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झारखंड में झामुमो की जीत, लेकिन अहम मंत्रियों की हार ने सरकार को दी चुनौती

झारखंड विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने इतिहास रचते हुए लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी की। हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने 81 में से 56 सीटें जीतकर दो-तिहाई बहुमत हासिल किया। हालांकि, इस ऐतिहासिक जीत के बावजूद झामुमो सरकार के चार अहम मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा, जो चर्चा का विषय बन गया है।

मंत्रियों की हार: झटका या संकेत?

स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता, जल संसाधन मंत्री मिथिलेश ठाकुर, शिक्षा मंत्री बैद्यनाथ राम, और समाज कल्याण मंत्री बेबी देवी जैसे दिग्गज नेता अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में हार गए।

  • बन्ना गुप्ता: जमशेदपुर पश्चिम से जदयू के सरयू राय ने 7,863 मतों के अंतर से हराया।
  • मिथिलेश ठाकुर: गढ़वा से भाजपा के सत्येंद्र नाथ तिवारी ने 16,753 मतों से पराजित किया।
  • बैद्यनाथ राम: लातेहार में भाजपा के प्रकाश राम ने केवल 434 मतों के अंतर से मात दी।
  • बेबी देवी: डुमरी सीट पर जेएलकेएम के जयराम महतो ने 10,945 मतों के अंतर से हराया।

लोकलुभावन योजनाओं से मिली मदद

झामुमो सरकार की ‘मंईयां सम्मान योजना’, जिसमें महिलाओं को 1,000 रुपये की मासिक सहायता दी जा रही है, ने इस जीत में अहम भूमिका निभाई। इस योजना का लाभ करीब 57 लाख महिलाओं को मिला, और गठबंधन ने इसे बढ़ाकर 2,500 रुपये करने का वादा किया। हालांकि, इन योजनाओं के बावजूद प्रमुख मंत्रियों की हार पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

झामुमो का प्रभाव और भाजपा की गिरावट

चुनाव में झामुमो और इंडिया गठबंधन ने कोल्हान, संताल, कोयलांचल, और उत्तरी एवं दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्रों में शानदार प्रदर्शन किया। यह झारखंड के इतिहास में पहली बार हुआ है कि किसी सरकार ने लगातार दो बार सत्ता में वापसी की हो।

भाजपा की स्थिति: पिछले चुनाव के मुकाबले भाजपा को चार सीटों का नुकसान हुआ और वह केवल 21 सीटों पर सिमट गई। एनडीए की सहयोगी आजसू पार्टी भी खराब प्रदर्शन करते हुए सिर्फ एक सीट जीत सकी।

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भविष्य की चुनौती

झामुमो के सामने अब सवाल यह है कि वह हारने वाले मंत्रियों की कमी को कैसे पूरा करेगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए यह एक संकेत है कि, भले ही सरकार जनसमर्थन पाने में सफल रही हो, लेकिन व्यक्तिगत उम्मीदवारों की प्रदर्शन क्षमता पर काम करना होगा।

यह चुनाव झारखंड में गठबंधन राजनीति के बदलते समीकरणों का परिचायक है। झामुमो की जीत ने जहां जनता का विश्वास हासिल किया, वहीं प्रमुख मंत्रियों की हार ने पार्टी को आत्ममंथन का मौका भी दिया है।

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