कोडरमा के टेपरा गांव में जल संकट गहराया, महिलाएं बालू में चुआ खोदकर बुझा रही प्यास

#कोडरमा #पेयजल_संकट — वन क्षेत्र में बसे टेपरा गांव में वर्षों से नहीं पहुंचा शुद्ध पेयजल, ग्रामीण बोले- बोरिंग फेल, जलमीनार बंद

जंगल के बीच बसा गांव और प्यास की जद्दोजहद

कोडरमा जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर, मरकच्चो प्रखंड के डगरनवां पंचायत स्थित टेपरा गांव आज भी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहा है। 200 से अधिक आदिवासी परिवार यहां पीने के पानी की भारी समस्या से जूझ रहे हैं।

गांव की महिलाएं नदी किनारे बालू में गड्ढा (चुआ) खोदकर पानी इकट्ठा करती हैं। इसी से पीने, खाना बनाने और अन्य घरेलू कार्यों के लिए पानी का उपयोग होता है।

“पानी भरने के लिए रोज सुबह से शाम हो जाती है, कभी-कभी तो बालू में पानी भी नहीं आता,”
गांव की एक महिला निवासी

दूषित पानी, बिगड़ती सेहत

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, बालू से निकाला गया यह पानी अक्सर दूषित होता है, जिससे बच्चों और बुजुर्गों में पेट की बीमारियां फैल रही हैं। बावजूद इसके, कोई वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।

“नदी का पानी पीने से कई बार उल्टी-दस्त और बुखार हो जाता है, लेकिन और कोई उपाय नहीं है,”
बड़कू टुडू, गांव निवासी

बंद पड़ी जलमीनार, बोरिंग फेल

ग्रामीणों ने बताया कि साल 2020 में सोलर आधारित 5000 लीटर क्षमता वाली जलमीनार गांव में स्थापित की गई थी। लेकिन कुछ महीनों बाद बोरिंग फेल हो गई और विभाग के कर्मी स्टार्टर, मोटर और स्विच बोर्ड तक साथ ले गए

“पेयजल विभाग वालों ने जलमीनार तो लगाई, लेकिन अब तक चालू नहीं करा सके। हम उसी हालत में छोड़ दिए गए हैं,”
एक स्थानीय ग्रामीण

उपायुक्त का जवाब: वन विभाग की NOC में अटका समाधान

इस गंभीर समस्या पर जब कोडरमा उपायुक्त मेघा भारद्वाज से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि:

“टेपरा गांव वन क्षेत्र में आता है, इसलिए नई जल योजना के लिए वन विभाग की मंजूरी आवश्यक है। फिलहाल एक नई बोरिंग कराई गई है जिससे कुछ राहत मिलेगी।”

न्यूज़ देखो : जहां विकास की असली तस्वीर सामने आती है

हर साल सरकारें विकास के बड़े-बड़े वादे करती हैं, लेकिन कोडरमा के टेपरा गांव जैसे सैकड़ों गांव आज भी बूंद-बूंद पानी के लिए तरसते हैं। ‘न्यूज़ देखो’ ऐसी जमीनी सच्चाइयों को उजागर करने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारी रिपोर्टिंग का मकसद सिर्फ खबर देना नहीं, परिवर्तन की शुरुआत करना है

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