिसे कोई नहीं भर सकता।

विजय ठाकुर ने कहा: “अब हम सब अनाथ हो गए। गुरुजी न केवल हमारी ताकत थे, बल्कि हमारे लिए आश्रय भी। आज यह सवाल है कि हम अपनी व्यथा किससे कहेंगे?”

मोर्चा ने गुरुजी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनके बताए मार्ग पर चलना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

न्यूज़ देखो: आंदोलन की आत्मा को झकझोरता क्षण

गुरुजी का जाना सिर्फ एक नेता का निधन नहीं, बल्कि उस आंदोलन की धड़कन का रुक जाना है जिसने झारखंड को अस्तित्व दिया। झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा का यह संकल्प है कि गुरुजी के विचारों को जीवित रखा जाएगा और जनता के हक की लड़ाई जारी रहेगी। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

अब समय है संघर्ष की मशाल को आगे बढ़ाने का

गुरुजी का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा नेतृत्व जनता के बीच से आता है और उनकी समस्याओं को सुलझाने में निहित है। अब वक्त है कि हम सब मिलकर इस मशाल को आगे बढ़ाएं। अपनी राय कॉमेंट में दें और इस खबर को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं ताकि गुरुजी के विचार अमर रहें।

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