
#लातेहार #जनसरोकार : दो दिन की चुनावी बिजली के बाद एक साल से अंधेरे में जी रहे हैं 17 हजार लोग — विकास की उम्मीदों को लग रहा है झटका
- लात पंचायत में एक साल से बिजली नहीं, विधानसभा चुनाव में केवल दो दिन बहाल की गई थी।
- लाभर से टोंगारी तक सड़क निर्माण वन विभाग की मंजूरी के अभाव में अधूरा।
- पेयजल व्यवस्था भी ठप, नल-जल योजना के जलमीनार निष्क्रिय पड़े हैं।
- 17,000 से अधिक की आबादी, 13 गांव जंगल-पहाड़ों से घिरे, ग्रामीण विकास से वंचित।
- पढ़े-लिखे युवा गांव छोड़ने को मजबूर, रोजगार के नाम पर केवल खेती।
अधूरी सड़कें, कीचड़ और गड्ढों से भरी हैं उम्मीदों की राहें
लातेहार जिला मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर लात पंचायत आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। लाभर से लात तक पक्की सड़क का निर्माण प्रस्तावित था, लेकिन वन विभाग की मंजूरी नहीं मिलने के कारण निर्माण अधूरा रह गया। लाभर से हरहे तक सड़क बनी, मगर लाभर से टोंगारी तक का हिस्सा फॉरेस्ट क्लीयरेंस के चलते रोक दिया गया। परिणामस्वरूप, बारिश के मौसम में कीचड़ और गड्ढों से होकर गुजरना यहां की नियति बन चुकी है।
सुदूर गांवों में मरीजों को अस्पताल पहुंचाना बना चुनौती
गांवों की जर्जर सड़कों के कारण आपात स्थिति में मरीजों को इलाज के लिए अस्पताल तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है। करमडीह, लात, हरहे, गासेदाग जैसे गांव आज भी सड़क सुविधा से कटे हुए हैं। ये सभी घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों में बसे हैं, जिससे आवागमन बेहद कठिन हो जाता है।
चुनाव के समय दो दिन के लिए जलाई गई बिजली, फिर छाया अंधेरा
एक साल से बिजली नहीं है। स्थानीय लोगों ने बताया कि विधानसभा चुनाव के समय मात्र दो दिन के लिए बिजली बहाल की गई थी, उसके बाद से अब तक बिजली नहीं आई। इस अंधेरे में बच्चों की पढ़ाई, घरेलू कामकाज और सामाजिक जीवन सब प्रभावित हो रहा है।
ग्रामीण सहादुर सिंह ने बताया: “बिजली के बिना जीवन ठप है। बच्चों को मोबाइल चार्ज करने तक के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता है। सरकार को हमसे वादे निभाने चाहिए।”
पानी की व्यवस्था भी ठप, जलमीनारें शोपीस बनीं
नल-जल योजना के तहत कई जगह जलमीनारें लगाई गईं, लेकिन लापरवाही के कारण इनसे किसी को पानी नहीं मिल रहा। पेयजल के लिए लोग आज भी नदी, कुएं या हैंडपंप पर निर्भर हैं। गर्मियों में स्थिति और भी भयावह हो जाती है।
रोजगार की कमी, पढ़े-लिखे युवा कर रहे पलायन
इस पंचायत में रोजगार के साधन नहीं के बराबर हैं। अधिकतर लोग खेती पर निर्भर हैं। लेकिन खेती भी बरसात और सिंचाई की अनिश्चितता के कारण टिकाऊ नहीं है। ऐसे में पढ़े-लिखे युवा गांव छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
विवेक कुमार ने कहा: “नक्सलवाद के खात्मे के बाद हमें उम्मीद थी कि अब विकास आएगा, लेकिन हालात वही के वही हैं।”
13 गांवों की आबादी सरकार से उम्मीद लगाए बैठी है
लात पंचायत के तहत 13 गांव — मेराल, तनवाई, नवरनागु, करमडीह, खाम्हीखास, सेरेनदाग, पत्राडीह, बेरे, गासेदाग, लात, हरहे, बरखेता और टोंगारी — शामिल हैं। कुल मिलाकर करीब 17 हजार की आबादी यहां निवास करती है। पंचायत का करमडीह गांव बूढ़ा पहाड़ से सटा हुआ है, जहां से नक्सली इतिहास जुड़ा रहा है। अब जब शांति लौट चुकी है, तो लोग विकास की बाट जोह रहे हैं।
न्यूज़ देखो: चुनावी वादों की हकीकत पर जनता की बेबसी
लात पंचायत की स्थिति झारखंड के ग्रामीण विकास की हकीकत को उजागर करती है। एक तरफ सरकार नक्सलमुक्त इलाकों में विकास का दावा करती है, तो दूसरी तरफ अंधेरे में डूबी पंचायत, अधूरी सड़कें और ठप जल योजनाएं उस दावे को कठघरे में खड़ा करती हैं।
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