#लातेहार #करमा_पूजा : नगाड़ा, मंडार की थाप पर थिरके हजारों आदिवासी, संस्कृति और भाईचारे का दिया संदेश
- ASM मेमोरियल एकेडमी मैदान में हुआ आयोजन।
- हजारों आदिवासी समुदाय के लोग शामिल हुए।
- 30 से अधिक नृत्य मंडलियों ने प्रस्तुत किए सांस्कृतिक कार्यक्रम।
- पुरस्कार और सम्मान से नृत्य मंडलियों का उत्साह बढ़ाया गया।
- बुद्धेश्वर उरांव ने प्रकृति और संस्कृति के महत्व पर दिया जोर।
लातेहार जिले के सरयू प्रखंड मुख्यालय स्थित ASM मेमोरियल एकेडमी पब्लिक स्कूल के मैदान में करमा पूजा महोत्सव का आयोजन आदिवासी विकास मंच के तत्वावधान में बड़े ही धूमधाम से किया गया। इस मौके पर प्रखंड के विभिन्न पंचायतों और ग्रामीण इलाकों से हजारों की संख्या में लोग जुटे और नगाड़ा, घंट व मंडार की थाप पर थिरकते हुए प्रकृति पर्व का उल्लास मनाया।
करमा पर्व का महत्व
करमा पूजा आदिवासी समाज का प्रकृति से जुड़ा दूसरा सबसे बड़ा पर्व माना जाता है, जिसे भादो मास की एकादशी को मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। बहनें इस दिन भाइयों की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और शांति की प्रार्थना करती हैं। करमा वृक्ष की पूजा के साथ यह पर्व प्रकृति से गहरे जुड़ाव और सामूहिक सौहार्द का संदेश देता है।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों की झलक
महोत्सव में 30 से अधिक नृत्य मंडलियों ने भाग लिया। पारंपरिक गीत और नृत्य की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। आयोजकों ने सभी मंडलियों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया, जिससे प्रतिभागियों का उत्साह और बढ़ गया।
नेताओं और पदाधिकारियों के संदेश
कार्यक्रम की अध्यक्षता नरेंद्र उरांव ने की जबकि जिला परिषद सदस्य और संरक्षक बुद्धेश्वर उरांव ने अपने संबोधन में कहा:
“हम आदिवासी मूलवासी हैं और प्रकृति के पूजक हैं। पेड़-पौधे, जंगल-झाड़, नदी-झरना और पहाड़ हमारी आस्था का हिस्सा हैं। करमा पर्व हड़प्पा सभ्यता के काल से चला आ रहा है और यह हमारी संस्कृति की पहचान है। हमें आपसी भाईचारे और प्रेमभाव के साथ रहकर हर सुख-दुख में एक-दूसरे का साथ देना चाहिए।”
इस अवसर पर गणेशपुर पंचायत के मुखिया राजेश सिंह, चोरहा पंचायत की मुखिया अंकिता मुखिया, पंचायत समिति सदस्य प्रमिला देवी, घासीटोला मुखिया व कोषाध्यक्ष प्रमिला देवी, उपाध्यक्ष विलासी देवी, पाहन सुनील उरांव समेत समिति के कई सदस्य और आदिवासी समुदाय की बड़ी संख्या उपस्थित रही।
न्यूज़ देखो: संस्कृति से जुड़ाव और समाज की एकता
करमा पूजा महोत्सव सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की पहचान और प्रकृति के प्रति उनकी आस्था का प्रतीक है। यह त्योहार आपसी भाईचारे और सामूहिक जीवन मूल्यों को मजबूत करता है।
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संस्कृति और प्रकृति की रक्षा हम सबकी जिम्मेदारी
करमा पर्व हमें याद दिलाता है कि प्रकृति ही जीवन का आधार है। अब समय है कि हम सब अपनी संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा के लिए आगे आएं। अपनी राय कॉमेंट करें और इस खबर को साझा करें ताकि समाज में जागरूकता फैले।