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मेदिनीनगर में साहित्य का उत्सव: ‘बढ़ते कदम रेंगती बातें’ पुस्तक का हुआ भव्य लोकार्पण

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#मेदिनीनगर #पुस्तक_लोकार्पण — भावनाओं, प्रतीकों और साहित्यिक संवेदना से सजी शाम

  • होटल चंद्रा रेजीडेंसी में हुआ रवि शंकर पाण्डेय की नई पुस्तक का विमोचन
  • वरिष्ठ कवि श्रीधर द्विवेदी ने की अध्यक्षता, रीना प्रेम दूबे ने किया संचालन
  • हरिवंश प्रभात, विजय प्रसाद राजन, पंकज श्रीवास्तव सहित दर्जनों साहित्यकार मंच पर मौजूद
  • वक्ताओं ने लेखकीय शैली, भाषा और गहराई की खुले दिल से सराहना की
  • नाना-नाती की संवेदनशील यात्रा पर आधारित यह कृति पाठकों को भावनात्मक यात्रा पर ले जाती है
  • लेखक ने अपने पुराने काव्य संग्रह ‘परिणाह’ और ‘फुही’ को भी याद किया

साहित्य की भावनात्मक अभिव्यक्ति का प्रतीक बना लोकार्पण समारोह

मेदिनीनगर के होटल चंद्रा रेजीडेंसी में आयोजित भव्य समारोह में लेखक रवि शंकर पाण्डेय की नई पुस्तक ‘बढ़ते कदम रेंगती बातें’ का लोकार्पण संपन्न हुआ। यह यात्रा वृत्तांत केवल स्थलों का वर्णन नहीं, बल्कि जीवन की गहराइयों में उतरने वाली अनुभूति है, जो संवेदनशीलता और रिश्तों की महीन बुनावट को उजागर करता है।

अध्यक्षता, संचालन और धन्यवाद में दिखी साहित्यिक गरिमा

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि श्रीधर द्विवेदी ने की। कवयित्री रीना प्रेम दूबे ने भावनाओं से परिपूर्ण संचालन किया और अंतिम चरण में श्री शिवशंकर पाण्डेय, जो लेखक के भ्राता और अंचलाधिकारी हैं, ने सभी आगंतुकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।

मंच पर उमड़े क्षेत्रीय और प्रख्यात साहित्यकार

इस अवसर पर मंच पर उपस्थित साहित्यकारों की सूची प्रेरणादायक रही। हरिवंश प्रभात, डॉ विजय प्रसाद शुक्ल, विजय प्रसाद राजन (डिहरी), पंकज श्रीवास्तव, उमेश कुमार पाठक ‘रेणु’, रमेश सिंह, अनुज कुमार पाठक, श्याम किशोर पाठक, डॉ रामप्रवेश पंडित, ज्ञान रंजन पाण्डेय, संजय कुमार दूबे, सत्य प्रकाश पाण्डेय, पूजा पाण्डेय, शीला श्रीवास्तव, अंजनी कुमार दूबे, वंदना श्रीवास्तव, सत्यनारायण पाण्डेय और प्रेम प्रकाश पाण्डेय जैसे अनुभवी साहित्यप्रेमियों की गरिमामयी उपस्थिति ने इस अवसर को और भी विशिष्ट बना दिया

साहित्यकारों की समीक्षात्मक टिप्पणियों में उभरी कृति की गहराई

श्रीधर द्विवेदी ने कहा:
“इस पुस्तक में बिंबों और प्रतीकों का अत्यंत सुंदर प्रयोग हुआ है। पढ़ते हुए कई बार वाह-वाह कहना पड़ा।”

विजय प्रसाद ‘राजन’ ने कहा:
“लेखक तर्क-वितर्क से परे अपनी शैली से सिद्ध करते हैं कि वे आंचलिक साहित्य के बेजोड़ शिल्पकार हैं।”

हरिवंश प्रभात ने कहा कि रवि शंकर पाण्डेय गद्य और पद्य दोनों विधाओं में समान रूप से पारंगत हैं।
लोकतंत्र सेनानी रविशंकर पाण्डेय ने भी इस संयोग को सुखद बताया कि लेखक उनके हमनाम और हममुकाम हैं।

डॉ विजय प्रसाद शुक्ल ने पुस्तक की भाषाई गरिमा, सांस्कृतिक दृष्टिकोण और लेखन शैली की सराहना की, जबकि पंकज श्रीवास्तव ने कहा कि “इस लेखन में ईमानदारी, भावनात्मक गहराई और लेखक की सजग दृष्टि स्पष्ट रूप से दिखती है।”

पीढ़ियों के भावनात्मक जुड़ाव का अनोखा समावेश

शिक्षक परशुराम तिवारी ने कहा कि इस यात्रा वृत्तांत में किशोरावस्था से वृद्धावस्था तक की मानसिकता और संवेदनाएं जीवंत रूप से प्रस्तुत की गई हैं। नाना और नाती के दृष्टिकोण से जीवन की खट्टी-मीठी अनुभूतियों का सुंदर वर्णन किया गया है, जो हर आयु वर्ग के पाठकों को भावनात्मक रूप से जोड़ता है।

लेखक ने साझा की प्रेरणा और स्मृतियां

समारोह के समापन पर रवि शंकर पाण्डेय ने सभी साहित्यप्रेमियों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि उनके पूर्व प्रकाशित संग्रह ‘परिणाह’ और ‘फुही’ को मिले पाठकों के प्रेम और सहयोग ने ही उन्हें यह कृति रचने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि “पाठकों से मिला आत्मीय स्नेह ही मेरी सबसे बड़ी पूंजी है।”

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