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सीसीएल मगध परियोजना के विस्थापितों की समस्याओं को लेकर जेएलकेएम नेता ने सौंपा मांग पत्र

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#बालूमाथ #विस्थापन : रोजगार, सड़क और अस्पताल की सुविधा की उठाई मांग
  • जेएलकेएम नेता पप्पु यादव ने बीडीओ सोमा उरांव को सौंपा आवेदन।
  • सीसीएल मगध परियोजना के विस्थापितों की समस्याओं को किया उजागर।
  • स्थानीय रोजगार, सड़क और अस्पताल की कमी पर जताई चिंता।
  • लोकल सेल चालू करने और सड़क दुरुस्ती की मांग रखी गई।
  • एक हफ्ते में कार्रवाई नहीं होने पर आंदोलन की चेतावनी।

बालूमाथ प्रखंड में झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) के नेता पप्पु यादव ने प्रखंड विकास पदाधिकारी सोमा उरांव को आवेदन सौंपकर सीसीएल मगध परियोजना के विस्थापितों की गंभीर समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। आवेदन में कहा गया कि परियोजना प्रभावित लोग आज भी रोजगार, सड़क और अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।

विस्थापितों की मुख्य समस्याएं

नेता पप्पु यादव ने बताया कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का कोई प्रावधान नहीं किया जा रहा है। विस्थापित गांवों में चलने के लिए सही मार्ग नहीं है और न ही अस्पताल की व्यवस्था उपलब्ध है। उन्होंने मांग रखी कि सीसीएल प्रबंधन को लोकल सेल चालू कराना चाहिए ताकि स्थानीय युवाओं को रोजगार से जोड़ा जा सके। साथ ही, वेलफेयर मद से गांव की सड़कों को दुरुस्त करने की जरूरत है।

स्थानीय रोजगार को प्राथमिकता की मांग

पप्पु यादव ने कहा कि सीसीएल और खनन कंपनियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उनके अनुसार विस्थापित परिवारों का जीवन पहले से ही कठिनाइयों से भरा है और अगर रोजगार के अवसर नहीं दिए गए तो उनकी स्थिति और दयनीय हो जाएगी।

आंदोलन की चेतावनी

नेता ने स्पष्ट कहा कि अगर उनके दिए गए मांग पत्र पर एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई नहीं होती है, तो जेएलकेएम पार्टी आंदोलन का रास्ता अपनाएगी। उन्होंने चेतावनी दी कि आंदोलन शांतिपूर्ण भी हो सकता है और उग्र भी, इसकी जिम्मेदारी सीसीएल प्रबंधन की होगी।

मौके पर मौजूद कार्यकर्ता

इस दौरान पार्टी के गनेशपुर पंचायत नेता मुकेश राम समेत कई अन्य कार्यकर्ता मौजूद रहे और उन्होंने भी अपनी सहमति जताई। सभी ने एकजुट होकर यह आवाज उठाई कि विस्थापितों की समस्याओं का समाधान होना अब बेहद जरूरी है।

न्यूज़ देखो: विस्थापितों की उपेक्षा का सवाल

मगध परियोजना जैसे बड़े उद्योग जहां रोजगार और विकास का वादा लेकर आते हैं, वहीं विस्थापित परिवारों को अक्सर सुविधाओं से वंचित कर दिया जाता है। यह उपेक्षा न केवल सामाजिक असंतोष बढ़ाती है बल्कि जन-आंदोलन की पृष्ठभूमि भी तैयार करती है। सरकार और कंपनियों को यह समझना होगा कि स्थानीय हितों की अनदेखी से विकास अधूरा रह जाता है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

समाधान ही स्थिरता की कुंजी

अब समय है कि प्रशासन और कंपनियां विस्थापित परिवारों की समस्याओं को गंभीरता से लें। रोजगार, सड़क और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं उनका अधिकार हैं। आइए, हम सब इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाएँ और अपनी राय कॉमेंट में साझा करें। इस खबर को शेयर करें ताकि प्रभावितों की आवाज और दूर तक पहुँच सके।

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