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- रविश्वर साहू, लातेहार के प्रसिद्ध व्यवसायी और रंगमंच कर्मी का निधन।
- शहर के औरंगा नदी मुक्तिधाम में हुआ अंतिम संस्कार, परिवार ने दी मुखाग्नि।
- रंगमंच के पितामह के रूप में जाने जाते थे, नाटक मंडली के संस्थापक सदस्य रहे।
शहर में हुआ रविश्वर साहू का अंतिम संस्कार
लातेहार के रविश्वर साहू उर्फ बिलपत साव (104) का मंगलवार को पार्थिव शरीर पंचतत्त्व में विलिन हो गया। वे एक प्रतिष्ठित व्यवसायी और रंगमंच कर्मी थे। उनका देहांत रविवार की रात हुआ था। उनके अंतिम संस्कार की रस्में शहर के औरंगा नदी मुक्तिधाम में पूरी की गई, जहाँ उनके ज्येष्ठ पुत्र भुनेश्वर साहू और कनिष्ठ पुत्र श्याम मूर्ति प्रसाद ने संयुक्त रूप से मुखाग्नि दी।
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अंतिम यात्रा में शामिल हुए हजारों लोग
इसके पहले, शहर के चट्टी मुहल्ला स्थित आवास से गाजे-बाजे के साथ उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई। यात्रा में नगरवासियों की बड़ी संख्या शामिल थी। पूरी यात्रा के दौरान, इस्कॉन मंदिर के अनुयायियों ने हरे कृष्ण-हरे राम का संकीर्तन किया, जो अंतिम यात्रा में एक अद्भुत दृश्य था।
रविश्वर साहू का रंगमंच में योगदान
रविश्वर साहू लातेहार के संस्कृतिक और रंगमंच के विरासतों में एक प्रमुख नाम थे। वे लातेहार में पहले नाट्य कला संस्था के संस्थापक सदस्य थे। 50-60 के दशक में, जब नाटक मंडली का गठन हुआ, तो इसमें रविश्वर साहू के अलावा अन्य प्रमुख कलाकारों जैसे बेचू साव, रामनंदन साव, युगल साव और कई अन्य कलाकार शामिल थे। इस मंडली ने राजा हरिशचंद्र, सुल्ताना डाकू, रामायण, महाभारत, और अंधेर नगरी चौपट राजा जैसे नाटकों का मंचन किया, जो आज भी उस दौर के लोगों के जेहन में जीवित हैं।
होली के दिन परंपरा निभाते थे कलाकार
इसके अलावा, लातेहार में एक गीत संगीत के कलाकारों की टोली थी, जिसमें रविश्वर साहू भी शामिल थे। यह टोली होली के दिन होलिका दहन के बाद राख लेकर शहर में ढोल-मंजीरे के साथ भ्रमण करती थी और होली की शुभकामनाएँ देती थी। यह परंपरा 90 के दशक तक जारी रही। समय के साथ इस परंपरा का क्रम टूटता गया, लेकिन रविश्वर साहू का योगदान हमेशा याद किया जाएगा।
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लातेहार के सम्मानित रंगमंच कर्मी रविश्वर साहू के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। उनके योगदान की वजह से लातेहार का रंगमंच और सांस्कृतिक धरोहर जीवित रहेगा।
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