झारखंड में बालू की भारी कमी ने निर्माण क्षेत्र को संकट में डाल दिया है। राज्य में कुल 444 बालू घाटों में से केवल 51 घाटों को पर्यावरण स्वीकृति मिली है, और इनमें से भी केवल 24 घाटों से बालू का उठाव हो रहा है। यह संकट अपार्टमेंट निर्माण, प्रधानमंत्री आवास योजना, और अन्य परियोजनाओं पर गहरा असर डाल रहा है।
बालू संकट की स्थिति:
- बालू की बढ़ती कीमतों ने निर्माण लागत में अप्रत्याशित बढ़ोतरी कर दी है।
- पलामू जैसे इलाकों में बालू 25 से 40 रुपये प्रति बोरी बिक रहा है।
- 10 दिनों में प्रति हाईवा बालू की कीमत 12,000 रुपये तक बढ़ चुकी है।
निर्माण कार्य पर असर:
- अपार्टमेंट निर्माण में देरी हो रही है।
- प्रधानमंत्री आवास योजना और अबुआ आवास योजना के तहत घरों का निर्माण ठप हो गया है।
- पांच लाख से अधिक मजदूर बेरोजगार हो गए हैं।
बालू संकट के कारण:
- अधिकांश बालू घाटों को खनन की अनुमति नहीं मिली है।
- रांची जैसे जिलों में बालू घाटों को कंसेंट टू ऑपरेट (CTO) की स्वीकृति नहीं मिली।
- पड़ोसी राज्यों, जैसे बिहार, से आयातित बालू में भी मिट्टी की मिलावट पाई जा रही है।
सरकारी जिम्मेदारियां:
बालू की कालाबाजारी और माफियाओं के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग बढ़ रही है। झारखंड सरकार के खान विभाग और जेएसएमडीसी को सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है। खान विभाग और कार्मिक विभाग मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पास होने के कारण इस मुद्दे पर सरकार की कार्रवाई पर नजरें टिकी हुई हैं।
क्या हो सकता है समाधान?
- लंबित पर्यावरण स्वीकृतियों को शीघ्रता से निपटाया जाए।
- बालू माफियाओं पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
- बालू आयात में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
इस संकट के चलते विकास कार्य और जन कल्याणकारी योजनाओं की प्रगति रुक गई है। झारखंड सरकार पर दबाव है कि वह बालू की उपलब्धता सुनिश्चित करे ताकि राज्य के लोग इस समस्या से जल्द राहत पा सकें।