#रांची #राजभाषा_विवाद : राज्यपाल से मुलाकात कर प्रतिनिधिमंडल ने उठाई आवाज — नियोजन नीति में सभी मान्यता प्राप्त भाषाओं को समान स्थान देने की मांग
- कैलाश यादव के नेतृत्व में छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को सौंपा ज्ञापन
- भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका, भूमिज को नियोजन नीति की क्षेत्रीय भाषाओं में शामिल करने की मांग
- 2018 की अधिसूचना में शामिल होने के बावजूद 2023 की नियमावली में इन भाषाओं को किया गया दरकिनार
- प्रतिनिधिमंडल में अमरनाथ झा समेत कई भाषा कार्यकर्ता रहे शामिल
- राज्यपाल ने सरकार को पत्र लिखने और मुख्यमंत्री से बातचीत की दी सलाह
ज्ञापन के जरिए उठाई गई भाषाई असमानता की बात
रांची स्थित राजभवन में शुक्रवार 11 जुलाई को भाषाई न्याय की मांग लेकर पहुंचे छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार से मुलाकात की। भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका और भूमिज भाषाओं को झारखंड की नियोजन नीति में क्षेत्रीय भाषा का दर्जा न दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए ज्ञापन सौंपा गया।
प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे अखिल भारतीय भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका मंच के अध्यक्ष कैलाश यादव ने बताया कि इन भाषाओं को लंबे समय से झारखंड सरकार की योजनाओं और नियुक्तियों में उपेक्षित किया जा रहा है, जबकि इनकी राजकीय मान्यता 29 अगस्त 2018 की अधिसूचना के जरिए पहले ही दी जा चुकी है।
2023 की नियमावली में हुआ भाषाओं का अपमान
ज्ञापन में कहा गया कि कार्मिक विभाग द्वारा 10 मार्च 2023 को जारी झारखंड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा संचालन नियमावली में केवल 12 भाषाओं को क्षेत्रीय भाषा का दर्जा दिया गया, जबकि भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका, भूमिज को जानबूझकर वंचित रखा गया है।
जबकि 18 फरवरी 2022 की अधिसूचना संख्या 453 में जिलावार जिन भाषाओं को क्षेत्रीय भाषा के रूप में चिन्हित किया गया, उसमें भी इन भाषाओं को शामिल नहीं किया गया। प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को यह स्पष्ट किया कि रांची, जमशेदपुर, बोकारो, धनबाद, देवघर, गिरिडीह, गोड्डा, कोडरमा और चतरा जैसे जिलों में करोड़ों लोग इन भाषाओं को बोलते हैं।
कैलाश यादव ने कहा: “जब तक इन भाषाओं को नियोजन नीति में शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा।”
राज्यपाल का आश्वासन और सुझाव
राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने प्रतिनिधिमंडल को सकारात्मक आश्वासन देते हुए कहा कि वे इस विषय को गंभीरता से लेंगे और राज्य सरकार को पत्र लिखकर अवगत कराएंगे। साथ ही उन्होंने प्रतिनिधिमंडल को सलाह दी कि वे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी मिलकर इस विषय पर विस्तृत चर्चा करें।
राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने कहा: “आप सभी मुख्यमंत्री से मिलें और उन्हें ज्ञापन सौंपें। मैं भी सरकार को पत्र लिखूंगा और विषय का गंभीरता से अध्ययन करूंगा।”
प्रतिनिधिमंडल में शामिल अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद के प्रदेश अध्यक्ष अमरनाथ झा ने राज्यपाल से आग्रह किया कि सभी मान्यता प्राप्त द्वितीय राजभाषाओं को न्यायोचित सम्मान मिलना चाहिए और नियोजन नीति में उनकी उचित हिस्सेदारी सुनिश्चित हो।
आंदोलन के पक्ष में साहित्यिक और सांस्कृतिक तर्क
प्रतिनिधिमंडल ने इस बात पर भी जोर दिया कि इन भाषाओं का साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान अमूल्य है और इन्हें राज्य की शैक्षणिक, प्रशासनिक और नियोजन व्यवस्था में स्थान देना समय की मांग है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर राज्य सरकार ने शीघ्र कार्रवाई नहीं की, तो राज्यव्यापी आंदोलन को मजबूरी में तेज़ किया जाएगा।

न्यूज़ देखो: भाषाई न्याय की गूंज पहुंची राजभवन तक
भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक न्याय का भी आधार है। जिन भाषाओं को राजकीय मान्यता प्राप्त है, उन्हें यदि नियुक्तियों से वंचित किया जा रहा है, तो यह नीतिगत असमानता का संकेत है। न्यूज़ देखो इस विषय को गंभीरता से उठाता है और शासन से सभी मान्यता प्राप्त भाषाओं को समुचित अधिकार देने की मांग करता है।
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बोलियों का सम्मान, झारखंड की शान
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