
#डंडई #युवा_लेखक : सूअरजंघा गांव के ओमप्रकाश प्रजापति की पहली कृति मैं हूँ झारखंड ने राज्य की संस्कृति और संघर्ष को नई आवाज दी
- सूअरजंघा गांव, दण्डई प्रखंड के युवक ओमप्रकाश प्रजापति की पहली पुस्तक प्रकाशित।
- गरीबी में जन्मे ओमप्रकाश आज बन रहे हैं युवा प्रेरणा।
- ‘मैं हूँ झारखंड’ में राज्य को सजीव व्यक्तित्व की तरह प्रस्तुत किया गया है।
- पुस्तक में इतिहास, संस्कृति, पीड़ा और भविष्य का भावनात्मक चित्रण।
- अब Amazon पर उपलब्ध, कीमत ₹209।
गढ़वा जिले के dandai प्रखंड क्षेत्र के सूअरजंघा गांव से निकलकर युवा लेखक ओमप्रकाश प्रजापति ने अपनी पहली पुस्तक ‘मैं हूँ झारखंड’ के माध्यम से पूरे राज्य में साहित्यिक गर्व की भावना जगाई है। गरीबी और अभाव में पले-बढ़े ओमप्रकाश की यह कृति उन युवाओं के लिए प्रेरक उदाहरण बन चुकी है, जो सीमित साधनों के बावजूद अपने सपनों को सच करने की क्षमता रखते हैं। यह पुस्तक केवल साहित्यिक रचना नहीं, बल्कि झारखंड की आत्मा की आवाज है, जो अपनी ऐतिहासिक विरासत, सांस्कृतिक पहचान, संघर्ष और भविष्य की आकांक्षाओं को पाठकों तक पहुंचाती है।
पुस्तक का अनोखा साहित्यिक स्वरूप
‘मैं हूँ झारखंड’ की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें राज्य को एक जीवंत व्यक्ति की तरह प्रस्तुत किया गया है। किताब में झारखंड खुद अपनी कहानी सुनाता है—कभी गर्व से भर उठता है, कभी अपने दर्द को उजागर करता है, और कभी भविष्य का सपना देखता है। यह प्रयोग ओमप्रकाश की लेखनी को विशिष्ट बनाता है।
राज्य की पीड़ा और संघर्ष की आवाज
पुस्तक की सबसे प्रभावशाली पंक्ति पाठकों के दिल को छू लेती है:
“मेरे पूर्वजों ने एक स्वर्णिम झारखंड बनने के लिए अपना बलिदान दिया था, परंतु आज 25 वर्ष बाद भी उनकी आत्मा संतुष्ट नहीं है।”
इस वाक्य के माध्यम से लेखक राज्य के विकास और संसाधनों के वितरण से जुड़े बड़े प्रश्न उठाते हैं। झारखंड के पास कोयला, सोना, चांदी, अभ्रक जैसे बहुमूल्य खनिज होने के बावजूद स्थानीय लोग अब भी गरीबी और अभाव से क्यों जूझ रहे हैं—पुस्तक इस विरोधाभास को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करती है।
झारखंड की संस्कृति और गौरव का संपूर्ण चित्रण
ओमप्रकाश ने पुस्तक में झारखंड की सांस्कृतिक गहराई को बड़े ही सुंदर ढंग से उकेरा है। इसमें
- सरहुल, करमा, जैसे प्रसिद्ध त्योहारों की आत्मा,
- जनजातीय समाज की पारंपरिक वेशभूषा,
- और स्थानीय जनजातीय कलाओं की विरासत
को संवेदनशील भाषा में वर्णित किया गया है।
इतिहास में झारखंड की लड़ाइयों, बलिदानों और संघर्षों को भी विस्तार से पिरोया गया है, जो पाठकों को राज्य की जड़ों से जोड़ता है।
युवाओं का सपना और भविष्य की दृष्टि
किताब का सबसे ऊर्जावान हिस्सा वह है जहां ओमप्रकाश झारखंड के युवाओं की नजर से एक विकसित, आत्मनिर्भर और उन्नत राज्य की कल्पना को सामने रखते हैं। यहां झारखंड केवल अतीत ही नहीं, बल्कि भविष्य का भी प्रतीक बनकर उभरता है—एक ऐसा भविष्य जिसे युवा अपने प्रयासों से बदल सकते हैं।
सूअरजंघा गांव में खुशी की लहर
ओमप्रकाश की उपलब्धि से पूरा सूअरजंघा गांव उत्साहित है। स्थानीय लोगों ने कहा कि गरीबी के माहौल से उठकर साहित्य के क्षेत्र में इतना बड़ा योगदान देना युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा है। गांव के लोगों का मानना है कि ओमप्रकाश ने साबित कर दिया है कि प्रतिभा और मेहनत किसी भी परिस्थिति को मात दे सकती है।
पुस्तक अब Amazon पर उपलब्ध
‘मैं हूँ झारखंड’ अब ₹209 में ऑनलाइन उपलब्ध है। इससे देश-विदेश के पाठक भी झारखंड की इस जीवंत कहानी से जुड़ सकेंगे।
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न्यूज़ देखो: झारखंड की मिट्टी से उभरा नया साहित्यिक स्वर
ओमप्रकाश प्रजापति की यह रचना न केवल साहित्यिक महत्व रखती है, बल्कि राज्य की आत्मा और संघर्ष का दस्तावेज भी है। झारखंड के युवाओं में छिपी क्षमता को यह पुस्तक उजागर करती है और बताती है कि नई पीढ़ी राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को कितना सम्मान देती है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
प्रेरक सफलता और युवाओं के लिए संदेश
ओमप्रकाश की कहानी बताती है कि सीमित साधन भी सपनों को रोक नहीं सकते। एक गांव का साधारण युवक भी अपनी आवाज से पूरे राज्य का प्रतिनिधि बन सकता है। आपको भी अपने सपनों की ओर बढ़ना चाहिए—समर्पण और मेहनत हर बाधा को पार कर लेती है। इस खबर को शेयर करें और अपनी राय कमेंट में लिखकर बताएं कि झारखंड के इस युवा लेखक की उपलब्धि पर आप क्या सोचते हैं।





