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दिल्ली में फर्श पर धरना देकर विरोध में उतरे झारखंड के विधायक डॉ. शशिभूषण मेहता!

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#दिल्ली #झारखंडभवन : झारखंड भवन में कमरे की अनुपलब्धता पर भाजपा विधायक ने जताया कड़ा विरोध, जमीन पर बैठकर किया भोजन, कहा– यह विधायिका का अपमान
  • पांकी विधायक शशिभूषण मेहता झारखंड भवन में कमरे न मिलने पर हुए नाराज
  • झारखंड भवन के रिसेप्शन पर ही फर्श पर बैठकर जताया विरोध
  • विधायक ने भोजन का टिफिन खोल कर वहीं खाना भी खाया
  • मुख्य सचिव, विधानसभा अध्यक्ष और कल्पना सोरेन को दी जानकारी
  • सरकार पर लगाया भेदभाव का आरोप, कार्रवाई की मांग

कमरे की अनुपलब्धता ने भड़काया पांकी विधायक को

नई दिल्ली। झारखंड के पांकी विधानसभा से भाजपा विधायक डॉ. कुशवाहा शशिभूषण मेहता एक बार फिर अपने अनोखे विरोध प्रदर्शन को लेकर चर्चा में हैं। शुक्रवार को दिल्ली दौरे पर पहुंचे विधायक को जब झारखंड भवन में पहले से बुक किए गए कमरे नहीं मिले, तो वे भवन के रिसेप्शन पर ही फर्श पर बैठकर धरने पर बैठ गए।

“झारखंड भवन किसके लिए बना है?”

विधायक का दावा है कि उन्होंने दिल्ली रवाना होने से पहले ही झारखंड भवन में दो कमरे बुक कराए थे, जिसकी पुष्टि भी हुई थी। मगर जब वे पहुंचे, तो रिसेप्शन पर बताया गया कि उनके नाम पर केवल एक कमरा बुक है और दूसरा उपलब्ध नहीं है। इसपर विधायक आहत हो गए और विरोधस्वरूप वहीं फर्श पर बैठकर टिफिन से भोजन करने लगे

डॉ. मेहता ने कहा,
“सरकार ने करोड़ों खर्च कर झारखंड भवन का निर्माण कराया है। यदि झारखंड के विधायकों को यहां अपमान सहना पड़े तो यह शर्मनाक है। आखिर यह भवन बना किसके लिए है?”

मुख्य सचिव, स्पीकर, कल्पना सोरेन और संजय सेठ को दी जानकारी

गुस्साए विधायक ने पूरे प्रकरण की जानकारी मुख्य सचिव अलका तिवारी, विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो, गांडेय विधायक कल्पना सोरेन और केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ को दी। उन्होंने बताया कि झारखंड भवन में ज्यादातर कमरे खाली थे, एक कमरा पूर्व विधायक के नाम पर बुक था, लेकिन उनके लिए कमरे नहीं दिए गए

“एक आंख में सुरमा, दूसरी में काजल नहीं चलेगा”

विधायक डॉ. मेहता ने सीएम हेमंत सोरेन से स्पष्ट शब्दों में कहा,
“एक आंख में सुरमा और दूसरी में काजल नहीं चलेगा। व्यवस्था में जो लोग लगे हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में किसी जनप्रतिनिधि को इस तरह की अपमानजनक स्थिति का सामना न करना पड़े।”

न्यूज़ देखो : जनप्रतिनिधि के सम्मान की अनदेखी

झारखंड भवन जैसे संस्थानों का निर्माण जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की सुविधा के लिए होता है। मगर अगर विधायक को ही धरना देना पड़े तो यह व्यवस्थागत विफलता का संकेत है। यह मामला झारखंड की ब्यूरोक्रेसी बनाम विधायिका की टकराहट को उजागर करता है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

जनता के सेवकों को भी व्यवस्था का हिस्सा बनाना ज़रूरी

जनप्रतिनिधियों की गरिमा और सम्मान लोकतंत्र की रीढ़ है। यदि उन्हें ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है तो यह प्रशासनिक संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है। सरकार को चाहिए कि इस मामले की जांच कर ठोस कार्रवाई करे और झारखंड भवन जैसे प्रतिष्ठानों में पारदर्शी व्यवस्था लागू करे।

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