लातेहार: गौराखाड़ टोला के ग्रामीण पानी के लिए बेहाल, चुआड़ी और बारिश के पानी से बुझा रहे प्यास

#लातेहार #पेयजलसंकट – नल जल योजना फेल, 25 आदिवासी परिवारों का जीवन सिर्फ चुआड़ी और बारिश के पानी पर निर्भर

आदिवासी टोले की जमीनी हकीकत

लातेहार जिले के सदर प्रखंड अंतर्गत भूसुर पंचायत का गौराखाड़ टोला विकास की रफ्तार से कोसों दूर नजर आ रहा है। यहां रहने वाले 25 आदिवासी परिवार आज भी चुआड़ी और बारिश के पानी पर निर्भर हैं। महिलाओं को हर सुबह बर्तन लेकर नदी किनारे जाना पड़ता है, जहां वे चुआड़ी से पानी भरकर लाती हैं और उसी से अपना दैनिक जीवन चलाती हैं।

सरकार की योजना पर उठे सवाल

जहां एक ओर सरकार गांव-गांव शुद्ध पेयजल पहुंचाने के दावे कर रही है, वहीं गौराखाड़ टोला इन दावों की सच्चाई को उजागर कर रहा है। अब तक गांव में न तो कोई पाइपलाइन बिछी है और न ही नल की व्यवस्था हुई है। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को आवेदन दिया, लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकला।

“गर्मी में जैसे-तैसे चुआड़ी का पानी काम आ जाता है, लेकिन बरसात में हमें बारिश का पानी पीना पड़ता है,”
– एक स्थानीय ग्रामीण

जनप्रतिनिधि भी बेबस

गांव के मुखिया सुरेंद्र भगत ने बताया कि पेयजल संकट को लेकर उन्होंने कई बार गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब वे स्वयं गांव में कुंआ निर्माण की योजना बना रहे हैं, ताकि लोगों को राहत मिल सके।

सत्ता में होते हुए भी बेअसर

झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रखंड अध्यक्ष आर्सेन तिर्की, जिनका यह गृह पंचायत है, ने बताया कि कई बार आवेदन देने के बावजूद प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि अब वे इस मामले को सरकार के स्तर तक उठाएंगे ताकि स्थायी समाधान मिल सके।

जिला परिषद सदस्य विनोद उरांव ने भी बताया कि उन्होंने दो माह पूर्व अधिकारियों को जानकारी दी थी, लेकिन कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई। उनका कहना है कि “सरकार की नल जल योजना इस गांव तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती है।”

प्रशासन का भरोसा

पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के कार्यपालक अभियंता ने कहा है कि यदि गांव में पेयजल संकट है तो जल्द समाधान किया जाएगा। उन्होंने मामले की जांच करने की बात कही है।

न्यूज़ देखो: जहां सरकार चुप, वहां आवाज उठाना हमारा कर्तव्य

न्यूज़ देखो हमेशा उन आवाजों को मंच देता है जिन्हें अक्सर अनसुना कर दिया जाता है। गौराखाड़ टोला की यह पीड़ा सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि उन तमाम इलाकों की है जहां विकास योजनाएं केवल कागजों पर सजी रहती हैं।
हमारी टीम हर उस गांव की हकीकत दिखाएगी जहां “विकास” आज भी रास्ता तलाश रहा है।

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