
#गढ़वा #कॉफी_विद_एसडीएम #साहित्यकार_संवाद | प्रशासनिक पहल से साहित्य के पुनर्जीवन की उम्मीद
- एसडीएम संजय कुमार ने “कॉफी विद एसडीएम” कार्यक्रम में साहित्यकारों से की मुलाकात
- स्थानीय रचनाकारों ने रखी समस्याएं, दिए सुधारात्मक सुझाव
- साहित्यिक परिसर, पुस्तकालय में विशेष स्थान, मासिक पत्रिका की मांग उठी
- सामाजिक सौहार्द बढ़ाने वाले साहित्य पर एसडीएम ने दिया जोर
- ब्लॉगिंग और ऑनलाइन साहित्य के प्रचार की संभावनाओं पर हुई चर्चा
प्रशासनिक पहल पर खिले साहित्य के रंग
गढ़वा में बुधवार को अनुमंडल पदाधिकारी संजय कुमार द्वारा चलाए जा रहे “कॉफी विद एसडीएम” साप्ताहिक संवाद कार्यक्रम का आयोजन इस बार साहित्यकारों के साथ हुआ। इस संवाद में गढ़वा के वरिष्ठ व नवोदित रचनाकारों ने हिस्सा लिया और जिले में साहित्यिक माहौल को सशक्त करने को लेकर कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
एसडीएम संजय कुमार ने सभी प्रतिभागियों को भरोसा दिलाया कि हर संभव प्रयास प्रशासनिक स्तर पर किया जाएगा ताकि गढ़वा में साहित्यिक ऊर्जा पुनः जागृत हो।
साहित्य सृजन को चाहिए संरचना और समर्थन
वरिष्ठ साहित्यकार सुरेंद्रनाथ मिश्रा ने कहा:
“पहले प्रशासन से काफी सहयोग मिलता था, जिससे साहित्यिक गतिविधियां नियमित होती थीं। अब इसके लिए एक स्थायी परिसर की जरूरत है।”
इसी कड़ी में विनोद पाठक ने प्रस्ताव रखा कि:
“जिला स्तर पर सालाना साहित्यिक कैलेंडर बनना चाहिए ताकि सभी साहित्यकार आयोजन की तिथियों से अवगत हों और सम्मिलित हो सकें।”
युवाओं में जगानी होगी साहित्यिक चेतना
रासबिहारी तिवारी ने कहा कि साहित्य की ओर युवाओं का रुझान घट रहा है। इसके लिए स्कूल-कॉलेज स्तर पर साहित्यिक प्रतियोगिताएं जरूरी हैं। राकेश त्रिपाठी ने भी विद्यालयों में जयंतियों, हिंदी दिवस जैसे अवसरों पर कार्यक्रम आयोजित करने की बात कही।
स्थानीय साहित्य को मिले प्राथमिकता और पहचान
पूनम श्री और अंजलि शाश्वत ने कहा कि:
“बंशीधर महोत्सव जैसे आयोजनों में बाहर के कवियों को बुलाया जाता है, जबकि गढ़वा के सशक्त साहित्यकारों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।”
वहीं अन्य साहित्यकारों ने अनुमंडलीय पुस्तकालय में एक अलग कक्ष, स्थानीय रचनाओं की खरीद, और मासिक पत्रिका की आवश्यकता जताई।
ऑनलाइन लेखन और सोशल मीडिया से जोड़े साहित्य
एसडीएम संजय कुमार ने साहित्यकारों को ब्लॉगिंग, सोशल मीडिया और वेब पेज के ज़रिए गढ़वा के साहित्य को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंच तक ले जाने की सलाह दी। उन्होंने यह भी कहा कि:
“साहित्यकारों को स्वतंत्रता है कि वे किसी भी विषय पर लिखें, लेकिन सामाजिक सौहार्द्र और एकता पर केंद्रित रचनाएं आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत हैं।”
नई सोच और नवाचार का मिला समर्थन
नीरज श्रीधर ने हिंदी दिवस पर स्मारिका प्रकाशित करने की मांग की, जबकि अंजलि शाश्वत ने नवोदित रचनाकारों की चयनित रचनाओं के साथ पुरस्कार युक्त अर्धवार्षिक पत्रिका की बात रखी।
सुनील पांडे ने गढ़वा के साहित्यकारों का अलग व्हाट्सएप ग्रुप बनाने का सुझाव भी दिया।

न्यूज़ देखो : साहित्य का सम्मान, समाज का उत्थान
न्यूज़ देखो मानता है कि साहित्यकारों की भूमिका समाज को जोड़ने, संवेदनशील बनाने और सकारात्मक दिशा देने में सबसे महत्वपूर्ण होती है। गढ़वा प्रशासन की यह पहल आने वाले समय में जिले को एक सांस्कृतिक पहचान दे सकती है।
आइए, हम सभी साहित्य को पुनः जीवित करने के लिए प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर एकजुट हों।