
#विशुनपुरा #बेरोज़गारी_संकट : अमहर पंचफेड़ी टोला के 24 वर्षीय दिलीप बियार की ट्रेन से गिरकर हुई मौत ने स्थानीय बेरोज़गारी और बंद परियोजनाओं की सच्चाई को फिर उजागर किया।
- अमहर पंचफेड़ी टोला निवासी दिलीप बियार, मजदूरी कर भोपाल से लौटते समय ट्रेन से गिरे।
- घर के पास रोजगार न मिलने के कारण मजबूरी में बाहर जाना पड़ा था।
- भावनाथपुर का बंद क्रेशर प्लांट और अधूरी परियोजनाएँ पलायन का बड़ा कारण बने।
- पोस्टमार्टम के बाद शव गांव पहुंचते ही कोहराम, माता–पिता का रो–रोकर बुरा हाल।
- झामुमो प्रखंड अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह सहित कई स्थानीय नेता घर पहुंचे और सांत्वना दी।
- ग्रामीणों की मांग—परियोजनाएँ चालू हों, परिवार को मुआवजा मिले और रोजगार उपलब्ध कराया जाए।
विशुनपुरा (गढ़वा)। गरीबी और रोजगार की तलाश में बाहर जाने की मजबूरी ने एक बार फिर एक परिवार की जिंदगी तबाह कर दी। अमहर पंचफेड़ी टोला निवासी दिलीप बियार (उम्र 24 वर्ष) मजदूरी के लिए भोपाल गए थे, लेकिन घर लौटते समय वे ट्रेन से गिरकर मौत का शिकार हो गए। घटना की खबर जैसे ही गांव पहुंची, पूरे इलाके में मातम फैल गया और ग्रामीणों के बीच बेरोज़गारी का मुद्दा फिर तीखा हो उठा।
स्थानीय रोजगार न होने की मजबूरी बनी मौत का कारण
ग्रामीणों का कहना है कि दिलीप सहित इलाके के लगभग हर युवा को मजदूरी के लिए बाहर जाना पड़ता है। भावनाथपुर का बंद पड़ा विशाल क्रेशर प्लांट, जिसे एशिया के सबसे बड़े क्रेशर प्लांटों में गिना जाता था, यदि चालू हो जाए तो हजारों लोगों को रोजगार मिल सकता है। ग्रामीण बताते हैं कि रोजगार की उपलब्धता होती तो दिलीप को बाहर जाने की मजबूरी न होती और शायद आज वह जिंदा होते।
ग्रामीणों ने कहा: “अगर क्षेत्र के उद्योग चालू होते तो हमारे युवा बाहर नहीं जाते — और ऐसी मौतें भी नहीं होतीं।”
अधूरी परियोजनाएँ और टूटी उम्मीदें
ग्रामीणों को याद है कि वर्षों पहले मुख्यमंत्री द्वारा भावनाथपुर में पावर प्लांट का शिलान्यास किया गया था। उस समय मजदूरों और युवाओं में रोजगार की नई उम्मीद जगी थी। लेकिन समय बीतता गया और इस परियोजना पर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई।
लोग कहते हैं कि अगर इन अधूरी परियोजनाओं को पूरा किया जाता, तो हजारों परिवारों का पलायन रुक सकता था।
भोपाल से गांव पहुंचा शव, मातम से भर उठा माहौल
भोपाल रेलवे विभाग ने पोस्टमार्टम के बाद दिलीप का शव परिवार को सौंपा। शव गांव पहुंचते ही कोहराम मच गया। दिलीप की मां–बाप और घर के लोग लगातार रोते–बिलखते रहे। गांव का माहौल शोक और दर्द से भर गया।
स्थानीय राजनीतिक और सामाजिक प्रतिनिधि भी पीड़ित परिवार के घर पहुंचे।
इसमें झामुमो प्रखंड अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह, मानिक सिंह, भार्दुल चंद्रवंशी, संजय गुप्ता, संजय चंद्रवंशी, बालकृष्णा सिंह, श्यामसुंदर चंद्रवंशी शामिल थे। सभी ने परिवार को सांत्वना दी और प्रशासन से मदद की मांग रखी।
ग्रामीणों की सरकार से तीन प्रमुख मांगें
घटना के बाद ग्रामीणों ने सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की—
1. भावनाथपुर की बंद परियोजनाएँ चालू की जाएं
क्रेशर प्लांट और पावर प्लांट के शुरू होने से रोजगार मिल सकेगा।
2. दिलीप बियार के परिवार को उचित मुआवजा और सहायता मिले
गरीब परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है, सरकारी मदद आवश्यक है।
3. स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराया जाए
युवाओं का पलायन रुके, ताकि रोज़गार की तलाश में जान गंवाने जैसी घटनाएँ न हों।
बेरोज़गारी ने फिर खड़ा किया बड़ा सवाल
दिलीप की मौत ने इलाके में कई गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं—
क्या हर युवा रोजगार की तलाश में घर से दूर जाने को मजबूर है?
क्या अधूरी और बंद परियोजनाएँ युवाओं के भविष्य को निगलती रहेंगी?
और कब तक गरीब मजदूरों को रोज़गार की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी?
न्यूज़ देखो: यह सिर्फ एक मौत नहीं, सिस्टम की विफलता का आईना है
दिलीप बियार की मौत बताती है कि ग्रामीण इलाकों में रोजगार की कमी किस तरह परिवारों को उजाड़ रही है। बंद परियोजनाएँ, अधूरे वादे और लचर विकास योजनाएँ सीधे तौर पर युवाओं के भविष्य छीन रही हैं। सरकार और प्रशासन को ऐसे मामलों को सिर्फ हादसा मानकर छोड़ना नहीं चाहिए, बल्कि क्षेत्रीय रोजगार सृजन को प्राथमिकता पर लाना चाहिए।
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रोजगार के लिए संघर्ष—अब बदलाव का समय
इस घटना ने साबित कर दिया कि जब तक स्थानीय रोजगार नहीं बढ़ेगा, पलायन की मजबूरी और ऐसी त्रासद घटनाएँ जारी रहेंगी। अब समय है कि समाज और सरकार दोनों मिलकर विकास की नई राहें खोलें—जहां युवा अपने गांव में सम्मानजनक जीविका पा सकें।
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