#बानो #दुर्गा_पहाड़ी : प्रयागराज से सिमडेगा तक की आध्यात्मिक यात्रा में 37 वर्षों से मंदिर सेवा में रत हैं पुजारी कौशलेश दुबे
- दुर्गा पहाड़ी मंदिर, बानो (सिमडेगा) की स्थापना का इतिहास रहा है गौरवपूर्ण।
- मुख्य पुजारी कौशलेश दुबे ने 1988 से निरंतर मंदिर की सेवा में समर्पित किया अपना जीवन।
- प्रयागराज से आए दुबे जी ने लचरागढ़ में बसकर संभाली धार्मिक जिम्मेदारी।
- मंदिर पहले छोटे खपरैल घर में था, अब भव्य आस्था केंद्र बन चुका है।
- पुजारी दल में आचार्य कौशलेश दुबे, पं. मनोहर दिवेदी, पं. अशोक शास्त्री, और सहयोगी गंधर्व सिंह, बालगोविंद सिंह, टीपी मनोहरन शामिल हैं।
दुर्गा पहाड़ी मंदिर की स्थापना और विकास की कहानी जितनी प्राचीन और गौरवशाली है, उतनी ही प्रेरणादायक है उसके मुख्य पुजारी आचार्य कौशलेश दुबे की जीवनगाथा। सिमडेगा जिला के बानो प्रखंड में स्थित यह मंदिर आज हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन चुका है। परंतु इसकी नींव में वर्षों की तपस्या, त्याग और समर्पण की भावना बसती है।
प्रयागराज से सिमडेगा तक का आध्यात्मिक सफर
कौशलेश दुबे, जिनकी जड़ें प्रयागराज की पवित्र भूमि से जुड़ी हैं, ने अपना जीवन धार्मिक सेवा के लिए समर्पित कर दिया। प्रारंभिक दिनों में वे कुछ वर्षों तक उड़ीसा में रहे, और परिवार का विस्तार होने के बाद लचरागढ़ में बस गए। इसी दौरान दुर्गा पहाड़ी समिति को एक ऐसे पुजारी की आवश्यकता हुई जो माता की सेवा तन-मन से कर सके।
खपरैल घर से भव्य मंदिर तक
पूर्व में दुर्गा पहाड़ी मंदिर केवल छोटे से खपरैल घर में स्थित था। भक्तों की बढ़ती श्रद्धा और स्थानीय समिति के प्रयासों से आज वही स्थान एक भव्य मंदिर के रूप में विकसित हो चुका है। 1988 में जब कौशलेश दुबे को विधिवत रूप से मंदिर का मुख्य पुजारी नियुक्त किया गया, तब उन्होंने अपने जीवन का हर क्षण मां दुर्गा की सेवा में समर्पित कर दिया।
37 वर्षों से निरंतर सेवा का अद्भुत उदाहरण
आज 37 वर्षों से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन कौशलेश दुबे का समर्पण जरा भी कम नहीं हुआ है। वे न केवल पूजा-पाठ का संचालन करते हैं, बल्कि मंदिर की हर छोटी-बड़ी जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाते हैं। उनके साथ पं. मनोहर दिवेदी, पं. अशोक शास्त्री, और सहयोगी गंधर्व सिंह, बालगोविंद सिंह, टीपी मनोहरन जैसे समर्पित साथी कार्यरत हैं, जिनकी बदौलत मंदिर का संचालन सुचारू रूप से होता है।
आचार्य कौशलेश दुबे ने कहा: “माता की कृपा और भक्तों के सहयोग से दुर्गा पहाड़ी आज भक्ति का केंद्र बन चुका है। हमारा जीवन मां की सेवा में बीते, यही सबसे बड़ा वरदान है।”
समिति और समाज का सहयोग
मंदिर समिति के सदस्य बताते हैं कि दुबे जी का योगदान सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता से भी जुड़ा है। उन्होंने कई बार गरीब परिवारों की सहायता, धार्मिक आयोजन और संस्कार शिक्षण के कार्यक्रमों का नेतृत्व किया है। उनका व्यक्तित्व सादगी, संयम और सेवा भावना से परिपूर्ण है, जो हर भक्त को प्रेरित करता है।

न्यूज़ देखो: समर्पण और सेवा की सजीव प्रतिमूर्ति
आचार्य कौशलेश दुबे का जीवन यह सिखाता है कि धर्म केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि सेवा और समर्पण की साधना है। प्रयागराज से सिमडेगा तक उनकी यात्रा इस बात का प्रतीक है कि जहां आस्था और श्रम जुड़ जाएं, वहां असंभव भी संभव हो जाता है। समाज को ऐसे लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए जो बिना किसी स्वार्थ के वर्षों तक भक्ति में लीन रहें।
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आस्था से सेवा तक – यही है सच्ची साधना
दुर्गा पहाड़ी की मां भवानी का मंदिर आज जिस ऊंचाई पर है, वह भक्तों की भावना और पुजारियों की निष्ठा का परिणाम है। अब समय है कि हम सब भी अपने आसपास के धार्मिक और सामाजिक केंद्रों को सहयोग देकर समर्पण और सेवा की परंपरा को आगे बढ़ाएं। अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को साझा करें और इस प्रेरक गाथा को हर श्रद्धालु तक पहुंचाएं।