
#रांची #गांधीजयंती : गांधीजी की शिक्षा और जीवन आज भी छात्रों को सत्य, ईमानदारी और श्रम का मार्ग दिखाते हैं
- गांधीजी का जीवन छात्रों के लिए चरित्र निर्माण का खुला विश्वविद्यालय।
- 1925 की झारखंड यात्रा से आज की पीढ़ी को मिल सकता है महत्वपूर्ण सबक।
- सत्य और ईमानदारी गांधीजी की शिक्षा का सबसे बड़ा आधार।
- आत्म-नियंत्रण और अनुशासन छात्रों के लिए डिजिटल युग में प्रेरणा।
- श्रम की गरिमा और अन्याय के खिलाफ आवाज़ गांधी का संदेश आज भी प्रासंगिक।
- सर्वधर्म समभाव से छात्रों को विविधता का सम्मान सीखना चाहिए।
2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती सिर्फ़ एक तिथि नहीं, बल्कि आत्मचिंतन का अवसर है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि महात्मा गांधी का जीवन आज भी एक जीवंत पाठशाला है, जहां से छात्र सत्य, ईमानदारी, अनुशासन और साहस जैसे मूल्यों को आत्मसात कर सकते हैं। गांधीजी ने शिक्षा को केवल किताबों और डिग्री तक सीमित नहीं माना, बल्कि उसे जिम्मेदार नागरिक बनाने का साधन बताया।
गांधीजी की 1925 की झारखंड यात्रा और सीख
साल 1925 में गांधीजी झारखंड (तत्कालीन बिहार-उड़ीसा) आए थे। गिरिडीह और मधुपुर उनके प्रमुख पड़ाव रहे। उस यात्रा को आज सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं। उनकी उस यात्रा का संदेश आज भी उतना ही जीवंत है – शिक्षा का उद्देश्य नौकरी नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण होना चाहिए।
शिक्षा का अर्थ केवल अंक नहीं
गांधीजी कहते थे –
महात्मा गांधी: “व्यक्ति का चरित्र ही राष्ट्र का चरित्र है।”
उनकी आत्मकथा “सत्य के प्रयोग” इस बात की जीवंत मिसाल है कि गलतियों को स्वीकार कर भी व्यक्ति महान बन सकता है। छात्रों के लिए यह सीख बेहद महत्वपूर्ण है कि गलती छिपाना नहीं, बल्कि स्वीकार करना ही साहस है।
गांधीजी की शिक्षा से छात्रों को बड़ी 6 सीख
1. सत्य और ईमानदारी
गांधीजी ने छोटी गलतियों को भी स्वीकार किया। यह संदेश है कि छात्रों को नकल, झूठ और शॉर्टकट से बचना चाहिए।
2. आत्म-नियंत्रण और अनुशासन
उनका ब्रह्मचर्य सिर्फ़ शारीरिक संयम नहीं, बल्कि विचार, शब्द और कर्म का अनुशासन था। आज यह छात्रों के लिए डिजिटल डिस्टैक्शन से बचने का मार्गदर्शन है।
3. श्रम की गरिमा
गांधी आश्रम में झाड़ू लगाते, शौचालय साफ करते, चरखा चलाते। संदेश यही है – कोई काम छोटा नहीं होता। यह अहंकार तोड़ता है और आत्मनिर्भरता सिखाता है।
4. निडरता और अन्याय के खिलाफ आवाज़
गांधीजी ने सिखाया कि अन्याय का विरोध हिंसा से नहीं, बल्कि सत्य और नैतिक बल से किया जाए। छात्रों को बुलीइंग और भेदभाव के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।
5. साधनों की पवित्रता
गांधीजी के लिए सफलता सिर्फ़ लक्ष्य तक पहुंचने से नहीं, बल्कि उस तक जाने के रास्ते की ईमानदारी से तय होती थी। परीक्षा और जीवन दोनों में यह सिद्धांत जरूरी है।
6. सर्वधर्म समभाव
गांधीजी के आश्रम में सभी धर्मों की प्रार्थना होती थी। यह छात्रों को विविधता और सहपाठियों के सम्मान का पाठ सिखाता है।
गांधीजी आज क्यों ज़रूरी हैं?
आज जब शिक्षा केवल डिग्री और नौकरी तक सीमित हो गई है, गांधीजी का जीवन छात्रों को याद दिलाता है कि –
- असली शिक्षा चरित्र निर्माण है।
- ईमानदारी और श्रम ही सफलता की नींव हैं।
- अन्याय के खिलाफ खड़ा होना हर नागरिक का कर्तव्य है।
- विविधता ही भारत की असली ताकत है।
न्यूज़ देखो: गांधी से सीखना आज की जरूरत
गांधीजी के विचार केवल इतिहास नहीं, बल्कि वर्तमान की ज़रूरत हैं। जब समाज विभाजन और भौतिकता की ओर बढ़ रहा है, तब छात्रों को गांधी से जोड़ना ही उन्हें जिम्मेदार, साहसी और संवेदनशील नागरिक बना सकता है। यह लेख याद दिलाता है कि चरित्रवान छात्र ही कल का सशक्त भारत बना सकते हैं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
गांधी जयंती से चरित्र निर्माण की प्रेरणा
आज का दिन सिर्फ़ बापू को याद करने का अवसर नहीं, बल्कि उनके सिद्धांतों को जीवन में उतारने का संकल्प लेने का भी है। यदि छात्र सत्य, ईमानदारी और श्रम को अपनाएँ, तो वे न सिर्फ़ खुद को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि समाज को भी रोशन करेंगे। आइए, इस गांधी जयंती पर हम सब मिलकर चरित्र निर्माण को शिक्षा का असली उद्देश्य बनाएं।
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