Politics

झारखंड चुनाव: आरोपों की बौछार के बीच तीखी बयानबाजी से गरमाया सियासी माहौल

हिमंता बिस्वा सरमा और जेएमएम के बीच तीखी जुबानी जंग

झारखंड विधानसभा चुनाव में जैसे-जैसे मतदान का समय करीब आ रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक बयानबाजी भी उग्र होती जा रही है। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के बीच तीखी टिप्पणियों का सिलसिला शुरू हो गया है। हाल ही में हिमंता बिस्वा सरमा ने हेमंत सोरेन के नामांकन पर तंज कसते हुए कहा कि भाजपा अगर चाहती तो उनके नामांकन को चुनौती दे सकती थी, क्योंकि उनके प्रस्तावक भाजपा में शामिल हो चुके हैं, लेकिन भाजपा चुनाव के माध्यम से सोरेन को हराना चाहती है।

इसके जवाब में जेएमएम ने तीखे शब्दों में प्रतिक्रिया देते हुए हिमंता बिस्वा सरमा पर निशाना साधा। जेएमएम के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से कहा गया कि सरमा ने कभी “सुनाव” लड़ा है कि नहीं, या जैसे असम में आदिवासी नेता की कुर्सी हथिया ली थी, उसी तरह चुनाव में भी यही कर रहे हैं। जेएमएम ने संविधान के प्रस्तावक प्रावधान का जिक्र करते हुए भाजपा पर लोगों को तोड़ने और उनके नेताओं को “किडनैप” करने का आरोप लगाया। साथ ही, जेएमएम ने भाजपा पर बाहरी हस्तक्षेप का भी आरोप लगाते हुए कहा कि झारखंड के लोग सब देख रहे हैं।

बीजेपी झारखंड ने इस टिप्पणी का कड़ा जवाब देते हुए कहा कि जेएमएम अपनी निश्चित हार को देखकर बौखला गई है। भाजपा ने जेएमएम पर “घटिया राजनीतिक संस्कार” का आरोप लगाते हुए कहा कि असम के मुख्यमंत्री पर की गई टिप्पणी नॉर्थ ईस्ट के लोगों का अपमान है। भाजपा ने यह भी कहा कि असम के मुख्यमंत्री हिंदी बोल लेते हैं, जबकि हेमंत सोरेन असमिया बोलने में असमर्थ हैं, और यह एक संस्कृति का सम्मान करने का मामला है।

इसके अलावा, भाजपा ने कहा कि हेमंत सोरेन के प्रस्तावक मंडल मुर्मू का भाजपा में शामिल होना इस बात का संकेत है कि इस बार जनता हेमंत सरकार से खुश नहीं है। भाजपा ने हेमंत सोरेन की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कहा कि यह सरकार “लूट, फरेब और झूठ” पर टिकी हुई है और जनता इसे उखाड़ फेंकने के लिए तैयार है।

इन बयानों से यह स्पष्ट है कि झारखंड में चुनावी माहौल हर दिन अधिक तनावपूर्ण होता जा रहा है। आरोप-प्रत्यारोप के बीच जनता के मुद्दे और वास्तविक समस्याओं को लेकर चर्चा कम हो रही है और व्यक्तिगत हमले अधिक हो रहे हैं। आगामी दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ये बयानबाजी मतदाताओं पर कितना प्रभाव डालती है और झारखंड में सत्ता का संतुलन किस ओर झुकता है।

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