Dumka

किसानों की उम्मीदें टूटीं: दुमका के कपसियों गांव में मिर्च की खेती हुई घाटे का सौदा

#दुमका #कृषि संकट — मंडी की कमी और गिरते दामों ने किसानों की कमर तोड़ी

  • कपसियों गांव में किसानों ने महंगी किस्म की मिर्च की खेती की थी
  • मिर्च की कीमत मात्र 10 रुपये प्रति किलो पर आ गई, लागत निकालना भी मुश्किल
  • स्थायी मंडी नहीं होने के कारण मोटरसाइकिल से दूर-दराज बाजारों में फसल बेचनी पड़ रही
  • सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य और स्थायी मंडी की मांग
  • अगर हालात नहीं बदले तो नकदी फसलों से किसान पीछे हट सकते हैं

मेहनत रंग न लाई: लागत से भी कम दाम मिलने से किसान निराश

फतेहपुर प्रखंड से सटे मसलिया प्रखंड के बड़ाडुमरिया पंचायत स्थित कपसियों गांव में इस बार कई किसानों ने मिर्च की खेती पर दांव लगाया था। गांव के आशीष महतो, दिनेश महतो, महेंद्र महतो, जयदेव महतो और संजीत महतो जैसे किसानों ने महंगी किस्म की मिर्च बोई, ताकि बाजार में अच्छे दाम मिल सकें और मुनाफा हो। लेकिन फसल तैयार होते ही बाजार में मिर्च की कीमतों में भारी गिरावट ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

किसानों के अनुसार, इस समय मिर्च का थोक भाव मात्र 10 रुपये प्रति किलो है, जबकि खेती में खर्च इससे कहीं ज्यादा हुआ। बीज, खाद, कीटनाशक, सिंचाई, मजदूरी और परिवहन पर प्रति किसान हजारों रुपये की लागत आई है। ऐसे में यह स्थिति घाटा झेलने जैसी हो गई है।

मंडी नहीं, साधन नहीं: फसल ले जाना भी बना चुनौती

इस समस्या को और भी गंभीर बना रही है क्षेत्र में स्थायी कृषि मंडी की कमी। किसान अपनी फसल को मोटरसाइकिल पर लादकर दूर के बाजारों तक ले जाने को मजबूर हैं। इससे न सिर्फ समय और श्रम की बर्बादी होती है, बल्कि परिवहन पर भी अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता है।

“हम हर दिन चार–पांच किलो मिर्च मोटरसाइकिल पर ले जाकर बाजार में बेचते हैं, लेकिन खर्च निकालना भी मुश्किल हो रहा है,” — आशीष महतो

“सरकार हमें न्यूनतम समर्थन मूल्य दे, तभी हम आगे भी ऐसी खेती कर पाएंगे,” — जयदेव महतो

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नकदी फसलों से मोहभंग: गांव की अर्थव्यवस्था पर खतरा

किसानों ने चेताया कि अगर ऐसी स्थिति बनी रही तो कोई भी भविष्य में नकदी फसलों की खेती नहीं करेगा। इससे केवल किसानों की आमदनी ही नहीं घटेगी, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी। सरकार को चाहिए कि वह स्थायी मंडी की स्थापना करे और मिर्च जैसी फसलों पर एमएसपी लागू करे।

“सरकार को अब सोचना होगा, वरना गांव का किसान मजबूरी में खेती छोड़ देगा,” — महेंद्र महतो

न्यूज़ देखो : ग्रामीण खेती के दर्द की सीधी आवाज़

‘न्यूज़ देखो’ का प्रयास है कि गांव के किसानों की आवाज़ सही समय पर सही मंच तक पहुंचे। हम आपके खेत-खलिहान से जुड़ी हर खबर पर नजर रखते हैं और नीति निर्धारकों तक आपकी बात पहुंचाने का माध्यम बनते हैं
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