- कल्पना सोरेन ने कल्याण विभाग का नाम बदलने का दिया सुझाव।
- 94% महिलाएं निर्णय लेने में असमर्थ, शिक्षा और रोजगार पर जोर।
- मंईयां योजना को बताया आर्थिक सशक्तिकरण का माध्यम।
- वृद्ध, विधवा और दिव्यांगों की पेंशन बढ़ाने की मांग केंद्र से।
- पूर्णिमा साहू ने सरकार पर आदिवासियों पर अत्याचार के आरोप लगाए।
कल्पना सोरेन ने दिया ‘अधिकार विभाग’ का सुझाव
झारखंड विधानसभा सत्र के दौरान झामुमो विधायक कल्पना सोरेन ने कहा कि ‘कल्याण’ शब्द शासक और दास की मानसिकता को दर्शाता है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस विभाग का नाम ‘अधिकार विभाग’ होना चाहिए।
94 प्रतिशत महिलाएं खुद निर्णय नहीं ले पातीं
कल्पना सोरेन ने महिलाओं के मुद्दों पर बात करते हुए कहा कि भारत में 94% महिलाएं आज भी खुद फैसले नहीं ले पाती हैं। उन्होंने कहा, “महिलाओं को शिक्षा और रोजगार की जरूरत है, ताकि वे अपनी राह खुद तय कर सकें।”
मंईयां सम्मान योजना को बताया सशक्तिकरण का जरिया
कल्पना सोरेन ने मंईयां सम्मान योजना को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि 18 से 50 वर्ष की महिलाओं को 2,500 रुपये प्रतिमाह मिल रहा है।
“यह राशि जुटाना आसान नहीं था, लेकिन मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री के प्रयास से यह संभव हुआ,” कल्पना ने कहा।
केंद्र से पेंशन बढ़ाने की मांग
कल्पना ने केंद्र सरकार से वृद्धा, विधवा और दिव्यांग पेंशन को 1,500 रुपये प्रति माह करने की मांग की।
पूर्णिमा साहू का सरकार पर प्रहार
भाजपा विधायक पूर्णिमा साहू ने अबुआ सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि आदिवासियों पर जुल्म बढ़ा है। उन्होंने संथाल क्षेत्र में ‘लव जिहाद’ और ‘लैंड जिहाद’ का मुद्दा उठाया और बांग्लादेशी घुसपैठ पर चिंता जताई।
“सरकार ओबीसी आरक्षण और आदिवासी संपत्ति सुरक्षा जैसे मुद्दों पर गंभीर नहीं है,” उन्होंने कहा।
पूर्ववर्ती सरकार की उपलब्धियां गिनाईं
पूर्णिमा साहू ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास सरकार की उपलब्धियों की चर्चा की, जिसमें संथाली ओलचिकी लिपि को मान्यता, लुगुबुरु मेले को राजकीय दर्जा और आदिवासी सांस्कृतिक केंद्र का निर्माण शामिल है। उन्होंने कहा कि ये सभी योजनाएं वर्तमान सरकार ने बंद कर दी हैं।
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विधानसभा में उठे इन अहम मुद्दों से यह स्पष्ट है कि राज्य की राजनीति में महिलाओं और आदिवासी समाज से जुड़े सवाल बड़ी प्राथमिकता बन गए हैं। सरकार क्या कदम उठाएगी, यह देखने लायक होगा।
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