#चंदवा #भूमि_विवाद : जिला परिषद सदस्य सरोज देवी ने अधिकारियों को चेताया कि समाधान नहीं हुआ तो होगा उग्र आंदोलन।
- चंदवा प्रखंड के बारी पंचायत भवन में आयोजित हुई बैठक में रैयतों ने अपनी जमीन से जुड़ी त्रुटियों को रखा।
- बनहर्दी कोल ब्लॉक क्षेत्र के किसानों ने कहा, उनकी वर्षों पुरानी जमीन पर अब दूसरों के नाम दर्ज हो गए हैं।
- जिला परिषद सदस्य सरोज देवी ने कहा कि अधिकारियों का रवैया संवेदनशील होना चाहिए, प्रताड़नात्मक नहीं।
- भूमि विवाद से ग्रामीणों की आजीविका पर पड़ा गहरा असर, क्योंकि खेती ही उनका मुख्य सहारा है।
- उपायुक्त लातेहार से की गई अपील — भूमि त्रुटियों का तुरंत निराकरण कर ग्रामीणों को राहत दें।
चंदवा प्रखंड के बारी पंचायत भवन में आयोजित इस बैठक ने ग्रामीणों के भीतर simmer रहे असंतोष को उजागर कर दिया। बनहर्दी कोल ब्लॉक क्षेत्र के रैयतों ने खुले मंच पर अपनी भूमि से जुड़ी परेशानियाँ रखीं। उपस्थित जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों ने बताया कि पिछले कई वर्षों से भूमि रिकार्ड्स में भारी गड़बड़ियाँ सामने आ रही हैं, जिसके कारण वास्तविक मालिकों को अपनी ही जमीन से वंचित किया जा रहा है।
रैयतों की पीड़ा और भूमि विवाद की जड़ें
ग्रामीणों ने बताया कि वर्षों से जिन खेतों पर वे खेती कर अपनी आजीविका चला रहे हैं, अब उन्हीं जमीनों पर किसी और का नाम दर्ज दिखाया जा रहा है। कई मामलों में तो उन जमीनों को बिहार सरकार के नाम पर ‘गैर-मजूरवा’ घोषित कर दिया गया है, जिससे किसान पूरी तरह परेशान हैं। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि यह सब प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार का नतीजा है, जिसका खामियाजा आम जनता भुगत रही है।
सरोज देवी ने कहा: “वर्षों से जिन जमीनों पर किसान खेती कर रहे हैं, अब उन्हीं पर किसी और का नाम दर्ज दिखाया जा रहा है। कुछ मामलों में तो बिहार सरकार के नाम पर ‘गैर-मजूरवा’ घोषित कर दिया गया है, जो पूरी तरह अन्यायपूर्ण है।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि यह समस्या केवल दस्तावेज़ों की त्रुटि नहीं बल्कि ग्रामीणों की जीविका से जुड़ा गंभीर सामाजिक मसला है। खेती पर निर्भर रैयतों की आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर है, ऐसे में जब उनकी जमीन भी विवादों में फँस जाए, तो जीवन-यापन असंभव हो जाता है।
अधिकारियों के प्रति नाराजगी और चेतावनी
बैठक के दौरान सरोज देवी ने प्रशासनिक उदासीनता पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि कई बार शिकायतों के बावजूद अधिकारी केवल औपचारिकता निभाते हैं। रैयतों की समस्याएँ बार-बार उठाए जाने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि अब भी सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो वे ग्रामीणों के साथ मिलकर आंदोलन का रास्ता अपनाएँगी।
सरोज देवी बोलीं: “यदि शीघ्र सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो हम ग्रामीणों के साथ मिलकर उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।”
उन्होंने जिला प्रशासन से यह भी अपील की कि भूमि विवाद से जुड़ी हर शिकायत को गंभीरता से लिया जाए और समाधान प्रक्रिया पारदर्शी हो। अधिकारियों को चाहिए कि वे संवेदनशील रवैया अपनाएँ, क्योंकि यह मामला केवल जमीन का नहीं बल्कि ग्रामीण जीवन और सम्मान का प्रश्न है।
रैयतों की उम्मीदें और प्रशासन से अपेक्षा
बैठक में उपस्थित ग्रामीणों ने उम्मीद जताई कि जिला प्रशासन अबकी बार इस मुद्दे को प्राथमिकता देगा। सरोज देवी ने उपायुक्त लातेहार से अनुरोध किया कि वे व्यक्तिगत रूप से इस मामले में हस्तक्षेप करें और एक विशेष जांच दल गठित करें, जो बनहर्दी कोल ब्लॉक क्षेत्र में भूमि त्रुटियों की गहन जांच करे।
उन्होंने कहा कि प्रशासन अगर समय रहते इन त्रुटियों को दुरुस्त कर दे, तो किसानों के जीवन में स्थिरता लौट सकती है। इसके साथ ही उन्होंने जनप्रतिनिधियों से भी अपील की कि वे जनता की आवाज़ को शासन तक पहुँचाने में सक्रिय भूमिका निभाएँ।
बैठक में व्यापक भागीदारी
बैठक में जनप्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों की बड़ी उपस्थिति रही। ग्राम प्रधान रोबीन उरांव की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में लाल जन्मज्य नाथ शाहदेव, बेलाल अहमद, रमेश उरांव, हाजी हाशिम, हाजी समीउद्दीन अहमद, अजय मुंडा, वीरेंद्र उरांव, सुले उरांव, हीरामनी देवी, सुरति देवी, शोभा देवी, सुनीता देवी समेत दर्जनों ग्रामीण मौजूद थे। सभी ने एक स्वर में भूमि त्रुटियों को जल्द दुरुस्त करने और किसानों को राहत देने की मांग की।
न्यूज़ देखो: रैयतों की पुकार अब प्रशासन तक पहुँचे
इस बैठक ने स्पष्ट कर दिया कि भूमि विवाद अब प्रशासनिक गलती नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का प्रश्न बन चुका है। जिस रफ्तार से रैयतों की समस्याएँ बढ़ रही हैं, उसी अनुपात में समाधान की प्रक्रिया धीमी है। जिला प्रशासन को अब संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत है — ताकि किसानों के चेहरे पर फिर से भरोसे की मुस्कान लौट सके।
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संवेदनशील शासन ही न्यायपूर्ण समाधान की कुंजी
भूमि विवादों का समाधान केवल कानून से नहीं, बल्कि संवेदना से भी होता है। किसानों की पुकार को अनसुना करना समाज की जड़ों को कमजोर करता है। अब समय है कि प्रशासन और जनता दोनों मिलकर संवाद और समाधान की दिशा में कदम बढ़ाएँ।
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